हिमाचल प्रदेश संकट: अभी खत्म नहीं हुआ सुक्खू सरकार का संकट, अयोग्य घोषित छह विधायक पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

Himachal Pradesh Crisis: बागी कांग्रेस विधायकों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सत्यपाल जैन ने दलील दी थी कि बागी विधायकों को केवल कारण बताओ नोटिस दिया गया था और नोटिस का जवाब देने के लिए अनिवार्य रूप से सात दिन का समय दिया जाता है, लेकिन उन्हें कोई समय नहीं दिया गया।

Sukhwinder Singh Sukhu

कांग्रेस के बागी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका

तस्वीर साभार : भाषा

Himachal Pradesh Crisis News: हिमाचल प्रदेश में हाल के राज्यसभा चुनावों में क्रॉस वोटिंग के बाद अयोग्य घोषित किये गये छह कांग्रेस विधायकों ने अपनी अयोग्यता को मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। पूर्व विधायकों ने राज्य विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया के 29 फरवरी के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है। राज्यसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हर्ष महाजन के पक्ष में मतदान करने वाले कांग्रेस के ये बागी विधायक बाद में पार्टी व्हिप का उल्लंघन करते हुए बजट पर मतदान से अनुपस्थित रहे थे। सत्तारूढ़ कांग्रेस ने इसी आधार पर उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग की थी।

बागी विधायकों द्वारा क्रॉस वोटिंग किये जाने के परिणामस्वरूप कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी को राज्यसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। अयोग्य ठहराए गए विधायकों में राजिंदर राणा, सुधीर शर्मा, इंदर दत्त लखनपाल, देविंदर कुमार भुट्टू, रवि ठाकुर और चैतन्य शर्मा शामिल हैं। उन्हें अयोग्य घोषित किये जाने के बाद सदन में सदस्यों की मौजूदा संख्या 68 से घटकर 62 रह गई है, जबकि कांग्रेस विधायकों की संख्या 40 से घटकर 34 हो गई। बागी विधायकों ने अपनी याचिका में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए दावा किया है कि उन्हें अयोग्यता याचिका पर जवाब देने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं मिला।

व्हिप के उल्लंघन के कारण ठहराए गए थे आयोग्य

हिमाचल प्रदेश के इतिहास में यह पहली बार था कि किसी विधायक को दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया था। अध्यक्ष ने 29 फरवरी को एक संवाददाता सम्मेलन में छह विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने की घोषणा करते हुए कहा था कि वे (बागी विधायक) दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराए गए हैं, क्योंकि उन्होंने व्हिप का उल्लंघन किया था। उन्होंने फैसला सुनाया कि वे तत्काल प्रभाव से सदन के सदस्य नहीं रहेंगे। उन विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने की अर्जी संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन द्वारा उस व्हिप की अवहेलना करने के लिए दी गई थी, जिसके तहत उन्हें सदन में उपस्थित रहने और बजट के लिए मतदान करने की आवश्यकता थी।

जवाब देने के लिए नहीं मिला पर्याप्त समय

बागी कांग्रेस विधायकों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सत्यपाल जैन ने दलील दी थी कि बागी विधायकों को केवल कारण बताओ नोटिस दिया गया था और न तो याचिका की प्रति, न ही अनुलग्नक प्रदान किया गया था। जैन ने कहा था कि नोटिस का जवाब देने के लिए अनिवार्य रूप से सात दिन का समय दिया जाता है, लेकिन उन्हें कोई समय नहीं दिया गया। अध्यक्ष ने कहा कि इन विधायकों ने उपस्थिति पंजी पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन बजट पर मतदान के दौरान सदन से अनुपस्थित रहे थे। इन सदस्यों को व्हाट्सऐप और ई-मेल के माध्यम से व्हिप का उल्लंघन करने के लिए नोटिस जारी किया गया था और सुनवाई के लिए उपस्थित होने के लिए कहा गया था। अपने 30-पन्नों के आदेश में उन्होंने कहा कि नोटिस का जवाब देने के लिए समय देने संबंधी बागी विधायकों के वकील सत्यपाल जैन की दलील पर विचार नहीं किया गया, क्योंकि ''सबूत बिल्कुल स्पष्ट थे।'' अध्यक्ष ने कहा था कि लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने और "आया राम, गया राम" की घटना पर रोक लगाने के लिए ऐसे मामलों में त्वरित निर्णय देना आवश्यक है। अध्यक्ष ने कहा कि इस फैसले का इन विधायकों द्वारा राज्यसभा चुनाव में ‘क्रॉस वोटिंग’ से कोई संबंध नहीं है।

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