West Bengal Politics: पश्चिम बंगाल में BJP को लेकर प्रशांत किशोर के दावे में कितना दम है?- Video
Prashant Kishor on West Bengal Politics चुनावी रणनीतिकार और जनसुराज के संयोजक प्रशांत किशोर ने बड़ा दावा किया है, उन्होंने बंगाल में बीजेपी की बड़ी जीत की बात कही है, प्रशांत किशोर ने टाइम्स नाउ नवभारत की ग्रुप एडिटर इन चीफ नविका कुमार से बातचीत में यह दावा किया किया।
चुनावी रणनीतिकार और जनसुराज के संयोजक प्रशांत किशोर
पश्चिम बंगाल के संदेशखाली से जुड़े विवाद इन दिनों खूब चर्चा में रहा, विरोध प्रदर्शन करने वाली महिलाओं की तस्वीरें सामने आईं तो देशभर के लोगों में आक्रोश भर गया था, आरोप है कि टीएमसी नेता शाहजहां शेख ने न केवल यहां की लोगों की जमीनें जबरन हड़प लीं, बल्कि महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न भी किया। इसी प्रदर्शन का परिणाम था कि संदेशखाली के कथित ताकतवर नेता शेख शाहजहां की गिरफ्तारी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के लिए एक अहम मोड़ लेकर आया।
जबरन जमीन पर कब्जे और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले को लेकर बीजेपी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ हल्ला बोला और इसे बड़ा मुद्दा बनाया, वहीं नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए पर ममता के विरोध को लेकर भी बीजेपी उन पर हमलावर है, इन दोनों मुद्दों पर बीजेपी के आक्रमक तेवर और उसकी रणनीति को देखते हुए चुनावी रणनीतिकार और जनसुराज के संयोजक प्रशांत किशोर ने बड़ा दावा किया है, उन्होंने बंगाल में बीजेपी की बड़ी जीत की बात कही है, प्रशांत किशोर ने 'टाइम्स नाउ नवभारत' की ग्रुप एडिटर इन चीफ नविका कुमार से बातचीत में यह दावा किया किया कि बंगाल में बीजेपी बेहतर स्थिति में है, उन्होंने यह कहा कि 'मैं बंगाल में अभी जमीन पर नहीं हूं लेकिन संदेशखाली जैसे मुद्दे आते हैं तो जो सत्ता में बैठे हैं, उन्हें उसका नुकसान उठाना पड़ता है, लेकिन संदेशखाली या उसके बिना भी बीजेपी बंगाल में बेहतर स्थिति में है, दिल्ली में बैठे कई लोगों को लगता है कि बीजेपी बंगाल में खत्म हो गई है, बीजेपी आज भी वहां मजबूत पॉलिटिकल ताकत है और राज्य सरकार के खिलाफ लोगों की नाराजगी से टीएमसी की मुश्किलें बढ़ेंगी, मुझे लगता है कि लोकसभा में बीजेपी को बहुत अच्छे नंबर आ सकते हैं'
आखिर प्रशांत किशोर यह दावा किस आधार पर कर रहे हैं ये सवाल तो जायज है तो समझा यह जा रहा है कि चुनाव को लेकर प्रशांत किशोर के विश्लेषण अक्सर सच हुए हैं वे जहां 2014 के चुनाव में बीजेपी के रणनीतिकार रहे हैं, वहीं कांग्रेस से लेकर टीएमसी, जदयू और कई दक्षिण भारत की कई पार्टियों के लिए भी काम कर चुके हैं। इस लिहाज से अलग-अलग पार्टियों के साथ काम करने की वजह से वे उस पार्टी की कमजोरी और मजबूती दोनों बातों से अच्छी तरह वाकिफ हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की नैया राज्य में कई बार डगमग हुईदूसरी तरफ बीजेपी बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए जितनी मेहनत कर रही है, वह भी प्रशांत किशोर के बयान का एक आधार हो सकता है, 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की नैया राज्य में कई बार डगमग हुई। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 40.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन दो बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 38 फीसदी वोट शेयर ही हासिल हुए, लोकसभा चुनाव के समय टीएमसी से बीजेपी में गए नेताओं ने टीएमसी में घर वापसी कर ली 2021 में फिर से सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी ने बंगाल में अपने पैर मजबूती से जमाए। टीएमसी ने 2021 के चुनाव में 2016 से बड़ी जीत हासिल कर ली और यह साबित किया कि वे ही पश्चिम बंगाल का वर्तमान और भविष्य हैं और राज्य में उनकी लोकप्रियता बरकरार है।
बीजेपी ने जमीनी स्तर पर अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश की है2021 के चुनावों से पहले, दिलीप घोष की अध्यक्षता के दौरान और मुकुल रॉय और कैलाश विजयवर्गीय के सक्रिय मार्गदर्शन में बीजेपी में कई मशहूर हस्तियों को शामिल किया, हालांकि समीक्षक मानते हैं कि इससे बीजेपी को अल्पकालिक प्रचार मिला, चुनाव के बाद कई लोगों ने पार्टी छोड़ दी या उससे नाता तोड़ लिया, जिसका बीजेपी के ऊपर बुरा प्रभाव पड़ा। इस अनुभव को ध्यान में रखते हुए, राज्य पार्टी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार और पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने यह सुनिश्चित किया कि बड़े नामों के बजाए जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और नेताओं को शामिल करना अधिक आवश्यक है, बंगाल से जुड़े कई सियासी जानकार बताते हैं कि 2019 के बाद हुए कुछ बुरे अनुभवों के बाद ही बीजेपी ने जमीनी स्तर पर अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश की है और यह भी तय किया है कि किसी भी बड़े नेता के मामले में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से सलाह के बाद ही फैसला किया जाएगा।
बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है
बीजेपी ने आगामी चुनाव में पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, 2019 के आम चुनावों में, बीजेपी ने 22 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था और 18 सीटें हासिल की थी, बताया जा रहा है कि 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन से राज्य में हिंदुत्व भावनाओं को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है साथ ही संदेशखाली के रूप में बीजेपी का हाथ एक ऐसा मुद्दा लगा है जिससे ममता बनर्जी पहले ही बैकफुट पर आ चुकी हैं। संदेशखाली को बीजेपी ने राज्य में बड़ा मुद्दा बनाया और लगातार ममता सरकार पर हमलावर रही कई रिपोर्टस यह बता रहे हैं कि स्थानीय बीजेपी नेताओं ने इस मुद्दे को चुनाव तक वैसे ही जिंदा रखने की कोशिश की है जैसे सिंगूर और नंदीग्राम के मुद्दे को रखा गया था।
संदेशखाली के घटनाक्रम को टीएमसी के लिए बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा हैसंदेशखाली के घटनाक्रम को लोकसभा चुनाव से पहले टीएमसी के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है, खासकर तब जब ममता बनर्जी यह दावा करती रही है कि राज्य में सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाली महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनकी सरकार कई प्रयास कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे पर ममता अपनी रणनीति में पिछड़ गई और संभावना है कि यह बात अप्रैल-मई में होने वाले आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी की स्थिति को काफी मजबूत कर सकती है। टीएमसी नेता शेख शाहजहां के किए गए कथित अत्याचारों के खिलाफ स्थानीय महिलाओं के विरोध प्रदर्शन को देखने के बाद इसे सीएम ममता बनर्जी के लिए लोकसभा चुनाव से पहले राज्य में महिला मतदाताओं के बीच समर्थन मजबूत करने की एक बड़ी चुनौती के तौर भी लिया गया।
वहीं सीएए भी एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर ममता बनर्जी जिनते तीख सवाल केंद्र सरकार से कर रही हैं उन्हें उतने ही सख्त लहजों में जवाब दिया जा रहा है, राम मंदिर की वजह से पहले ही हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ है, बीजेपी को उम्मीद है ममता बनर्जी इस कानून को जितना मुसलमानों के खिलाफ बताएंगी, हिंदू वोटर्स उतने लामबंद होंगे।
वहीं आम चुनावों से कुछ महीने पहले विपक्षी गठबंधन इंडिया के भीतर कई प्रमुख सहयोगियों ने प्रतिकूल रुख अपनाया, राज्य में टीएमसी और कांग्रेस का गठबंधन नहीं हुआ जिससे इस धारणा को पुष्टि मिली कि विपक्ष में बीजेपी को प्रभावी ढंग से चुनौती देने के लिए आवश्यक राजनीतिक एकजुटता और वैचारिक एकता का अभाव है माना जा रहा है कि इन्हीं बिंदुओं को लेकर प्रशांत किशोर ने राज्य में बीजेपी की बढ़त को लेकर इतना बड़ा दावा किया है।
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