बांग्लादेश में दंगाइयों ने 1971 के शहीद स्मारक परिसर को भी नहीं छोड़ा, आजादी की प्रतीक मूर्तियों को तोड़ा

बांग्लादेश में एक महीने से अधिक समय तक चले उग्र विरोध प्रदर्शनों में कम से कम 450 लोग मारे गए, जिसके कारण 5 अगस्त को हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी। वह आनन-फानन में भागकर भारत पहुंचीं। इसके बाद से ही बांग्लादेश में अराजकता का नया दौर शुरू हो गया।

बांग्लादेश में हिंसा जारी

Bangladesh Violence: बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट होने के बाद दंगाइयों और उपद्रवी हिंदुओं पर हमले तो कर ही रहे हैं, मुक्तिसंग्राम का इतिहास बताने वाली ऐतिहासिक निशानियों को भी नहीं छोड़ रहे हैं। इन दंगाइयों ने 971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान सेना के आत्मसमर्पण वाली मूर्तियों को भी नष्ट कर दिया है। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इन तस्वीरों को ट्वीट करते हुए कहा कि बांग्लादेश की आजादी के उपलक्ष्य में बनाई गई एक मूर्ति को भारत विरोधी उपद्रवियों ने नष्ट कर दिया है। थरूर ने टूटी हुई मूर्ति की एक तस्वीर साझा की, जिसमें 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान के आत्मसमर्पण के क्षण को दर्शाया गया है।

शशि थरूर ने दिखाई तस्वीरें

तिरुवनंतपुरम के सांसद ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, 1971 के शहीद स्मारक परिसर, मुजीबनगर में भारत विरोधी उपद्रवियों द्वारा नष्ट की गई मूर्तियों की ऐसी तस्वीरें देखकर दुख हुआ। उन्होंने कहा कि कई स्थानों पर भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, मंदिरों और हिंदू घरों पर हमलों के बाद इसे भी निशाना बनाया गया। हालांकि मुस्लिम नागरिकों द्वारा अल्पसंख्यक घरों और पूजा स्थलों की रक्षा करने की खबरें भी आईं।
बता दें कि 1971 के युद्ध ने न केवल बांग्लादेश को आजाद कराया बल्कि पाकिस्तान को भी करारा झटका दिया था। जीत का प्रतीक बनी प्रतिमा में पाकिस्तानी सेना के मेजर-जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी द्वारा भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी को 'समर्पण पत्र' पर हस्ताक्षर करते हुए दर्शाया गया है। मेजर-जनरल नियाजी ने अपने 93,000 सैनिकों के साथ भारत के पूर्वी कमान के तत्कालीन जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था।
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