Ram Setu का साक्षात प्रमाण और विज्ञान भी हैरान! भारत से श्रीलंका तक हुई पड़ताल में देखिए राम सेतु का हर सच
Ramsetu News: भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के मन्नार के बीच चट्टानों की उथली हुई चेन है जिसे हम भारत में राम सेतु कहते हैं। जहां भी देखेंगे तो छोटे पत्थरों की ऐसी श्रृंखला नजर आएगी जो किसी समय पानी पर तैरती थी। नासा की जो तस्वीरें आई थीं उसमें ये श्रृंखला साफ नजर आई थी जिसे हम राम सेतु कहते हैं।
- राम सेतु कल्पना नहीं, सबूत देखिए..नोट कर लीजिए
- भारत से श्रीलंका तक राम सेतु पर सबसे बड़ी पड़ताल
- 'राम सेतु' विरोधियों को रिपोर्ट बहुत चुभेगी, आस्था के तैरते सबूत..अब नहीं चलेगा कोई झूठ!
Ram Setu: आस्था का वो सेतु जिस पर श्रीराम (Lord Ram) चले, आस्था का वो पुल जिससे होकर भगवान राम ने लंका (Sri Lanka) पर चढ़ाई की और रावण का वध किया। जिस सेतु का जिक्र रामायण (Ramayan) में है, जिसे टीवी सीरियल में देखा गया और जिसका जिक्र राम कथाओं में है। अथाह समंदर के बीच मौजूद जिस राम सेतु से जुड़ा हर रहस्य, हर सच लोग जानना चाहते हैं जिसको लेकर अब भी रिसर्च जारी है। आज इसी रामसेतु के धर्म, इतिहास और विज्ञान से जुड़ी पूरी कहानी आपको दिखा रहे हैं। राम सेतु से जुड़ी आस्था को वैज्ञानिक सबूतों की कसौटी पर परखेंगे और रामसेतु की प्रमाणिकता को दिखाने के लिए टाइम्स नाउ नवभारत की टीम ने श्रीलंका के मन्नार से अपनी पड़ताल शुरू की।
आज भी मौजूद हैं सबूत
राम सेतु तमिलनाडु के पंबन आइलैंड को श्रीलंका के मन्नार आइलैंड से जोड़ता है। इस पुल की लंबाई करीब 30 मील यानी 48 किमी है। सनातन धर्म में आस्था रखने वाले इसी पुल को 'राम सेतु' कहते हैं।त्रेता युग में प्रभु श्री राम ने अपनी पत्नी सीता को रावण के साम्राज्य लंका से वापस लाने के लिए वानर सेना की मदद से इस पुल को बनाया था।भारत और श्रीलंका के बीच राम सेतु अलग-अलग 8 टापू के रूप में राम सेतु के सबूत के रूप में आज भी मौजूद हैं। पानी पर तैरते पत्थर आज भी राम कथा की गवाही देते हैं। रामसेतु को आज कई नामों से जाना जाता है, जैसे नल-नील सेतु, सेतु बांध और एडम ब्रिज...एडम्स ब्रिज का नाम भी कुछ प्राचीन इस्लामी ग्रंथों से आया है।
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अलग-अलग थ्योरी
हिन्दुओं की आस्था कहती है कि पुल श्रीराम की वानर सेना ने बनाया। एक पक्ष ऐसा है..जो कहता है कि पुल प्राकृतिक है..जिसे आस्थावान हिन्दू पवित्रता का अनादर मानते हैं..देश में इस पर राजनीतिक, पौराणिक और वैज्ञानिक बहस भी हुई है..और ये बहस पिछले कई वर्षों से जारी भी है। राम सेतु प्रभु राम का बनवाया पुल है या कुदरत की कारीगरी, धर्म और विज्ञान इसके बारे में क्या कहता है। इसकी पड़ताल में आगे बढ़ने से पहले रामसेतु के बारे में तीन सबसे चर्चित थ्योरी के बारे में जान लेते हैं-
- हिंदुओं का मानना है कि इसे भगवान राम ने बनवाया था
- मुस्लिमों का मानना है कि ये आदम का बनाया ब्रिज है
- साइंटिफिक कम्युनिटी का मानना है कि टेक्टोनिक मूवमेंट की वजह से यहां समुद्र उथला हो गया है
रामायण का सीरियल माता सीता का हरण करने वाले रावण का वध करने के लिए जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई करने पहुंचे तो उनके रास्ते की सबसे बड़ी चुनौती था ये समुद्र।श्रीराम की पूजा के बाद भी जब समुद्रदेव ने रास्ता नहीं दिया तब वो क्रोधित हो गए और समुद्र को सुखाने के लिए जैसे ही तीर-धनुष उठाए। तभी समुद्रदेव ने प्रकट होकर नल और नील नाम के दो वानरों के हाथ से पुल बनाने का सुझाव दिया क्योंकि नल और नील को ये श्राप मिला हुआ था कि वो कोई भी वस्तु समुद्र में फेकेंगे तो वो डूबेगी नहीं।
रामायण में महत्व
वाल्मीकि रामायण में युद्धकांड के 22वें सर्ग में रामसेतु बनाने का वर्णन 36 श्लोकों में विस्तार से वर्णन है। श्रीराम ने नल के नेतृत्व में वानरों की सेना को समुद्र पर पुल बनाने के लिए कहा औऱ ताड़, नारियल, कत्था, आम, अशोक और नीम जैसे पेड़ों को वानर समुद्र में फेंकने लगे। महाबलशाली वानर बड़े-बड़े पत्थरों को ढोकर वहां पहुंचाने लगे। कुछ वानर रस्सी को थामकर पुल की सीध को ठीक करते थे। नल और नील की अगुवाई में वानर सेना ने 5 दिन में ही 100 योजन का पुल बांधकर लंका के सुवेल पर्वत तक पहुंच गई और फिर श्री राम ने रावण वध कर लंका विजय पाई। तुलसीदास ने भी रामचरितमानस के लंका कांड में लिखा है..
अति उतंग गिरि पादप लीलहिं लेहिं उठाइ।
आनि देहिं नल नीलहि रचहिं ते सेतु बनाइ॥
यानी वानर और भालू ऊंचे-ऊंचे पर्वतों और पेड़ों को उखाड़कर लाते और नल-नील को देते..वे उन्हें गढ़कर सुंदर सेतु बनाते हैं ।
आज भी देखे जा सकते हैं पत्थर
स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्म पुराण और कालिदास की रघुवंश में भी रामसेतु या नल सेतु का जिक्र हुआ है। भारत के रोम-रोम में बसे राम की आज भी मान्यता उतनी है जितनी पौराणिक काल में थी। आज भी ऐसे कई प्रमाण हैं जो साबित करते हैं कि प्रभु श्रीराम और पूरी रामायण का अस्तिव आज भी है..पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक रामसेतु जिन तैरते पत्थरों से बनाया गया था...वैसे तैरते पत्थर आज भी रामेश्वरम में देखे जा सकते हैं।
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