पूरा खेल समझिए...जब UNHRC में चीन को पटक सकता था भारत तो क्यों दिया छोड़, श्रीलंका पर भी दिखाई 'दया'
भारत के इस फैसले से चीन और श्रीलंका दोनों हैरान होंगे। क्योंकि चीन के विरोध में कोई प्रस्ताव आए और भारत साथ न दे, ऐसा चीन ने कभी नहीं सोचा होगा। इसी तरह श्रीलंका के तमिल मुद्दे पर भी भारत ने वोटिंग से दूरी बनाई रखी, हालांकि चीन जहां बच गया वहीं श्रीलंका के खिलाफ प्रस्ताव पास हो गया।
चीन के खिलाफ प्रस्ताव से भारत ने बनाई दूरी
- चीन में उइगर मुसलमानों की स्थिति है खराब
- उइगर मुसलमानों पर अत्याचार की आ चुकी हैं खबरें
- श्रीलंका में तमिल समुदाय के साथ होता है भेदभाव
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में चीन और श्रीलंका के खिलाफ आए प्रस्तावों पर भारत ने जो रूख अपनाया है, वो बहुत ही चौंकाने वाला है। अपनी विदेश नीति को लेकर हमेशा स्पष्ट रहने वाले भारत ने एक बार फिर से वैश्विक मंच पर दिखा दिया कि वो किसी के दवाब में नहीं बल्कि अपने विवेक से ही चलता है, भले ही मौका दुश्मन देश को बेइज्जत करने को क्यों न हो?
चीन वाला खेल समझिए
दरअसल चीन में मुस्लिमों की एक बहुत बड़ी आबादी रहती है। इस आबादी को उइगर मुसलमान कहा जाता है। जहां लगभग मुस्लिम देश इस्लाम के हितों के लिए हमेशा एकमत नजर आते हैं, वहीं जब बात उइगर मुसलमानों की आती है, वो चुप्पी साध जाते हैं। चाहे वो पाकिस्तान हो या खाड़ी देश। चीन में उइगर मुसलमानों पर बहुत अत्याचार होता है, उन्हें कैंपों में रखा जाता है, मारा-पीटा जाता है, इस्लाम धर्म से उन्हें दूर रखा जाता है। ऐसी कई रिपोर्टें सामने आ चुकी हैं।
अब इसी को लेकर पश्चिमी देशों ने यूएनएचआरसी में एक प्रस्ताव लाया, जिसमें उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार पर चर्चा की मांग की गई थी। इस प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो भारत ने इस वोटिंग प्रक्रिया से दूरी बना ली। प्रस्ताव के पक्ष में 17 जबकि विरोध में 19 वोट पड़े। जबकि भारत समेत 11 सदस्य इस वोटिंग से दूर रहे। अब अगर भारत चाहता वो चीन के विरोध मतदान करके खेल बिगाड़ सकता था, जिसकी उम्मीद अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को रही होगी, लेकिन भारत जैसे यूक्रेन मुद्दे पर तटस्थ रहा, यहां भी वो किसी के सीधे पक्ष में नहीं गया। हालांकि वोटिंग से दूरी बनाकर एक तरह से उसने चीन की मदद ही की।
अब सवाल है कि भारत ने ऐसा क्यों किया? दरअसल भारत की नीति हमेशा से इस तरह की वोटिंग से दूर रहने की रही है, वो नहीं चाहता है कि यूएनएचआरसी जैसी संस्था का उपयोग राजनीति के लिए हो। दूसरा उसने चीन को भी एक संदेश देने की कोशिश की है कि आतंरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। चीन कई बार भारत के खिलाफ यूएन में काम कर चुका है।
वहीं कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भारत के इस प्रस्ताव से दूर रहने के लिए हमला बोला है। उन्होंने कहा- "चीन पर इतना डिफरेंस क्यों? चीनी घुसपैठ पर संसदीय बहस के लिए तैयार नहीं होंगे। मानवाधिकारों पर बहस के प्रस्ताव से भारत दूर रहेगा। सांसदों को ताइवान की यात्रा के लिए राजनीतिक मंजूरी नहीं देंगे।"
श्रीलंका के खिलाफ भी वोट नहींं
चीन के साथ ही यूएनएचआरसी में श्रीलंका के खिलाफ भी प्रस्ताव आया था। इस प्रस्ताव में श्रीलंका में सुलह, जवाबदेही और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने की बात कही गई थी। यह प्रस्ताव श्रीलंका में रहने वाले तमिल समुदाय से संबंधित था। भारत इस प्रस्ताव से भी दूर रहा, हालांकि यह प्रस्ताव पास हो गया।
47 सदस्यीय परिषद में 20 देशों ने मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि चीन और पाकिस्तान समेत सात देशों ने इसके खिलाफ वोट दिया। भारत, जापान, नेपाल और कतर इससे गैर हाजिर रहे।
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