आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वो वीर, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया
Independence Day: देश को आजादी दिलाने में सैकड़ों वर्ष लग गए और इस लड़ाई में हमारे हजारों महान योद्धाओं ने खुद को कुर्बान कर दिया। उनके शौर्य और पराक्रम के बदौलत ही आज हम आजाद भारत में खुलकर सांस ले पा रहे हैं। इनमें कुछ महानायकों के नाम सबके जुबान पर हैं, लेकिन ऐसे कई योद्धा हैं, जो इतिहास के पन्नों में कहीं छिप गए हैं। आइए, हम उनके बारे में जानते हैं।



फाइल फोटो।
- सैकड़ों वर्ष तक लड़ाई के बाद मिली आजादी।
- आजादी की लड़ाई में हजारों लोगों हुए थे शहीद।
- कुछ महानायकों की कहानी सिमट कर रह गई।
Independence Day: भारत अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, लेकिन इस आजादी को पाने के लिए हजारों-हजार लोगों ने खुद को देश के नाम कर दिया और अपनी कुर्बानियां दे दी। इनमें कई ऐसे महानायक हैं, जिन्हें देश-दुनिया में काफी प्रसिद्धि मिली। उनके बारे में खूब लिखा गया, लेकिन कई ऐसा नायक भी हैं, जिनके बारे में ज्यादा नहीं लिखा गया, जबकि उन्होंने देश के लिए काफी योगदान दिया है और आजादी की लड़ाई में शहादत को प्राप्त हुए। आइए, ऐसे कुछ गुमनाम महानायकों के बारे में जानते हैं, जिनका नाम इतिहास के पन्नों के बीच कहीं खो गया है और उनकी जीवन गाथा को जीवित करते हैं।
तिलका मांझी
भारत को आजादी दिलाने के लिए तिलका मांझी ने अपना अदम्य साहस और पराक्रम दिखाया है। वह संथाल समुदाय के पहले आदिवासी नेता के तौर पर जाने जाते हैं। तिलका मांझी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए आदिवासियों का सशस्त्र समूह तैयार करने के लिए काम किया। तिलका मांझी के प्रयासों से बने आदिवासी संगठन ने अंग्रेजों को पानी पिलाकर रख दिखा था। इस संगठन ने शोषण के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाई थी। इससे अंग्रेज परेशान हो गए थे और उन्होंने 1784 में तिलका मांझी को पकड़ लिया। तिलका मांझी को पकड़ने के बाद उन्हें भागलपुर कलेक्टर ऑफिस तक घसीटते हुए लाया गया था और यहां लाकर पेड़ से लटका दिया गया था।
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गंगू मेहतर
स्वतंत्रता संग्राम में गंगू मेहतर की भूमिका भी कम नहीं आंकनी चाहिए। गंगू मेहतर एक क्रांतिकारी थे और वह गंगू बाबू के तौर पर लोगों के बीच जाने जाते थे। वह इतने खतरनाक क्रांतिकारी थे कि उन्होंने 1857 में विद्रोह के वक्त अकेले ही करीब 150 ब्रिटिश सैनिकों को मारकर खत्म कर दिया था। इसके बाद अंग्रेज उन्हें खोजने में जुटे गए, क्योंकि यह अंग्रेज के लिए काफी बड़ा नुकसान था। बाद में अंग्रेज ने उन्हें 1878 में गिरफ्तार कर लिया और घोड़े के पूछ से बांधकर कानपुर लाया गया, जहां चुन्नीगंज में उन्हें फांसी दे दी गई थी। गंगू बाबू की वीरता की कहानी भी इतिहास के पन्नों में मानों जैसे कहीं दब गई हो।
चाफेकर बंधु
चाफेकर बंधु की वीरता भी अद्भुत है, लेकिन उन्हें इतिहास के पन्नों ने तवज्जो नहीं दिया। दरअसल, चाफेकर बंधु तीन भाइयों को कहा गया। चाफेकर बंधु में दामोदर हरि चाफेकर, बालकृष्ण हरि चाफेकर और वासुदेव हरि चाफेकर शामिल थे। इन तीनों भाइयों ने पुणे के ब्रिटिश प्लेग डब्ल्यूसी रैंड को मौत के घाट उतारा था। इन तीनों ने पुणे के चिंचवड़ में 1894 में हिंदू धर्म रक्षिणी सभा की स्थापना की थी। हालांकि, इनकी वीरता से अंग्रेज घबरा गए थे और उन तीनों को फांसी की सजा सुना दी गई।
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वासुदेव बलवंत फड़के
वासुदेव बलवंत फड़के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी हुए। उनका सीधा सा मानना था कि लोगों की दयनीय दशा का उपाय एकमात्र स्वराज ही है। यानी कि स्वराज हासिल करना ही उनका अंतिम लक्ष्य था। फड़के ने 1875 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया था। उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए यूरोपीय व्यापारियों को निशाना तक बनाया था, ताकि उनसे धन इकट्ठा हो सके। इतना ही नहीं, वासुदेव बलवंत फड़के ने एक समय पर पुणे पर अपना नियंत्रण तक जमा लिया था। हालांकि, 20 जुलाई 1879 को वह अंग्रेजों के हाथों पड़के गए और उन्हें कालापानी की सजा सुनाई गई, जहां वह देश के नाम शहीद हो गए।
तिरोट सिंग
आजादी के गुमनाम नायकों की लिस्ट में एक नाम तिरोट सिंग का भी नाम शामिल है। वह खासी समुदाय से आते थे। एक समय आया, जब अंग्रेजों ने खासी पहाड़ी पर अपना कब्जा जमाना चाहा, तो तिरोट सिंग आगे आए और ब्रिटिश सेना से लड़ाई लड़े। हालांकि, बाद में वह अंग्रेजों के गिरफ्त में आ गए और ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें ढाका के जेल में भेज दिया, जहां 1835 में वह शहीद हो गए। अब मेघालय में उनके निधन वाले दिन को यू तिरोट सिंग दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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