Manipuri cinema: IFFI-53 मणिपुरी सिनेमा के 50 गौरवपूर्ण वर्ष पूरे होने का मनाएगा उत्सव

उत्तर पूर्व की आठ बहनों (राज्यों) में से एक मणिपुर, जिसे 'भारत का आभूषण' भी कहा जाता है, भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) के 53वें संस्करण में उत्तर पूर्व भारत की फिल्मों के प्रचार के लिए सबसे आगे होगा।

MANIPUR CINEMA

इसे भारतीय पैनोरमा के तहत मणिपुर राज्य फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी की ओर से क्यूरेट किया गया है

मणिपुरी सिनेमा की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में एशिया के सबसे पुराने फिल्म महोत्सव आईएफएफआई- 53 में पांच फीचर और पांच गैर-फीचर फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा। इसे भारतीय पैनोरमा के तहत मणिपुर राज्य फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी की ओर से क्यूरेट किया गया है। हर एक वर्ष 9 अप्रैल को मणिपुरी सिनेमा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि 9 अप्रैल, 1972 को पहली मणिपुरी फीचर फिल्म- 'मातमगी मणिपुर' नाम से रिलीज हुई थी। इसका निर्देशन देब कुमार बोस ने किया था।

पद्मश्री पुरस्कार विजेता निर्देशक अरिबम श्याम शर्मा निर्देशित ओपनिंग फीचर फिल्म इशानाउ और अन्य फिल्मों के साथ-साथ गैर-फीचर फिल्म वर्ग में रतन थियाम: द मैन ऑफ थिएटर की स्क्रीनिंग के साथ सिनेमा को लेकर उत्साही लोगों को मणिपुर राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, प्रखर कहानी, नृत्य, संगीत, परंपराओं और थिएटरों का आनंद मिलेगा।

अरिबम श्याम शर्मा, ओकेन अमाक्चम, निर्मला चानू, बोरून थोकचोम, रोमी मेइती जैसी मणिपुरी फिल्म की प्रमुख शख्सियत गोवा में आयोजित आईएफएफआई के 53वें संस्करण के दौरान मणिपुरी सिनेमा की 50 साल की सुरूचिपूर्ण प्रतिभा का उत्सव मनाने के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।

अरिबम श्याम शर्मा निर्देशित फिल्म इशानाउ की कहानी नायिका ताम्फा, उनके पति और उसके बच्चों के इर्द-गिर्द घूमती है। उनका जीवन अप्रत्याशित बदलाव से बाधित हो जाता है, जब ताम्फा माईबी गुरु की खोज में अपने परिवार को छोड़ देती है, जिसके बारे में वे सोचती हैं कि उन्होंने उसे माईबी के मातृसत्तात्मक धार्मिक संप्रदाय के रूप में चुना है।

इस फिल्म का निर्देशन एस.एन. चंद साजती ने किया। इस फिल्म की कहानी एक डॉक्टर ब्रोजेंद्र की है, जिन्होंने अपनी मां की पसंद की लड़की से शादी की। हालांकि, उन्होंने शादी के के बाद उसका चेहरा देखने से इनकार कर दिया। इसके बाद एक संगीत कार्यक्रम में वह एक सुंदर लड़की को देखता है और उससे आकर्षित होता है। वह अपराध-बोध से ग्रस्त होकर घर लौटता है, लेकिन उसी लड़की को अपनी पत्नी के रूप में देखकर वह हैरान रह जाता है।

यह फिल्म एक काव्य प्रतियोगिता की कहानी है। यह लोकटक झील- मणिपुर की तैरती हुई झील के चिंतनशील स्थानीय लोगों और एक हथियार की आकस्मिक खोज, एक मछुआरे को एक नए आत्मविश्वास का अनुभव कराती है, जो जल्द ही हिंसा का कारण बनता है। इस फिल्म का निर्देशन हाओबम पबन कुमार ने किया।

यह फिल्म एक मध्यमवर्गीय परिवार एक सेवानिवृत्त व्यक्ति टोंसा और उसके तीन वयस्क बच्चों की कहानी कहती है। सभी समाज के नए और पुराने मूल्यों के समर्थक हैं और जल्द ही अपने जीवन में अलग-अलग दिशाओं में बह जाते हैं। ऐसा लगता है कि अलग-अलग हो जाना इस परिवार की नियति है, लेकिन फिर वे एक-दूसरे को बेहतर ढंग से समझने लगते हैं और उसके बाद वे प्रसन्नतापूर्वक साथ रहने का निर्णय करते हैं। इसका परिचालन देब कुमार बोस ने किया।

इस फिल्म का निर्देशन ओइनम गौतम ने किया है। फिजिगी मणि की महिला नायक- याइफाबी अपने परिवार को फिर से मिलाने के एक मिशन पर निकलती है। वे अपने माता-पिता और भाई सानाजाओबा के बीच के तनावपूर्ण संबंधों को सही करने का प्रयास करती है, जिन्होंने उसे छोड़ दिया था। यह फिल्म मणिपुर के सामाजिक- राजनीतिक परिदृश्य को दिखाते हुए याइफाबी के अतीत और वर्तमान जीवन पर आधारित है।

यह फिल्म मणिपुर में कोरस रिपर्टोरी (सहगान संग्रह) थिएटर के संस्थापक- निदेशक रतन थियाम के जीवन पर आधारित है। वे एक प्रसिद्ध मणिपुरी कवि, नाटककार, चित्रकार, संगीतकार, रंगमंच गुरु हैं। उन्होंने 2013-2017 तक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष के रूप में काम किया। इसके पहले उन्होंने 1987 से 1989 तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक पद की जिम्मेदारी संभाली। इस फिल्म का निर्देशन ओकेन अमाकचम और निर्मला चानू ने किया है।

यह एन कुंजमोहन की राष्ट्रीय अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लघुकथा पर आधारित है। चाओबा नदी में मछली पकड़कर अपने परिवार का पेट पालने के लिए संघर्ष करता है। कई दिनों के बाद चाओबा व उनका बेटा एक हिलसा मछली पकड़ते हैं और खुश होकर हिल्सा करी बनाने के लिए घर आते हैं। लेकिन वे ऐसा करने में असमर्थ होते हैं क्योंकि चाओबा को कुछ चावल खरीदने के लिए इस मछली को बेचना पड़ता है। इस फिल्म का निर्देशन निंगथौजा लांचा ने किया है।

यह फिल्म एक 40 वर्षीय ग्रामीण हाइ की है। वह अपने परिवार के साथ मणिपुर के एक सुदूर गांव में रहता है, जिसे ग्रामीणों ने चुनावों के दौरान लोकप्रिय उम्मीदवार का समर्थन नहीं करने के कारण निकाल दिया। तमाम कठिनाइयों के बावजूद हाइ अपने मताधिकार और जनप्रतिनिधियों का चुनाव करने के व्यक्तिगत अधिकार के लिए लड़ता है। इस फिल्म के निर्देशक अशोक वेइलू हैं।

इस फिल्म का निर्देशन बोरुन थोकचोम ने किया है। यह फिल्म सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू के एक काव्यात्मक पक्ष की कहानी बताती है। मणिपुर में एक अत्यधिक सुरक्षित अस्पताल जेल के अंदर जब वह 'आत्महत्या करने के प्रयास' के लिए अपनी सजा काट रही थी, तब अपनी नोटबुक लिख रही थीं।

‘विद्यालय जाने वाला लड़का 'चाओरेन' अपनी दोस्त सना से ईर्ष्या करता है, जिसे उनके फुटबॉल कोच ने टीम का कप्तान चुना है। उसने सना को खाने के लिए रासायनिक छिड़काव वाली सब्जी देकर एक भयावह कृत्य किया और इसके अगले दिन सना नहीं आता है। इस फिल्म का निर्देशन रोमी मेइती ने किया है।

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