महाकाल मंदिर: ब्रह्मा ने बनवाया, इल्तुमिश ने तोड़ा और लूटा, फिर इस मराठा ने लौटाया गौरव
Mahakal Corridor: महाकाल का प्राचीनतम उल्लेख पुराणों में मिलता है। जिसे ब्रह्मा जी ने बनवाया था। इसके अलावा एक कहानी के अनुसार 600 ईसा पूर्व में राजा चंदा प्रद्योत ने राजकुमार कुमारसेन की महाकाल मंदिर की कानून-व्यवस्था की देखभाल के लिए नियुक्ति का भी उल्लेख है। इसके अलावा चौथी और तीसरी ईसा पूर्व उज्जैन की मुद्राओं में भी भगवान शिव की आकृति अंकित पाई गई है।
मुख्य बातें
- महाकवि कालीदास के उपन्यास मेघदूतम में भी महाकाल मंदिर का उल्लेख मिलता है।
- महाकाल मंदिर को दिल्ली के शासक इल्तुमिश के दौर में लूटा गया और उसे तोड़ा गया।
- उज्जैन की लोकेशन खगोल शास्त्र में भी उसे महत्व स्थान दिलाती है।
पुराणों में जिक्र
महाकालेश्वर मंदिर की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, महाकाल का प्राचीनतम उल्लेख पुराणों में मिलता है। जिसे ब्रह्मा जी ने बनवाया था। इसके अलावा एक कहानी के अनुसार 600 ईसा पूर्व में राजा चंदा प्रद्योत ने राजकुमार कुमारसेन की महाकाल मंदिर की कानून-व्यवस्था की देखभाल के लिए नियुक्ति का भी उल्लेख है। इसके अलावा चौथी और तीसरी ईसा पूर्व उज्जैन की मुद्राओं में भी भगवान शिव की आकृति अंकित पाई गई है।
वहीं महाकवि कालीदास के उपन्यास मेघदूतम में भी मंदिर का उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार भव्य मंदिर की नींव और चबूतरा पत्थरों से बनाया गया था और मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका था। हालांकि गुप्त काल से पहले मंदिर पर कोई शिखर नहीं था, छतें लगभग प्लेन थीं। इसके बाद 7वीं शताब्दी में बाण भट्ट के कादंबिनी में महाकाल मंदिर का वर्णन मिलता है। 11 वीं शताब्दी में राजा भोज ने महाकाल मंदिर के शिखर को ऊंचा करवाया था।
इल्तुमिश ने तोड़ा और लूटा
12 वीं शताब्दी में जब दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। उसके बाद से उज्जैन का प्राचीन गौरव कम होता गया। मध्य प्रदेश सरकार की उज्जैन पर आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार महाकाल मंदिर को दिल्ली के शासक इल्तुमिश के दौर में लूटा गया और उसे तोड़ दिया गया था। और इस बात का उल्लेख इल्तुमिश के समय के इतिहासकार मिनहाजुद्दीन सिराज द्वारा फारसी भाषा में लिखी गई किताब तबकात-ए-नासिरी में भी मिलता है। इल्तुमिश ने 1234 ईसवी में महाकाल मंदिर पर हमला किया था।
मराठाओं ने फिर वापस दिलाया गौरव
इसके बाद जब 17 वीं शताब्दी में मालवा पर मराठाओं का आधिपत्य स्थापित हुआ, तो इसके बाद से उज्जैन का खोया हुआ गौरव धीरे-धीरे वापस लौटने लगा। महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने कराया था। बाद में उन्हीं की प्रेरणा पर यहां सिंहस्थ समागम की भी दोबारा शुरुआत हुई।
बेहद खास है लोकेशन
उज्जैन की लोकेशन खगोल शास्त्र में भी उसे महत्व स्थान दिलाती है। उज्जैन के नजदीक से कर्क रेखा गुजरती है। और प्राचीन समय में जो देशांतर उज्जैन से गुजरता है, उसका आज के दौर के ग्रीनविच जैसा महत्व था। इसीलिए पुराने समय में उज्जैन के देशांतर के साथ टाइम का निर्धारण किया जाता था। इसीलिए उज्जैन प्राचीन समय से कालगणना का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।
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प्रशांत श्रीवास्तव author
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