Grey Zone Warfare में उतरे भारत के नए योद्धा, चीन और पाकिस्तान के साइबर हमलों से निपटेगा सेना का CCOSW
Grey Zone Warfare : हमारे विरोधियों द्वारा साइबर युद्ध क्षमताओं के विस्तार ने साइबर डोमेन को पहले से कहीं अधिक प्रतिस्पर्धी बना दिया है। भारतीय सेना आज नेट केंद्रितता की ओर तेजी से बढ़ रही है, जिसके लिए सभी स्तरों पर आधुनिक संचार प्रणालियों पर निर्भरता बढ़ गई है।
साइबर हमलों से निपटने का प्लान का सेना ने तैयार कर लिया है। (सांकेतिक फोटो)
Grey Zone Warfare : जमीन पर पारंपरिक युद्ध के लिए तैयार रहने के साथ-साथ अब भारतीय सेना Grey Zone Warfare के लिए भी पूरी तरह से अलर्ट है। ग्रे जोन यानि युद्ध और शांति के बीच का वक्त जब दुश्मन अक्सर अलग-अलग हथकंडे अपनाकर देश पर वार करने की फिराक में रहते हैं और इस तरह के वॉरफेयर में साइबर स्पेस बेहद अहम डोमेन है। भारतीय सेना 2023 को बदलाव या ट्रांसफॉर्मेशन के साल के तौर पर मना रही है और इसी से जुड़े कई बड़े बदलाव भारतीय सेना में देखे जा रहे हैं। ऐसा ही एक नया पहलू है साइबरस्पेस के योद्धाओं का।
क्यों पड़ी इसकी जरूरत
हमारे विरोधियों द्वारा साइबर युद्ध क्षमताओं के विस्तार ने साइबर डोमेन को पहले से कहीं अधिक प्रतिस्पर्धी बना दिया है। भारतीय सेना आज नेट केंद्रितता की ओर तेजी से बढ़ रही है, जिसके लिए सभी स्तरों पर आधुनिक संचार प्रणालियों पर निर्भरता बढ़ गई है, इसलिए इस डोमेन में नेटवर्क की सुरक्षा और तैयारियों के स्तर को बढ़ाने के लिए, भारतीय सेना में कमांड साइबर ऑपरेशंस एंड सपोर्ट विंग्स (CCOSW) को खड़ा किया जा रहा है। ये संगठन भारतीय सेना की साइबर सुरक्षा स्थिति को मजबूत करने के लिए अनिवार्य साइबर सुरक्षा कार्यों को करने के लिए संरचनाओं की सहायता करेंगे।
क्या काम करेंगी ये यूनिट्स
भारतीय सेना की यह यूनिट्स जम्मू कश्मीर, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख समेत सभी संवेदनशील सीमाओं पर आतंकवादी और भारत विरोधी गतिविधियों के खिलाफ सक्रिय रहेंगी। साइबरस्पेस के इन योद्धाओं ने भारत में बनाई गई नई इनोवेशन और सॉफ्टवेयर्स के जरिए नए साइबर टूल्स तैयार किए हैं। ये साइबर टूल्स सेना के भीतर के कम्युनिकेशन सिस्टम्स को सुरक्षित रखेंगे और दुश्मन की साइबर घुसपैठ को रोकेंगे। इतना ही नहीं यह विंग साइबर डोमेन में भारत के खिलाफ होने वाले किसी भी तरह के दुष्प्रचार को भी काउंटर करेंगे।
विशेष बैठक में दिया गया जोर
17-21 अप्रैल 23 को हाइब्रिड मॉडल में पहली बार आयोजित सेना कमांडरों के सम्मेलन में व्यापक रणनीतिक, प्रशिक्षण, मानव संसाधन विकास और प्रशासनिक पहलुओं पर विचार-विमर्श किया गया और इसके लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। सेना के कमांडरों और अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों ने वर्तमान और उभरते सुरक्षा परिदृश्यों का जायजा लिया और भारतीय सेना की परिचालन तैयारियों और तत्परता की समीक्षा की। विशिष्ट तकनीकों और उपकरणों के द्वारा बलों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इस कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में खास जोर दिया गया।
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शिवानी शर्मा author
19 सालों के पत्रकारिता के अपने अनुभव में मैंने राजनीति, सामाजिक सरोकार और रक्षा से जुड़े पहलुओं पर क...और देखें
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