सुषमा स्वराज के बाद एस.जयशंकर, विदेश मंत्री के रूप में भारत की बदल दी छवि

एस.जयशंकर का करियर ब्यूरोक्रेट्स के रूप में रहा है। वह 1977 बैच के आईएफएस अधिकारी रहे हैं। जयशंकर की भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते में अहम भूमिका रही है। वह भारत के ऐसे राजनयिक हैं, जिन्हें चीन, अमेरिका और रूस तीनों ही देशों में काम करने का अनुभव है।

External Affair Minister S Jaishankaar

विदेश मंत्री एस.जयशंकर

S.Jaishankar And India Foreign Policy: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) जब अपने दूसरे कार्यकाल के लिए साल 31 दिसंबर 2019 को शपथ ली थी, तो उनके मंत्रियों की लिस्ट में एक चौंकाने वाला नाम था। हम बात एस.जयशंकर (S.Jaishankar) की कर रहे हैं। जिन्हें विदेश मंत्री का जिम्मा दिया गया था। जयशंकर इसके पहले विदेश सचिव के रूप में काम कर रहे थे। विदेश मंत्री के रूप में जिस जगह को एस जयशंकर ने भरा था, उसके पहले उस पद पर सुषमा स्वराज थी। सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) विदेश मंत्री के रूप में इस तरह आम लोगों में लोकप्रिय हो गईं थी। जैसा कि उसके पहले कोई विदेश मंत्री नहीं हुआ था। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए आम लोगों तक अपनी पहुंच बनाई थी। ऐसे में विदेश के रूप में एस.जयशंकर के सामने बड़ी चुनौती थी। लेकिन पिछले 3 साल में उन्होंने अपनी कूटनीति से भारत की इमेज बदल दी है।
ब्यूरोक्रेट्स से राजनीति में आए जयशंकर
एस.जयशंकर का करियर ब्यूरोक्रेट्स के रूप में रहा है। वह 1977 बैच के आईएफएस अधिकारी रहे हैं। जयशंकर की भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते में अहम भूमिका रही है। वह भारत के ऐसे राजनयिक हैं, जिन्हें चीन, अमेरिका और रूस तीनों ही देशों में काम करने का अनुभव है। उनके इसी अनुभव को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एस जयशंकर को रिटायरमेंट के महज तीन दिन पहले विदेश सचिव नियुक्त किया था। और एक अप्रत्याशित कदम के तहत तत्कालीन विदेश सचिव सुजाता सिंह को छह महीने का कार्यकाल शेष रहने के बावजूद, उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। और उसके बाद फिर उन्हें दूसरे कार्यकाल में विदेश मंत्री बनाया। और इस तरह से एस.जयशंकर का ब्यूरोक्रेट्स से राजनयिक बनने का सफर शुरू हुआ।
मोदी ऐसे हुए मुरीद
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्रमोदी ने सितंबर 2014 में अमेरिका का पहला दौरा किया था। और उस वक्त जयशंकर ही अमेरिका में भारत के राजदूत थे। ऐसे कहा जाता है कि जयशंकर ने जिस तरह से मोदी के दौरे की प्लानिंग की थी, उससे वह काफी प्रभावित हुए थे। इसके अलावा तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2015 में 26 जनवरी के भारत दौरे में भी जयशंक की अहम भूमिका था।
भारत की रखी बेबाक छवि
विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के समय , रूस से तेल खरीदने के फैसले पर पश्चिमी देश भारत की आलोचना कर रहे थे। लेकिन उन्होंने जिस तरह से भारत का पक्ष रखा, वह पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। असल में विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 11 अप्रैल को 2+2 वार्ता के लिए अमेरिका गए थे। इस वार्ता के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के साथ भारतीय विदेश और रक्षा मंत्री मीडिया से बीत कर रहे थे। उस दौरान एक पत्रकार ने रूस से से भारत के तेल खरीदने पर सवाल पूछा तो जयशंकर ने दो टूक जवाब देते हुए कहा था कि 'भारत रूस से जितना तेल एक महीने में खरीदता है, उतना यूरोप एक दोपहर में खरीद लेता है।
वह यही नहीं रुके उन्हें अमेरिकी विदेश मंत्री के भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर दिए गए बयान पर भी सख्त जवाब दिया। उन्होंने सीधे कहा कि जिस तरह से अमेरिका भारत में मानवाधिकारों को लेकर अपनी राय रखता है, उसी तरह से भारत भी अमेरिका में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर अपना विचार रख सकता है।
इसी तरह उन्होंने अफगानिस्तान के मामले में भी यूरोप के दोहरे रवैये के सामने रखा। उन्होंने नॉर्वे के विदेश मंत्री के सवाल का जवाब पर कहा कि याद कीजिए कि अफगानिस्तान में क्या हुआ। वहां के आम लोगों को दुनिया ने छोड़ दिया। जब एशिया में नियम आधारित व्यवस्था को चुनौती मिली तब हमें यूरोप से व्यापार बढ़ाने की सलाह मिली। कम से कम हम सलाह तो नहीं दे रहे हैं।
हाल ही में विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNGA) की बैठक में चीन को सख्त संदेश दिया, उन्होंने कहा कि दुनिया के कुछ सबसे खतरनाक आतंकवादियों पर प्रतिबंध लगाने की बात आती है तो कुछ देश उसे बचाने का काम करते हैं। असल में अमेरिका और भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में साजिद मीर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया था। लेकिन चीन ने वीटो पावर का इस्तेमाल कर साजिद मीर को बचा लिया। साजिद मीर 2008 के मुंबई हमलों का मुख्य साजिशकर्ता है।
एक बार फिर अमेरिका को लताड़ लगाई। उन्होंने बीते रविवार को वॉशिंगटन में भारतीय अमेरिकी समुदाय के एक कार्यक्रम में कहा कि पाकिस्तान के साथ वॉशिंगटन के रिश्ते अमेरिकी हितों की पूरा नहीं करते। उन्होंने कहा कि आज अमेरिका को इस रिश्ते की मेरिट के बारे में सोचना चाहिए। F-16 जैसी क्षमताओं वाले एयरक्राफ्ट की बात हो जिसे हर कोई जानता है, आप जानते हैं कि उन्हें कहां तैनात किया गया है और उनका इस्तेमाल क्या है। आप ऐसी बातों को कहकर किसी को मूर्ख नहीं बना रहे।
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प्रशांत श्रीवास्तव author

करीब 17 साल से पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ हूं। और इस दौरान मीडिया की सभी विधाओं यानी टेलीविजन, प्रिंट, मैगजीन, डिजिटल और बिजनेस पत्रकारिता में काम कर...और देखें

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