इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पोते ने आज भी संभाल कर रखा है बापू का चश्मा, खुद बताई दिलचस्प कहानियां

Freedom Fighter Story: इंदौर में एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पोते ने देश की आजादी के आंदोलन, महात्मा गांधी और ब्रितानी राज का अंत करने वाले अन्य राष्ट्रीय नायकों पर आधारित 1,000 से ज्यादा डाक टिकट जुटाए हैं। इस व्यक्ति के नायाब संग्रह में महात्मा गांधी का वह चश्मा भी है जो बापू ने उसके दादा को तोहफे के तौर पर दिया था।

Kanhaiyalal Khadiwala

जवाहरलाल नेहरू के साथ कन्हैयालाल खादीवाला।

Freedom Movement: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल खादीवाला के पोते आलोक खादीवाला (53) ने मंगलवार को बताया, 'मुझे डाक टिकट जमा करने का शौक बचपन से है। मेरी खास दिलचस्पी देश के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन और इसके नायकों पर आधारित डाक टिकट जुटाने में है।' खादीवाला ने कहा कि उनके पास वर्ष 1947 में देश के आजाद होने से लेकर अब तक जारी 1,000 से ज्यादा डाक टिकट हैं जो स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन, इसके नायकों और राष्ट्रीय प्रतीकों पर आधारित हैं।

खादीवाला ने बताए कुछ खास किस्से

उन्होंने बताया कि ये डाक टिकट जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद और लक्ष्मीबाई जैसी हस्तियों के मातृभूमि के प्रति योगदान को नमन करने के लिए गुजरे बरसों में जारी किए गए हैं। खादीवाला ने बताया कि उनके संग्रह में भारतीय डाक टिकटों के अलावा वे डाक टिकट और सिक्के भी हैं जो महात्मा गांधी और अन्य राष्ट्रीय नायकों पर संयुक्त राष्ट्र, ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, इंडोनेशिया और दूसरे देशों ने जारी किए हैं।

सांप्रदायिक दंगे को शांत कराने पहुंचे थे

डाक टिकटों के 53 वर्षीय संग्राहक ने महात्मा गांधी का वह चश्मा भी बड़े जतन से संजो रखा है जो बापू ने उनके दादा कन्हैयालाल खादीवाला को भेंट किया था। उन्होंने बताया, 'वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में बनी सरकार ने मेरे दादा को राजस्थान के अजमेर का प्रभारी बनाकर वहां भड़के सांप्रदायिक दंगे को शांत करने भेजा था। अमन कायम होने के बाद वह महात्मा गांधी को अजमेर के हालात से अवगत कराने दिल्ली गए थे। इस दौरान बापू ने मेरे दादा को अपना चश्मा भेंट किया था।'

डाक टिकटों का नि:शुल्क आदान-प्रदान

खादीवाला ने यह भी कहा कि कोविड-19 के प्रकोप से पहले डाक टिकट संग्राहक डाक टिकटों का नि:शुल्क आदान-प्रदान करते थे, लेकिन इस महामारी के कारण डिजिटलीकरण को काफी बढ़ावा मिलने से अब हालात काफी बदल गए हैं। उन्होंने कहा, 'कोविड-19 के प्रकोप के बाद कागज का इस्तेमाल कम होता जा रहा है और डाक टिकट जुटाना खासा महंगा शगल बन गया है क्योंकि दुर्लभ डाक टिकटों के बदले ऊंची कीमत मांगी जाने लगी है।'
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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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