आम चुनाव 2024: क्या ओपीएस में कांग्रेस को दिखाई दे रही है अपनी जीत
आम चुनाव 2024 में किसी तरह का बदलाव होगा या मौजूदा सरकार में जनता एक बार और भरोसा करेगी इसके लिए तो इंतजार करना होगा। लेकिन हिमाचल प्रदेश में जीत के बाद कांग्रेस को लगता है कि पुरानी पेंशन स्कीम उनके लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है।
आम चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस की तैयारी
हाल ही में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी और कांग्रेस के लिए बराबरी पर रहे। गुजरात में जहां बीजेपी को प्रचंड जीत हासिल हुए तो हिमाचल ने अपने परंपरा को नहीं तोड़ा और बीजेपी की जगह कांग्रेस के हाथ में सत्ता आ गई। अगर बात कांग्रेस के ट्रंप कार्ड ओपीएस यानी ओल्ड पेंशन स्कीम की करें तो गुजरात के लोगों ने इस पर भरोसा नहीं दिखाया। लेकिन हिमाचल प्रदेश में ओपीएस का कार्ड काम कर गया और कांग्रेस 40 सीट जीतने में कामयाब हो गई। इन सबके बीच जब देश 2024 में आम चुनाव में आने वाली सरकार का फैसला करेगा तो कांग्रेस को लगता है कि ओपीएस का मुद्दा उसके लिए संजीवनी की तरह साबित हो सकता है। लेकिन क्या वास्तव में ओपीएस का मुद्दा आम चुनाव 2024 के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बनेगा। क्या बीजेपी उसकी काट निकाल पाने में कामयाब होगी। इस सवाल का जवाब अगले साल छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के नतीजों से स्पष्ट होगा। 2023 के अंत में यानी दिसंबर के महीने में इन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होंगे जिन्हें दिल्ली की सत्ता के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जाएगा।
इन राज्यों पर भी नजर
अगर बात इन तीनों राज्यों की करें तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में है और मध्य प्रदेश में बीजेपी सत्ता पर काबिज है। इनमें से दो राज्यों छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम पहले से लागू है और हिमाचल प्रदेश में ओपीएस के दम पर कांग्रेस सत्ता में है। शपथ लेने के बाद हिमाचल के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि ओपीएस उनके लिए सिर्फ चुनावी मुद्दा नहीं है उसे जमीन पर उतारने का दृढ़ इरादा है। अगर हिमाचल की तरह छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ओपीएस के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं तो निश्चित तौर पर पार्टी 2024 के चुनाव के लिए इसे अहम मुद्दा बनाएगी।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि राजनीति में हर दल का लक्ष्य सत्ता हासिल करना होता है। सत्ता प्राप्ति के लिए तरह तरह की रणनीति पर काम किया जाता है। अगर कांग्रेस ने ओपीएस को मुद्दे को जोर शोर से उठाया तो उसे छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करके दिखाया भी। जब हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे तो पार्टी ने कहा कि उसके ओपीएस सिर्फ चुनावी मुद्दा नहीं है बल्कि वो कर्मचारियों के हितों के प्रति सजग भी है। अगर हिमाचल के चुनावी नतीजों को देखें तो एक बात साफ है कि ओपीएस का मुद्दा प्रभावी रहा। ऐसे में निश्चित तौर पर उदाहरण के साथ कांग्रेस जब जनता के बीच यह कहेगी कि हम सिर्फ वादे नहीं करते उसे निभाते भी हैं तो उसका असर निश्चित तौर पर होगा। लेकिन अगर गुजरात के नतीजों की बात करें तो बीजेपी की जीत से साबित होता है कि आम चुनाव में सिर्फ ओपीएस ही एक मुद्दा नहीं हो सकता है। गुजरात और हिमाचल की जमीनी हकीकत में फर्क है। हिमाचल में जहां ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियों पर आश्रित हैं उस तरह की तस्वीर गुजरात की नहीं है। लेकिन हिंदी हार्टलैंड के जो प्रदेश हैं जहां औद्योगिकरण उस स्तर का नहीं वहां यह मुद्दा प्रभावी हो सकता है।
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