विशेषज्ञों की राय की अनदेखी, सुरक्षा मानकों में लापरवाही का नतीजा है सुरंग हादसा, बोले एक्सपर्ट
उत्तरकाशी जिले में चारधाम यात्रा मार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह गया था जिससे उसमें मलबे के दूसरी ओर श्रमिक फंस गए
उत्तराखंड टनल हादसा
Silkyara Tunnel Rescue: भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के एक पूर्व अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए क्षैतिज ‘ड्रिल’ करना सुरक्षित होगा। जीएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए त्रिभुवन सिंह पांगती ने कहा कि यदि निर्माण कंपनी ने क्षेत्र की चट्टानी संरचना का अध्ययन करने के लिए पहले एक ‘पायलट’ सुरंग बनाई होती और एक उपयुक्त सहयोग प्रणाली स्थापित की होती तो आपदा को टाला जा सकता था। पांगती ने कहा कि 10 दिनों से सुरंग के अंदर फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए क्षैतिज खुदाई करना सुरक्षित होगा, लेकिन यदि ऐसा किया जाता है तो इसे उस स्थान से शुरू करना होगा जहां गहराई न्यूनतम हो।
सुरक्षा के खास मानकों को ध्यान में रखना होगा
उन्होंने कहा कि सुरंग के अंदर बचाव अभियान चलाये जाते समय सुरक्षा के कुछ खास मानकों को भी अवश्य ही ध्यान में रखना होगा। उत्तरकाशी जिले में चारधाम यात्रा मार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह गया था जिससे उसमें मलबे के दूसरी ओर श्रमिक फंस गए, जिन्हें निकालने के लिए युद्धस्तर पर बचाव अभियान चलाया जा रहा है। पांगती ने कहा कि सिलक्यारा आपदा, सुरंग की खुदाई में अधिक विस्फोट करने, विशेषज्ञों की राय की अनदेखी करने और सुरक्षा मानकों के प्रति लापरवाह रवैये का परिणाम है।
आवश्यक उपकरण तक नहीं लगाए गए थे
उन्होंने कहा, कंपनी ने सुरंग की खुदाई किए गए हिस्से में आवश्यक उपकरण तक नहीं लगाए थे और इसने भी मौजूदा संकट में योगदान दिया होगा। पांगती ने कहा कि घटना के बाद दिल्ली और मध्य प्रदेश के इंदौर से मंगाई गई मशीन का उपयोग सुरंग के आंशिक रूप से ढहने के तुरंत बाद किया जा सकता था। जीएसआई में भू-वैज्ञानिक के रूप में अपने 37 वर्षों के अनुभव का हवाला देते हुए, पांगती ने कहा कि भूकंप की अधिक संभावना वाले हिमालय जैसे क्षेत्र में भूविज्ञान महत्वपूर्ण हो जाता है और ऐसे क्षेत्रों में किसी भी बुनियादी ढांचे या संचार परियोजनाओं को शुरू करने के लिए, इसकी भू-विज्ञान स्थिति की गहरी समझ आवश्यक है। लेकिन ऐसा लगता है कि इस परियोजना में इसकी उपेक्षा की गई।
भूवैज्ञानिक और टेक्टॉनिक स्थिति का विश्लेषण जरूरी
उन्होंने कहा कि जो निजी कंपनियां हिमालय क्षेत्र में सड़क मार्ग की सुरंग, संचार या जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने आ रही हैं, वे उस स्थान विशेष की भूवैज्ञानिक और टेक्टॉनिक स्थिति का पूर्व विश्लेषण नहीं करती हैं, यही कारण है कि ऐसी कई परियोजनाएं विफल हो रही हैं। पांगती ने कहा कि प्रस्तावित अवसंरचना परियोजनाओं को मंजूरी देने से पहले उनका अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जानी चाहिए।
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