Gandhi Jayanti 2022: महात्मा गांधी का जीवन परिचय, इस तरह मिला था बापू नाम, बिहार से शुरू की थी आजादी की लड़ाई

Gandhi Jayanti 2022 : दक्षिण अफ्रिका में जो घटनाएं मोहनदास करमचन्द गांधी के साथ घटीं, उसी ने उन्हें महात्मा बना दिया। सबसे पहले डरबन की एक अदालत में उन्हें यूरोपीय मजिस्ट्रेट ने पगड़ी उतारने के लिए कहा था, बापू ने मना कर दिया और कोर्ट रूम से बाहर चले गए। कुछ दिनों बाद, प्रिटोरिया की यात्रा के दौरान, उन्हें प्रथम श्रेणी के रेल डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया था। इसी के बाद उन्होंने हक की लड़ाई शुरू कर दी थी।

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मोहनदास करमचन्द गांधी कुछ इस तरह से बने थे देश के राष्ट्रपिता

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ डिजिटल
मुख्य बातें
  • महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था
  • 13 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी की शादी कस्तूरबा गांधी से हो गई थी
  • 1915 में गांधी भारत लौट आए और वो देश की आजादी के लिए काम करने लगे

भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लोग कई नामों से जानते हैं, प्यार से लोग उन्हें बापू कहते हैं, तो अहिंसा के पथ पर चलने के कारण अहिंसा का पुजारी भी कहा जाता है, लेकिन असली नाम जो उनके माता-पिता से मिला था, वो था मोहनदास करमचन्द गांधी। मोहनदास जब गुजरात से लंदन पढ़ाई के लिए निकले, कमाने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए तो वो एक साधारण शख्स ही थे, लेकिन अफ्रीका में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई के बाद जब भारत लौटे तो इनकी शुरूआत महात्मा बनने की हो चुकी थी।

बापू का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में हुआ था। मोहनदास के पिता एक छोटे से रियासत काठियावाड़ के दीवान थे। मोहनदास पढ़ने में औसत दर्जे के विद्यार्थी थे। शुरूआती पढ़ाई स्थानीय लेवल पर ही हुई। बाद में अल्बर्ट हाई स्कूल, राजकोट से पढ़ाई की।

13 साल की उम्र में शादीमोहनदास जब 13 साल के थे, तभी उनकी शादी कस्तूरबा गांधी से हो गई थी। 15 साल की उम्र में उन्हें पिता बनने का भी सौभाग्य हुआ, लेकिन ये बच्चा ज्यादा दिनों तक नहीं बचा। शादी के बाद पढ़ाई लिखाई छुट गई थी। हालांकि वो कस्तूरबा गांधी को जरूर पढ़ाना चाहते थे। इसी बीच उनके बड़े भाई लक्ष्मीदास ने उनकी मदद की। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने ही मोहनदास को कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड भेजा था।

लंदन की यात्रागांधी जी के जीवन पर उनकी मां पुतलीबाई का गहरा प्रभाव था। लोगों की सेवा करने का भाव वहीं से उत्पन्न हुआ था। उनकी मां पूरी तरह से धर्म में लीन रहती थीं, वे सिंगार या गहनों की ज्यादा परवाह नहीं करती थीं। अक्सर उपवास करती थीं और जब भी परिवार में कोई बीमार होता, उसकी सेवा में लग जातीं। मां पुतलीबाई ने गांधी को तभी विदेश जाने दिया जब उन्होंने एक पवित्र और सरल जीवन जीने की कसम खाई। हालांकि लंदन में गांधी थोड़े बहुत पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में आ गए थे, लेकिन जल्द ही वापस अपनी मां के बताए रास्ते पर चलने लगे।

दक्षिण अफ्रीका1893 में, गांधी एक मुकदमे की पैरवी के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गए। जिसके बाद वे 21 साल तक वहां रहे और अधिकारों के लिए लड़ते रहे। भेदभाव के खिलाफ निचली अदालतों में गिरमिटिया मजदूरों की रक्षा करते रहे। दक्षिण अफ्रीका में काले और गोरो के बीच बहुत भेदभाव था, वहां उन्होंने इसकी लड़ाई लड़ी। यहां से मोहनदास करमचन्द गांधी, उन रास्तों पर चल पड़े, जिसने उन्हें महात्मा गांधी बना दिया। 1915 में वे भारत लौट आए।

भारत लौटेदक्षिण अफ्रीका में लंबे समय तक रहने और अंग्रेजों की नस्लवादी नीति के खिलाफ उनकी सक्रियता के बाद, गांधी ने एक राष्ट्रवादी के रूप में ख्याति अर्जित कर ली थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ, स्वतंत्रता की लड़ाई में भारत के संघर्ष में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। इसके बाद बापू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और 1920 में नेतृत्व संभालने से पहले कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिसे उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया था।

पहला सत्याग्रह1917 में चंपारण आंदोलन गांधी के भारत आगमन के बाद उनकी पहली बड़ी सफलता थी। क्षेत्र के किसानों को ब्रिटिश जमींदारों द्वारा नील उगाने के लिए मजबूर किया गया था, जो एक नकदी फसल थी, लेकिन इसकी मांग घट रही थी। किसानों ने मदद के लिए गांधीजी की ओर रुख किया। अहिंसक आंदोलन की रणनीति का पालन करते हुए, गांधी ने प्रशासन को फैसला बदलने के लिए मजबूर कर दिया और अधिकारियों से रियायतें प्राप्त करने में सफल रहे। इस अभियान ने गांधी के भारत आगमन को चिह्नित कर दिया।

मिला बापू और महात्मा नामकहा जाता है कि चंपारण सत्याग्रह के दौरान ही एक गुमनाम किसान ने मोहनदास करमचन्द गांधी से प्रभावित होकर उन्हें बापू कहना शुरू किया था। जिसके बाद यह नाम इतना प्रचलित हो गया कि लोग उन्हें बापू ही पुकारने लगे। हालांकि बापू नाम का श्रेय तब के देश के बड़े उद्योगपतियों में से एक जमनालाल बजाज को भी जाता है। बजाज खुद को गांधी का पांचवा बेटा कहते थे। वहीं मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा सबसे पहले कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने दिया था। वहीं राष्ट्रपिता का संबोधन सबसे पहले सुभाषचंद्र बोस ने किया था।

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शिशुपाल कुमार author

पिछले 10 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए खोजी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में एक अपनी समझ विकसित की है। जिसमें कई सीनियर सं...और देखें

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