शेरे थापाः भारत-चीन जंग का वो हीरो, जिसने अकेले ही PLA के 79 जवानों को कर दिया था ढेर

अरुणाचल-पूर्व संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सांसद तपीर गाओ ने पिछले साल सितंबर में नयी दिल्ली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की थी और एक पत्र सौंपकर थापा को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार प्रदान करने का अनुरोध किया था। खांडू ने जनवरी में लाइमकिंग और नाचो के बीच रियो ब्रिज के पास थापा के स्मारक के निकट उनकी प्रतिमा का अनावरण किया था। लेकिन केंद्र सरकार की तरफ उनकी शहादत को अभी मान्यता नहीं मिल पाई है।

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हवलदार के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं। वे कहां रहते हैं? यह बहुत कम लोगों ही जानते हैं। (फाइलः @PBNS_India/@HeroesUniform)

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो

शेरे थापा...यह नाम शायद ही आपने कभी सुना हो। लेकिन थापा भारत-चीन जंग के हीरो थे। गुमनाम हीरो...उन्होंने तब अकेले ही चीनियों के हमलों का करारा जवाब दिया था। हालांकि, युद्ध के करीब 60 साल बाद भी उनकी शहादत को केंद्र सरकार की तरफ से पहचान और सम्मान का इंतजार है।

वह भारतीय सेना में एक हवलदार थे। नॉर्थ ईस्ट के अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू ने 2022 की शुरुआत में उन्हें लेकर एक सोशल मीडिया पोस्ट किया था। ट्वीट में कहा था, “हम सेना के थापा के बारे में बहुत कम जानते हैं। उन्होंने 1962 के युद्ध के दौरान ऊपरी सुबनसिरी सेक्टर में अकेले चीनी सेना के ताबड़तोड़ हमलों का जवाब दिया था।”

थापा की प्रतिमा के अनावरण के बाद खांडू का यह ट्वीट आया था।

आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, सेना की जम्मू-कश्मीर राइफल्स की दूसरी बटालियन के थापा ने नवंबर, 1962 में अरुणाचल के सुबनसिरी सेक्टर में हुई लड़ाई में अकेले 79 चीनी सैनिकों को मार गिराया था। साथ ही कई अन्य को घायल कर दिया था।

कर्नल के रूप में सेवानिवृत्त हुए थापा के कमांडिंग ऑफिसर-सेकेंड लेफ्टिनेंट अमर पाटिल ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि इतिहास के पन्नों में खोए इस शहीद को साठ बरस बाद भी पहचान नहीं मिली है। सेवानिवृत्त कर्नल बोले, “थापा को चीन-भारत सीमा से आने वाले रास्तों को कवर करने के लिए ऊपरी सुबनसिरी जिले में रियो ब्रिज के पास तमा चुंग चुंग रिज पर सुरक्षात्मक गश्त में तैनात किया गया था।”

बकौल पाटिल, “18 नवंबर, 1962 को (चीनी सेना) के लगभग 200 सैनिकों ने तमा चुंग चुंग रिज के रास्ते घुसपैठ की और 2-जेएके आरआईएफ के सुरक्षात्मक गश्ती दल पर हमला कर दिया। हवलदार थापा पहाड़ों पर सीमा की निगरानी कर रहे थे। उन्होंने जवाबी हमला किया, जिसमें देखते ही देखते कई चीनी सैनिक ढेर हो गए। वह बिना कुछ खाए लगातार गोलीबारी करते रहे। तीन दिन तक उनका पार्थिव शरीर वहीं पड़ा रहा।”

पाटिल ने कहा कि लड़ाई के दौरान चीनी सैनिकों के शवों का अंबार लग गया था। पाटिल के मुताबिक, “जब चीन की ओर से गोलीबारी बंद हो गई, तो थापा अपने बंकर से बाहर निकले। लेकिन मौत उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। एक घायल चीनी सैनिक ने गोली चलाई, जिसमें थापा शहीद हो गए।” उन्होंने कहा कि थापा की वीरतापूर्ण कार्रवाई ने 72 घंटे तक चीनी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोके रखा।

पाटिल ने कहा, “लड़ाई में, एक वरिष्ठ अधिकारी सहित 70 से अधिक चीनी सैनिकों के मारे जाने की बात कही गई है।” सेवानिवृत कर्नल ने कहा कि थापा को भले ही कोई पुरस्कार नहीं मिला हो, लेकिन उनकी बहादुरी को स्थानीय लोग याद करते हैं और उन्हें बहुत सम्मान देते हैं। भारतीय सेना ने बाद में बहादुर सैनिक को श्रद्धांजलि के रूप में रियो ब्रिज के पास एक स्मारक का निर्माण किया था।

साल 1928 में नेपाल में जन्मे थापा ने 27 दिसंबर, 1945 से 31 दिसंबर, 1956 तक जेके रेजीमेंट स्पेशल फोर्स में सेवाएं दी थीं और 1 जनवरी, 1957 को भारतीय सेना का हिस्सा बने थे। बाद में सूबेदार शेर बहादुर के मातहत उन्हें पलटन हवलदार नियुक्त किया गया था। हवलदार के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं, लेकिन वह कहां रहते हैं, इसके बारे में बहुत कम लोगों की जानकारी है। (पीटीआई-भाषा इनपुट्स के साथ)

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अभिषेक गुप्ता author

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