विदेश में पहना फटा कोट, रिक्शे से चले, ऐसे थे समाजवाद के प्रणेता कर्पूरी ठाकुर, मशहूर हैं कई किस्से
Bharat Ratna Karpuri Thakur : विधायक बनने पर उनका चयन आस्ट्रिया जाने वाले विधायकों के शिष्टमंल में हुआ लेकिन उनके पास कोट नहीं था। दोस्त से उधार लिया लेकिन वह कोट भी फटा हुआ था। अपने विदेश दौरे पर उन्होंने इस फटे कोट को पहना। सीएम रहते हुए अपने लिए कार नहीं खरीद सके। रिक्शे से चलते थे।
बिहार के दो बार सीएम रहे कर्पूरी ठाकुर।
Bharat Ratna Karpuri Thakur : गरीबों-पिछड़ों और अति पिछड़ों के उत्थान के लिए जीवन भर अलख जलाने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न मिलने जा रहा है। सबसे बड़ा पुरस्कार मिलने से बिहार के लोग खुश हैं। लोगों का मानना है कि देर से ही सही जननायक को असली सम्मान मिला है। कर्पूरी ठाकुर ऐसा नाम जिसने राजनीति में सामाजिक न्याय की पटकथा लिखी। एक ऐसी राजनीति की शुरुआत की जिसने बाद की सियासत के लिए नेताओं को रास्ता दिखाया।
लालू और नीतीश ने इन्हीं से सीखा राजनीति का ककहरा
बिहार की राजनीति के दो दिग्गज चेहरे लालू यादव और नीतीश कुमार इन्हीं कर्पूरी ठाकुर के शागिर्द हैं। कर्पूरी ठाकुर से ही इन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा और अपनी राजनीतिक पारी संवारी और उसे आकार दिया। यह अलग बात है जीवन भर कांग्रेस विरोधी राजनीति का बिगुल फूंकने वाले कर्पूरी ठाकुर के सिद्धांतों एवं दर्शन तिलांजलि देकर ये कांग्रेस के साथ आ गए। कहने को कोई कह सकता है कि सत्ता और सियासत की अपनी मजबूरी होती है। यहां हम उसकी बात नहीं करेंगे।
पहली बार चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं थे
यहां हम कर्पूरी ठाकुर के संघर्षों, त्याग और उनकी जीवन शैली के कुछ किस्से आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे थे गरीबों के मसीहा कर्पूरी ठाकुर। साल 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जब पहली बार ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए वह तैयार हुए, तो उनके पास पैसे नहीं थे। चुनाव लड़ने के लिए कार्यकर्ताओं ने चंदा जुटाया। तब कर्पूरी ने तय किया कि चवन्नी-अठन्नी तथा दो रुपये से ज्यादा सहयोग के रूप में नहीं लेंगे।
विदेश में पहना फटा हुआ कोट
विधायक बनने पर उनका चयन आस्ट्रिया जाने वाले विधायकों के शिष्टमंल में हुआ लेकिन उनके पास कोट नहीं था। दोस्त से उधार लिया लेकिन वह कोट भी फटा हुआ था। अपने विदेश दौरे पर उन्होंने इस फटे कोट को पहना। सीएम रहते हुए अपने लिए कार नहीं खरीद सके। रिक्शे से चलते थे। अंतरजातीय विवाह में शामिल होने के लिए वह लड़का-लड़की के घर पहुंच जाते थे।
परिवार के लिए एक मकान तक नहीं
64 साल की उम्र में जब दिल का दौरा पड़ने से कर्पूरी का निधन हुआ तो दो बार के सीएम रहे कर्पूरी के पास संपत्ति के नाम पर कुछ नहीं था। यहां तक कि अपने परिवार के लिए वह एक मकान का बंदोबस्त नहीं कर पाए। कर्पूरी ठाकुर के संघर्षों एवं उनके राजनीतिक फैसले के बारे में एक से बढ़कर एक किस्से हैं। जो उन्हें सही मायने में गरीबों का मसीहा और जन नेता का दर्जा देते हैं।
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