निशाने पर भारतीय:डॉर्क वेब पर थाइलैंड-म्यांमार से अपराध,जानें इंटरनेट के अंडरवर्ल्ड का काला सच
Fake Job Offer From Foreign Countries:इंटरनेट का जितना हिस्सा हम प्रयोग करते हैं। वह केवल 4 प्रतिशत है। इसे सरफेस वेब के नाम से जाना जाता है। वहीं इंटरनेट का बाकी बचा हुआ 96 प्रतिशत हिस्सा डीप वेब और डार्क वेब है। अपराधी इस दुनिया में मानव तस्करी, अवैध ड्रग्स की सप्लाई से लेकर हथियारों की अवैध खरीद आदि खतरनाक चीजों का अंजाम देते हैं।
साइबर अपराधियों के चंगुल में फंसे कई भारतीय युवा
- थाइलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस जैसे देशों के साइबर अपराधियों के निशाने पर आईटी प्रोफेशनल्स हैं।
- हाल ही में म्यांमार से 45 भारतीयों को अपराधियों के चंगुल से छुड़ाकर भारत लाया गया है।
- डार्क वेब इंटरनेट की दुनिया का वह हिस्सा है, जिसे आसानी से क्रैक नहीं किया जा सकता है।
अवैध ड्रग की सप्लाई सबसे बड़ा धंधा
UNODC की साल 2021 में आई रिपोर्ट के अनुसार, साइबर अपराधी दक्षिण एशिया के देशों में बैठकर बड़े पैमाने पर अवैध धंधे कर रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा सप्लाई प्रतिबंधित ड्रग्स की हो रही है। साल 2019 में डार्क नेट पर करीब 1.40 लाख अवैध उत्पाद बेचे जा रहे थे। उसमें से 95 हजार केवल अवैध ड्रग्स थे। इसमें अफीम, एमडीएमए, कोकीन, हेरोइन, एलएसडी जैसे ड्रग्स की सप्लाई की जा रही है।
इसके अलावा बड़े पैमाने पर फाइनेंशियल फ्रॉड किए जा रहे हैं। इसके लिए भारत और दूसरे देशों से ऐसे लोगों को नौकरी का झांसा दिया जा रहा है, जो अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं। जिससे कि ज्यादा से ज्यादा देशों के लोगों को फंसाया जा सके और उनके साथ फ्रॉड कर सकें। डार्क नेट पर खरीददारी के लिए क्रिप्टो करंसी को जरिया बनाया जा रहा है। जिससे कि फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन को क्रैक नहीं किया जा सके। और अपराधी बचे रहें।
अपराधी क्यों करते हैं डार्क वेब या नेट का इस्तेमाल
असल में डार्क वेब इंटरनेट की दुनिया का वह हिस्सा है, जिसे आसानी से क्रैक नहीं किया जा सकता है। यानी जिसे सर्च इंजन पर इंडेक्स नहीं किया जाता है। इंटरनेट का जितना हिस्सा हम प्रयोग करते हैं। वह केवल 4 प्रतिशत है। इसे सरफेस वेब के नाम से जाना जाता है। वहीं इंटरनेट का बाकी बचा हुआ 96 प्रतिशत हिस्सा डीप वेब और डार्क वेब है। और इसीलिए अपराधी इस दुनिया में मानव तस्करी, अवैध ड्रग्स की सप्लाई से लेकर हथियारों की अवैध खरीद आदि खतरनाक चीजों का अंजाम देते हैं।
चंगुल फंसे लोगों के साथ जानवरों जैसा बर्ताव
ऐसा नही है कि थाइलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस जैसे देशों में इस अपराध की दुनिया में शामिल सभी लोग अपनी मर्जी से यह काम कर रहे हैं। म्यांमार में फंसे भारतीय युवाओं ने 24 सितंबर को जो ट्वीट किया है, उससे वहां की काली दुनिया को समझा जा सकता है। फंसे एक युवा ने विदेश मंत्रालय को टैग करते हुए लिखा है कि हम यहां पर बुरी तरह फंसे हुए हैं। हमें कोई सैलरी नहीं दी जा रही है। मांगने पर बिजली के झटके दिए जा रहे हैं। मारा-पीटा जा रहा है। करीब 300 भारतीय बंधक बने हुए हैं। हमसे 15-16 घंटे काम कराया जा रहा है। और यह सब चीन की कंपनियों द्वारा किया जा रहा है।
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