केवल एक जहाज में 400 टन सोना लूटकर ले गए अंग्रेज, जर्मन लेखिका बोलीं भारत मांगे ब्रिटेन से हर्जाना
British rule in India : अंग्रेजों की लूट कितनी बड़ी होती थी यह बताने के लिए उन्होंने एक स्रोत के हवाले से कहा है कि अंग्रेज भारत से 800,000 पाउंड जो कि करीब 400 टन था, केवल एक जहाज में भरकर ब्रिटेन ले गए। रिथ का कहना है कि लूट की इस घटना का जिक्र अभिलेखागारों में दर्ज है।
केवल एक जहाज में 400 टन सोना लूटकर ले गए अंग्रेज।
British rule in India : गुलामी के दौर में भारत की अथाह संपत्तियां लूटी गईं। मुगल हों या अंग्रेज विदेशी आक्रांता अरबों मूल्य की संपत्तियां लूटकर अपने देश ले गए। इस लूट का जिक्र कई किताबों एवं अभिलेखों में मिलता है। भारत से स्वर्ण (सोने) की लूट की एक बड़ी घटना का जिक्र जर्मनी की लेखिका मारिया रिथ ने अपने ब्लाग में किया। रिथ ने अपने ब्लाग में अलग-अलग स्रोतों का हवाला देकर भारत में अंग्रेजों के अत्याचार और उनकी लूट का ब्यौरा दिया है। रिथ का दावा है कि ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेज भारत से टैक्स के रूप में खरबों ले गए। संबंधित खबरें
'लूट की घटना का जिक्र अभिलेखागारों में दर्ज'अंग्रेजों की लूट कितनी बड़ी होती थी यह बताने के लिए उन्होंने एक स्रोत के हवाले से कहा है कि अंग्रेज भारत से 800,000 पाउंड जो कि करीब 400 टन था, केवल एक जहाज में भरकर ब्रिटेन ले गए। रिथ का कहना है कि लूट की इस घटना का जिक्र अभिलेखागारों में दर्ज है। वह कहती हैं कि सोने की इतनी मात्रा कई देशों के स्वर्ण भंडार से अधिक है। रिथ ने पूछा है कि इस अत्याचार और लूट के लिए ब्रिटेन को क्या भारत को हर्जाना नहीं देना चाहिए?
नामीबिया में जर्मनी शासन का हवाला दियारिथ का स्पष्ट रूप से मानना है कि ब्रिटेन को भारत को हर्जाना देना चाहिए। इसके लिए उन्होंने नामीबिया में जर्मनी शासन का हवाला दिया है। जर्मनी की इस लेखिका ने कहा है कि 1885 से लेकर 1918 तक नामीबिया, जर्मनी का उपनिवेश था। उपनिवेश के दौरान जर्मनी ने वहां के लोगों पर जुल्म एवं अत्याचार किए। इस अत्याचार के खिलाफ नामीबिया के दो जनजातीय समुदायों ने हर्जाने के लिए जर्मनी के खिलाफ केस किया। बाद में जर्मनी ने अपने अत्याचारों के लिए माफी मांगी और हर्जाना देने के लिए तैयार हुआ।
लेख कई स्रोतों पर आधारित'ब्रिटिश लूट ऑफ इंडिया, शुड इंडिया नॉट डिमांड रिपारेशन्स' नाम से लिखे ब्लाग में रिथ ने कहा है कि उनका यह लेख कई स्रोतों पर आधारित है। तीन अंशों के इस लेख में कई स्क्रीनशॉट्स एवं लिंक्स हैं। रिथ के मुताबिक इन स्रोतों पर आगे रिसर्च किया जा सकता है और न्याय पाने में इनसे मदद मिल सकती है। रिथ ने आगे कहा है कि भारत में एक तबका ऐसा भी है जो ब्रिटिश शासन की प्रशंसा करता है। ऐसे लोग अंग्रेजों के रेलवे, शिक्षा, इमारतों, सड़कों के निर्माण का हवाला देते हैं। हालांकि रिथ का मानना है कि अंग्रेजों के अत्याचार नाजियों की तरह थे। इसलिए अंग्रेजों की जो परोपकारी छवि है गढ़ी गई है उसे बदला जाना चाहिए और अत्याचारों एवं लूट के लिए जो जिम्मेदार थे उन्हें जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
रिथ का कहना है कि सच्चाई सामने आनी चाहिए और उन लाखों भारतीयों जिन्हें अत्याचार, जुल्म, अपमान एवं यातनाएं सहनी पड़ीं, उनके साथ न्याय होना चाहिए। संबंधित खबरें
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आलोक कुमार राव author
करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने...और देखें
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