क्यों सबसे घातक माने जाते हैं MARCOS कमांडो, नाम सुनते ही दुश्मन के चेहरे पर दिखता है मौत का खौफ
इंडियन नेवी की स्पेशल फोर्स को दुनिया मार्कोस स्पेशलाइज्ड कमांडोज के नाम से जानती है। ये किसी भी टास्क को पूरा करके ही दम लेती है।
क्यों सबसे घातक माने जाते हैं MARCOS कमांडो
MARCOS Commando: जम्मू-कश्मीर में हो रहे जी-20 समिट में अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। सुरक्षा की कमान एनएसजी और मार्कोस कमांडो को दी गई है। इसके अलावा सेना और राज्य पुलिस भी यहां चप्पे-चप्पे पर तैनात है। दुनिया की सबसे ताकतवर कमांडो यूनिट में से एक माने जाने वाले मार्कोस कमांडो की तैनाती बताती है कि ये समिट भारत के लिए कितना अहम है। इसी सिलसिले में हम आज आपको इन्ही मार्कोस के बारे में बता रहे हैं।
मार्कोस कमांडो (Marcos) की ताकत का लोहा दुनिया भी मानती है। इसकी ट्रेनिंग ऐसी है कि हजारों में से सिर्फ एक का ही सिलेक्शन होता है। करीब तीन साल की सख्त ट्रेनिंग के बाद ही किसी सैनिक को मार्कोस बैच मिलता है। इनकी ट्रेनिंग के बारे में आम इंसान सोच भी नहीं सकता। बेहद सख्त ट्रेनिंग इन्हें दुनिया का सबसे मजबूत कमांडो बना देती है। इनका नाम सुनते ही दुश्मनों के चेहरे पर मौत का खौफ दिखने लगता है।
क्या है मार्कोस कमांडो
इंडियन नेवी (Indian Navy) की स्पेशल फोर्स को दुनिया मार्कोस स्पेशलाइज्ड कमांडोज के नाम से जानती है। ये किसी भी टास्क को पूरा करके ही दम लेती है। अमेरिकी नेवी सील की तर्ज पर मार्कोस खिलाफ जल, थल और वायु हर जगह मोर्चा लेकर दुश्मनों पर धावा बोल देती है। इसे नेवी सील से भी खतरनाक और बेहतर माना जाता है। मार्कोस कमांडो बनने से पहले सैनिकों को नेवी सील के साथ ट्रेनिंग करने के लिए अमेरिका भेजा जाता है। यहां ट्रेनिंग के दौरान साफ हो चुका है कि मार्कोस ही बेहतर हैं। इसका गठन 1987 में हुआ था। तब ये इसने हर मिशन में सफलता हासिल की है। 26-11 का मुंबई हमला इसका सबूत है।
मार्कोस की ट्रेनिंग
इनकी ट्रेनिंग इतनी सख्त है कि आम इंसान एक दिन भी नहीं टिक सकता। इसमें शामिल होने की प्रक्रिया बेहद कठिन है। चुने गए सैनिकों को तीन साल की सख्त ट्रेनिंग मिलती है। इस ट्रेनिंग में मुश्किल से कुछ सैनिक ही टिक पाते हैं। 24 घंटे में से सिर्फ 4 घंटे ही सोने के लिए मिलते हैं। इसके बाद ट्रेनिंग का दौर शुरू हो जाता है। ट्रेनिंग सुबह 4 बजे से शुरू होकर देर शाम तक चलती है।
इस दौरान जवान की पीठ पर 25-30 किलो वजन लदा होता है। जवान कमर तक कीचड़ में धंसकर 800 मीटर की दौड़ पूरी करते हैं। इसके अलावा समुद्र और हड्डी जमा देने वाली बर्फ में भी कड़ी ट्रेनिंग होती है। इन्हें 8-10 हजार मीटर की ऊंचाई से पैराशूट के साथ कूदने की ट्रेनिंग भी दी जाती है। अंत में इन्हें अमेरिका में नेवी सील के साथ ट्रेनिंग का और दौर पूरा करने के लिए भेजा जाता है। इस ट्रेनिंग को पूरा करने वाला ही मार्कोस कमांडो बनता है।
दुश्मनों के लिए मौत का दूसरा नाम
20 साल उम्र वाले हर10 हजार युवा सैनिकों में एक का सिलेक्शन मार्कोस फोर्स के लिए होता है। इसके बाद इन्हें अमेरिकी और ब्रिटिश सील्स के साथ तीन साल की कड़ी ट्रेनिंग करनी होती है। इस सख्त ट्रेनिंग के बाद जवान को मार्कोस का बैच मिलता है और वह एक कमांडो बन जाता है। दुश्मनों के बीच कहावत आम है कि मार्कोस कमांडो कभी भी, कहीं भी पहुंच सकते हैं। कुल मिलाकर मार्कोस दुश्मनों के लिए मौत का दूसरा नाम है।
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अमित कुमार मंडल author
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