Surrogacy Law:'किराये की कोख' कानून के लाभ से सिंगल और अविवाहित महिलाएं बाहर क्यों, हाईकोर्ट ने मांगा स्पष्टीकरण

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से सोमवार को कहा कि वह कानून के तहत 'किराये की कोख' (सरोगेसी) प्रक्रिया के लाभ के दायरे से एकल और अविवाहित महिलाओं को बाहर रखने पर स्पष्टीकरण दे।

COURT on  Surrogacy

प्रतीकात्मक फोटो

तस्वीर साभार : भाषा

अदालत ने कहा कि सरोगेसी (विनियमन) कानून-2021 के तहत 'इच्छित महिला' (इन्टेन्डिंग वूमन) से आशय एक भारतीय महिला से है जो 'विधवा या तलाकशुदा' हो, मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सवाल किया कि इस प्रक्रिया के तहत आने के लिए एक महिला की पात्रता के साथ उसकी वैवाहिक स्थिति को जोड़ने के पीछे क्या तर्क है।

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न्यायमूर्ति संजीव नरुला की सदस्यता वाली पीठ ने पूछा 'इच्छित महिला के लिए वैवाहिक स्थिति क्यों? यहां तक कि उसका (विधवा या तलाकशुदा) कोई वैवाहिक जीवन नहीं होता, फिर भी यह भेदभाव क्यों? ' इस पर केंद्र सरकार की वकील ने कहा कि वह इस सवाल पर निर्देश मांगेगी। 'राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग' (एनएमसी) की ओर से अदालत में पेश वकील टी सिंहदेव ने कहा कि वह भी इस मुद्दे पर गौर करेंगे।

न्यायालय 44 वर्षीय एकल और अविवाहित महिला द्वारा अधिनियम की धारा 2(1)(एस) को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, क्योंकि यह धारा उसके जैसी महिलाओं को सरोगेसी प्रक्रिया के लाभ के दायरे से बाहर करती है। यह धारा केवल भारतीय विधवा या तलाकशुदा महिला को ही इसका लाभ उठाने की अनुमति देती है।

याचिका में उस विनियमन को भी चुनौती दी गई है जो एक 'एकल महिला' (विधवा या तलाकशुदा) को सरोगेसी प्रक्रिया का लाभ उठाने के लिए खुद के अंडाणु इस्तेमाल करने के लिए मजबूर करता है।याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि वह अपने जीवन में पहले शादी नहीं कर सकी थीं और अब 'सरोगेसी' के माध्यम से एक बच्चा पैदा करना चाहती हैं, लेकिन उम्र की वजह से उनके लिए स्वयं के युग्मकों का उपयोग करना चिकित्सकीय रूप से उचित नहीं है और वह किसी मादा दाता का युग्मक (गैमीट)चाहती हैं।

अदालत को अवगत कराया गया कि आनुवांशिक रूप से जुड़े रहने के लिए महिला के भाई ने अपना युग्मक देने पर रजामंदी जताई है याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के लिए अधिनियम, 2021 के प्रावधान एक तरह से पाबंदी हैं, जो याचिकाकर्ता को सरोगेसी के माध्यम से बच्चे को जन्म देने से रोकते हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि मादा युग्मक का किसी महिला की वैवाहिक स्थिति के साथ कोई संबंध नहीं है और सरकार अपने नागरिकों के प्रजनन विकल्पों को विनियमित नहीं कर सकती है। उच्च न्यायालय इस मामले में अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को करेगा।

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