इंडिया या भारत: 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका, केंद्र सरकार ने किया था समर्थन

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि नागरिक अपनी इच्छा के अनुसार देश को इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं।

India vs Bharat

भारत बनाम इंडिया

India Or Bharat: पिछले कुछ दिनों देश में इंडिया बनाम भारत विवाद छिड़ा हुआ है। केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन में 'भारत के राष्ट्रपति' और 'भारत के प्रधानमंत्री' शब्द का इस्तेमाल करने पर सियासी घमासान तेज हो गया है। दरअसल, पूरे विवाद की शुरुआत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 'भारत के राष्ट्रपति' बताने वाले वाली जी20 रात्रिभोज निमंत्रण के बाद हुई है। अब कांग्रेस और बाकी विपक्षी दल इसे लेकर मोदी सरकार पर हमलावर हैं।

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सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है मामला

कुछ वर्षों पहले ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है। तब सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था जानते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि नागरिक अपनी इच्छा के अनुसार देश को इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं। इस याचिका में यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि देश को 'भारत' कहा जाए। शीर्ष अदालत द्वारा जनहित याचिका को खारिज करना राष्ट्रव्यापी बहस के बीच बेहद अहम माना जा सकता है।

भारत या इंडिया?

तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, भारत या इंडिया? आप इसे भारत कहना चाहते हैं, तो कहिए। कोई इसे इंडिया कहना चाहता है, उसे इंडिया कहने दें। सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने इस याचिका को खारिज करते यही शब्द कहे थे। महाराष्ट्र के निरंजन भटवाल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जजों ने ये टिप्पणी की थी। जी20 आमंत्रण पर विपक्ष की आलोचना का सामना कर रहे केंद्र ने नवंबर 2015 में शीर्ष अदालत से कहा था कि देश को 'इंडिया' के बजाय 'भारत' कहने की जरूरत नहीं है।

केंद्र ने कहा था, नाम बदलने की जरूरत नहीं

इसमें कहा गया था, भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 में किसी भी बदलाव पर विचार करने लायक कोई परिस्थिति नहीं है। संविधान का अनुच्छेद 1(1) कहता है, "इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा।" जनहित याचिका का विरोध करते हुए गृह मंत्रालय ने कहा था कि संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने के दौरान संविधान सभा द्वारा देश के नाम से संबंधित मुद्दों पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श किया गया था और अनुच्छेद 1 में खंडों को सर्वसम्मति से अपनाया गया था। इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जनहित याचिकाएं गरीबों के लिए

सुप्रीम कोर्ट ने भी याचिकाकर्ता पर कड़ी आपत्ति जताते हुए याद दिलाया था कि जनहित याचिकाएं गरीबों के लिए हैं। पीठ ने 11 मार्च, 2016 को कहा था कि पीआईएल गरीब लोगों के लिए है। आपको लगता है कि हमारे पास करने के लिए और कुछ नहीं है। याचिका में एनजीओ और कॉरपोरेट्स को यह निर्देश देने की भी मांग की गई थी कि वे सभी आधिकारिक और अनौपचारिक उद्देश्यों के लिए भारत शब्द का इस्तेमाल करें।

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अमित कुमार मंडल author

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