औरंगजेब से पहले मुहम्मद गोरी और महमूद शाह ने तुड़वाया था भोलेनाथ का मंदिर, जानें ज्ञानवापी का इतिहास

History Of Gyanvapi: काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष अपने-अपने दावे करते हैं। मगर इतिहास के पन्नों में इसपर क्या कहा गया है। ये पूरा विवाद क्या है आपको इस रिपोर्ट में समझाते हैं।

Gyanvapi History

औरंगजेब से पहले किन-किन मुस्लिम शासकों ने तुड़वाया था विश्वनाथ मंदिर?

Gyanvapi History: ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे करने के लिए सोमवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम पहुंची थी। करीब 4 घंटे के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सर्वे को रोक दिया गया। अदालत ने 26 जुलाई की शाम तक जिला जज के सर्वे की कार्यवाही के आदेश पर रोक लगा दी। हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी स्थल पर नियमित पूजा के अधिकार की मांग की गई थी। आपको काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के उस इतिहास से रूबरू करवाते हैं, जिस पर विवाद छिड़ा हुआ है।

मुहम्मद गोरी ने लूट लिया और तुड़वाया महादेव का मंदिर

जानकार बताते हैं कि ये 11वीं शताब्दी की बात है, जब जिस सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था उस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था जिसे राजा हरीशचन्द्र ने बनवाया था। इसका पौराणिक उल्लेख किया है। सन् 1194 में इस भव्य मंदिर को मुहम्मद गोरी ने लूट लिया और फिर इसे तुड़वा दिया था। जिसके बाद स्थानीय लोगों ने मिलकर इसे फिर से बनवाया। इसके बाद जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने सन् 1447 में इसे फिर तुड़वा दिया। जिसके बाद राजा टोडरमल की मदद से साल 1585 में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया।

शाहजहां और औरंगजेब ने महादेव का मंदिर तुड़वाया

महादेव का ये मंदिर मुस्लिम शासकों की आंखों में कांटे की तरह चुभता था। यही वजह है कि एक बार फिर शाहजहां ने सन् 1632 में इस भव्य मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया। लोगों ने फिर से इस मंदिर का निर्माण कराया। अब बारी थी औरंगजेब के तुगलकी फरमान की। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया और 2 सितंबर 1669 को मंदिर तोड़ने की प्रक्रिया पूरी हुई। विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर यहां ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ। अजीब बात ये थी कि मस्जिद के निर्माण में मंदिर की कृतियों का इस्तेमाल किया गया।

अहिल्याबाई होलकर ने कराया बचे हुए मंदिर का जीर्णोद्धार

साल 1752 से 1780 के बीच मंदिर मुक्ति की कोशिशें तेज हो गईं। मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति का प्रयास किया। कोशिश मुकम्मल हुई। इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने बचे हुए मंदिर का जीर्णोद्धार 1777-80 में करवाया। बचे हुए परिसर में अहिल्याबाई होलकर ने विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर पर सोने का छत्र बनवाया। उस वक्त ज्ञानवापी का मंडप ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने बनवाया था। वहीं महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।

मस्जिद परिसर में हैं देवी-देवताओं की प्रतिमाएं

काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में सबसे खास बात ये है कि विशालकाय नंदी का मुख आज भी उस मस्जिद की दीवार की ओर है। हिंदू पक्ष ये दावा करता है कि नंदी को महादेव का इंतजार है। वादियों का दावा है कि मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, हनुमान, आदि विश्वेश्वर, नंदीजी और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हैं। फिलहाल ये विवाद सुलझता नहीं दिख रहा है, मामला देश की अदालत में है और सभी को इंतजार है कि अदालत का अगला कदम किसके पक्ष में होगा।

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आयुष सिन्हा author

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