1962 का भारत-चीन युद्ध : अगर नेहरू ने दूसरे नेताओं की बात मानी होती, तो आज इतिहास कुछ और होता

India-China War 1962: 1962 की शर्मनाक हार के विलेन सीधे सीधे जवाहर लाल नेहरू हैं क्योंकि अगर नेहरू ने शुरुआत में ही चीन को पहचान लिया होता और दस साल बर्बाद ना किए होते तो 1962 में चीन की हिम्मत नहीं होती कि वो भारत पर हमला कर देता। लेकिन नेहरू गलती पर गलती किए जा रहे थे।

India-China War 1962: सबसे पहले 1962 के युद्ध का वो चैप्टर, जिसमें अगर नेहरू ने कीमती 10 साल बर्बाद ना किए होते, अगर नेहरू ने सेना को मजबूत किया होता, अगर नेहरू ने दूसरे नेताओं की बात मानी होती, तो आज इतिहास कुछ और होता। 60 साल पहले नवंबर के यही दिन थे। जब 1962 के युद्ध में चीन से हमें शर्मनाक हार मिली थी। ये शर्मनाक हार इसलिए थी क्योंकि ये युद्ध चीन ने शुरू किया, और उसी ने खत्म कर दिया। एक महीने तक युद्ध चला और जब चीन ने अपने मकसद को हासिल कर लिया तो अपनी तरफ से युद्ध रोकने का ऐलान कर दिया।

21 अक्टूबर 1962 को चीन ने अचानक हमला कर दिया था और एक महीने बाद 21 नवंबर 1962 को चीन ने एकतरफा सीजफायर का ऐलान कर दिया। तब चीन की सेना ने सीज़फायर का ऐलान करते हुए कहा था कि 21 नवंबर 1962 से चाइनीज़ फ्रंटियर गार्ड चीन-भारत सीमा पर गोलीबारी बंद कर देंगे। 1 दिसंबर 1962 से चाइनीज फ्रंटियर गार्ड भारत और चीन के बीच मौजूद वास्तविक नियंत्रण रेखा से 20 किलोमीटर पीछे की स्थिति में वापस आ जाएंगे, जो 7 नवंबर 1959 से भारत और चीन के बीच में मौजूद है।

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