Times Now Summit 2022:ऐतिहासिक मोड़ पर भारत की आबादी, क्या इकोनॉमी को मिलेगी रफ्तार? एम.के.आनंद और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अगस्तो के मंथन में निकली ये बात
Times Now Summit 2022: भारत अप्रैल, 2023 में चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। इसके साथ ही भारत 1.42 अरब लोगों का घर होगा। जिनमें से अधिकांश आबादी वर्किंग उम्र में होगी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या उस आबादी के लिए अवसर एक समान होंगे?
भारत के पास सबसे ज्यादा कामगार आबादी
- भारत की ग्रोथ स्टोरी में जनसांख्यिकीय लाभ,टिकाऊ उच्च विकास दर,स्थिर राजनीतिक परिदृश्य और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास मजबूत फैक्टर होंगे।
- भारत को अपनी जनसांख्यिकीय क्षमता का इस तरह से उपयोग करना होगा, जिससे वह उसकी विकास गाथा को गति देने में मदद करे।
- केरल में PPP के आधार पर में प्रति व्यक्ति आय 9000 अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
Times Now Summit 2022: दुनिया इस वक्त सहस्राब्दियों में घटित होने वाले एक अहम बदलाव के मुहाने पर है। यह ऐसा बदलाव है जिसका असर अगर सदियों नहीं तो दशकों तक हमारे मानव इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों में गूंजता रहेगा। इसमें सबसे अहम बात यह है कि भारत इस घटना के केंद्र में है। भारत अप्रैल, 2023 म चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा।
इस ऐतिहासिक बदलाव के साथ भारत देश 1.42 अरब लोगों का घर होगा। जिनमें से अधिकांश आबादी वर्किंग उम्र में होगी। लेकिन क्या उस आबादी के लिए अवसर एक समान होंगे? इस सवाल पर बेहद सकारात्मक नजरिया रखना भोलापन होगा। तो फिर क्या हम ऐसे कालखंड में पहुंच गए हैं, जब हमें भारत के करोड़ों लोगों के जीवन में वास्तविक और परिवर्तनकारी बदलावों का रोडमैप पेश करना चाहिए। इन महत्वपूर्ण सवालों को टाइम्स नेटवर्क के एमडी & सीईओ एम.के आनंद ने ग्लोबल गवर्नेंस फोरम के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर और प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री अगस्तो लोपेज-क्लारोस के सामने टाइम्स नाउ समिट 2022 के बेहद एक दिलचस्प सत्र में रखा।
भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता में कितना दम
इस वर्ष की थीम 'इंडिया: ए वाइब्रेंट डेमोक्रेसी, ग्लोबल ब्राइट स्पॉट' के अनुरूप भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता में कितना दम , विषय पर चर्चा के दौरान आनंद और अगस्तो ने इस बात पर जोर दिया कि अगर भारत को जनसांख्यिकी लाभ लेना है तो न केवल उसे अपनी वास्तविक क्षमताओं को सामने लाना होगा बल्कि उन गलतियों से भी बचना होगा, जो उसके विकास में बाधक बन सकती हैं।
भारत की ग्रोथ स्टोरी में जनसांख्यिकीय लाभ, टिकाऊ उच्च विकास दर, स्थिर राजनीतिक परिदृश्य, और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास एक मजबूत फैक्टर होंगे। लेकिन इसके साथ ही भारत को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं जैसे क्षेत्रों में भी बहुत कुछ करना होगा। इन मुद्दों के बीच सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या भारत की आबादी, खास तौर से वर्किंग आाबादी इस अवसर का लाभ उठाने के लिए साधन संपन्न है ?
आनंद ने कहा, यदि किसी देश में सब कुछ समान हो और सभी की उत्पादकता समान है तो अधिक जनसंख्या वाले देश बाजार के नजरिया से स्पष्ट रूप से शक्तिशाली होंगे और वह विश्व के उच्च मंचों पर अपनी बात कहने के लिए मजबूत स्थिति में होंगे। लेकिन सभी देशों में ऐसी स्थिति नहीं है। और पिछले 200-300 वर्षों में यह अंतर बहुत अधिक बढ़ गया है। क्योंकि पश्चिमी देशों को वहां पर हुए तकनीक विकास ने बेहद फायदा पहुंचाया है।
विकसित देशों और दुनिया के बाकी देशों के बीच प्रति व्यक्ति जीडीपी के बीच बने भारी अंतर का जिक्र करते हुए आनंद ने भारत-चीन के उदाहरण को सामने रखा। उन्होंने कहा कि 30 साल पहले, एशिया के इन दो दिग्गज देशों की प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग 300 अमेरिकी डालर थी। और वह आज भारत में 2100 अमेरिकी डॉलर हो गई है। जबकि चीन में प्रति व्यक्ति जीडीपी इसी दौरान कहीं तेजी से बढ़कर 11000 अमेरिकी डालर पर पहुंच गई है।
इस अंतर के साथ चर्चा के दौरान आनंद ने एक और अहम बात चीन और भारत को लेकर कही। उनके अनुसार इस दौरान भारत एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में विकसित हुआ है, जबकि चीन में ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में यह एक अहम फैक्टर होना चाहिए।
चीन और भारत के इस अंतर को अगस्तो कैसे देखते हैं, इस पर आनंद ने उनसे पूछा कि वह इस परिवर्तन को जनसंख्या के आधार पर, उसकी क्षमता और गुणवत्ता के संदर्भ में कैसे देखते हैं? साथ ही उन्होंने यह भी सवाल किया कि एक देश के लिए प्रति व्यक्ति आय, कौशल विकास और जनसंख्या वृद्धि की असमानता कितनी बड़ी चुनौती है। और भारत इस को चुनौती कैसे दूर कर सकता है ?
ज्यादा जनसंख्या किसी देश के लिए लाभकारी हो सकती है, इस बात को स्वीकारते हुए अगस्तो ने 'वित्तीय संघवाद' का विचार पेश किया। उन्होंने अपने वैश्विक उदाहरणों और अनुभव के आधार पर कहा, "मैं वास्तव में काफी हैरान था जब मैंने भारत के विभिन्न राज्यों में प्रति व्यक्ति आय के आंकड़ों को देखा। प्रति व्यक्ति आय में ये क्षेत्रीय अंतर दुनिया भर में काफी आम बात है। अगर हम अमेरिका या यूरोपीय संघ जैसे संघीय देशों को देखेंगे, तो इसी तरह का अंतर दिखेगा।
उन्होंने कहा कि भारतीय डेटा के अध्ययन में कुछ आश्चर्यजनक बातें सामने आई हैं। सबसे अहम बात है कि राज्यों में आय का एक बड़ा अंतर है। एक तरफ भारत में केरल जैसा राज्य है, जिसकी PPP के आधार पर में प्रति व्यक्ति आय 9000 अमेरिकी डॉलर से अधिक है। जो कि युद्ध से पहले के यूक्रेन से भी अधिक है। वहीं दूसरी तरह बिहार है, जहां PPP के आधार पर प्रति व्यक्ति आय करीब 2000 अमेरिकी डॉलर है। जो केरल के तुलना में केवल 20-22 फीसदी है।
दुनिया ने क्या किया?
अगस्तो ने इसके बाद दुनिया के उदाहरणों का हवाला देते हुए बताया कि यदि हम 1990 का दौर देखें। तो उस वक्त तीन सबसे अमीर राज्यों की प्रति व्यक्ति आय, तीन सबसे गरीब राज्यों की प्रति व्यक्ति आय के बीच 50 फीसदी का अंतर था । जो आज हम तुलना के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ में देखते हैं।
वास्तव में, दुनिया के उन हिस्सों में इस अंतर को कम करने की होड़ रही है। गरीब देशों के ग्रोथ वाले राज्य या क्षेत्र अमीर देशों की तुलना में काफी तेजी से ग्रोथ करते हैं और अंततः कुछ हद तक वह अंतर के कम करते हुए उनके बेहद करीब पहुंच जाते हैं। भारत में 50 फीसदी का अंतर आज तीन गुना हो चुका है। जिसका मतलब यह है कि इनकम का यह खाई बेहद चौड़ी हो गई है। अमीर राज्य जहां अमीर होते जा रहे हैं और गरीब बड़े पैमाने पर उनसे पीछे होते जा रहे हैं। जो कि बेहद चिंता का विषय है।
स्पेन की सफलता से समझें
अगस्तो ने कहा कि जब मैं 30 साल की दहलीज पर था, उस वक्त मैं स्पेन के लिए आईएमएफ का अर्थशास्त्री था । यह वह दौर था जब स्पेन अपने आप को पुर्तगाल की तरह यूरोपीय अर्थव्यवस्था से जोड़ रहा था। दोनों देश एक ही समय में यूरोपीय संघ में शामिल हुए थे। और दोनों देश गरीब चचेरे भाइयों की तरह थे । उनकी हालत भारत के बिहार जैसी थी। और उनकी प्रति व्यक्ति आय जर्मनी, नीदरलैंड और फ्रांस जैसे देशों की तुलना में बेहद कम थी।
लेकिन हम आज के आंकड़ों को देखें, तो स्पेन ने रफ्तार पकड़ ली और वह उनके करीब पहुंच गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में जो कुछ हो रहा है, उसके बिल्कुल विपरीत वहां हुआ। तो यह कैसे हुआ है? असल में यूरोपीय संघ का अपने सदस्यों के लिए एक स्पष्ट कार्यक्रम है। जिसें हम 'वित्तीय संघवाद' कहते हैं। इसके तहत जर्मनी और नीदरलैंड जैसे उच्च इनकम वाले देश, यूरोपीय संघ के बजट के जरिए अपने संसाधनों का ट्रांसफर कम इनकम वाले देशों को करते हैं। जिसके जरिए वह इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी मात्रा में निवेश करते हैं।
अगस्तो ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि आप भारत में ये मॉडल तब तक लागू कर पाएंगे, जब तक ऐसा कोई मॉडल तैयार नहीं किया जाता है, जिसमें टैक्स व्यवस्था के जरिए अमीर राज्यों से गरीब राज्यों में संसाधनों के स्थानांतरण का एक स्पष्ट कार्यक्रम मौजूद हो। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो यह अंतर और बढ़ेगा । और इस प्रकार की असमान आय वाले सिस्टम के साथ समस्या यह है कि जल्द ही यह केवल एक आर्थिक समस्या नहीं रह जाती है बल्कि एक राजनीतिक समस्या बन जाती है।
अगस्तो के इस सवाल के जवाब में, आनंद ने भारत में जमीनी हकीकत को समझाते हुए कहा कि यही तो मैं सोच रहा था क्योंकि यदि आप भारत के राजनीतिक मानचित्र को एक राज्य के नजरिए से देखते हैं, तो समृद्ध हिस्सों में स्थानीय सरकारें केवल अपने क्षेत्रों के बारे में चिंतित रहती हैं। जब आप उनके मंत्रियों से बात करते हैं, तो वे मूल रूप से अपने राज्य के विकास के बारे में चिंतित होते हैं। लेकिन शायद एक या दो दशक बाद ऐसा संभव हो कि राज्य एक साथ आएं और पूछें कि संसाधन यहां से वहां क्यों जा रहे हैं? और ऐसा करने से हमें क्या मिल रहा है ?
भारत को अपनी जनसांख्यिकीय क्षमता का इस तरह से उपयोग करना चाहिए जो उसकी विकास गाथा को गति देने में मदद करे। इस वक्त जहां हमारे सामने चुनौतियां हैं, वहीं हमारे पास इतिहास के इस मोड़ पर आगे बढ़ने का भी बहुत बड़ा अवसर है।
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