समलैंगिक विवाह पर SC में दिलचस्प जिरह, आदमी-आदमी की शादी में कौन होगा पत्नी

Gay Marriage Hearing in Supreme court:समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में जिरह चल रही है। पक्ष और विरोध में दमदार दलीलों के जरिए जजों को समझाने की कोशिश की हो रही है कि यह क्यों जरूर या जरूरी नहीं है।

Gay Marriage, Supreme court

समलैंगिक विवाह मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

Gay Marriage Hearing in Supreme court: सेम सेक्स मैरिज या समलैंगिक विवाह मामले में वादी और प्रतिवादी दोनों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court of India) में दिलचस्प दलील पेश की जा रही है। अदालत के सामने सरकार का पक्ष रखते हुए सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को कहा था कि इस मामले को संसद के ऊपर छोड़ देना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एक बॉयोलोजिक पिता और मां बच्चे पैदा कर सकती है, यही प्राकृतिक नियम है, इससे छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। गुरुवार को अदालत में सरकार की तरफ से दलील दी गई कि अगर आदमी-आदमी की शादी को इजाजत दे भी दी गई तो पत्नी कौन बनेगा।केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता(SG Tushar Mehta) ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़(CJI D Y Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि यह एक बहुत जटिल विषय है जिस पर शीर्ष अदालत सुनवाई कर रही है और इसका गहरा सामाजिक प्रभाव है।

कौन होगी विधवा और कौन होगा विधुर

SG तुषार मेहता ने तर्क दिया कि डोमिसाइल के मुद्दे पर आते हैं। शादी के दौरान पत्नी का डोमिसाइल होता है और यह तय करना होगा कि पत्नी कौन है। उत्तराधिकार अधिनियम पिता, माता, भाई, विधवा, विधुर प्रदान करता है। यदि इस संबंध में एक साथी की मृत्यु हो जाती है तो कौन पीछे रह जाता है विधवा या विधुर? एसजी मेहता ने कहा कि अगर आपके आधिपत्य को पति या पत्नी के स्थान पर व्यक्ति पढ़ना था, तो एक व्यक्ति को दूसरे से रखरखाव का दावा करने का अधिकार होगा। मतलब, विषमलैंगिक विवाह के मामले में पति पत्नी से दावा कर सकता है। इस दलील पर सीजेआई ने कहा कि इसलिए, इन प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य को देखते हुए शायद हम आपके तर्कों को यह कहकर समझ सकते हैं कि एसएमए के प्रावधानों की पुनर्व्याख्या करने से तीन प्रमुख समस्याएं होंगी ..."

  • इसमें कानून का पर्याप्त पुनर्लेखन शामिल होगा
  • यह सार्वजनिक नीति के मामलों में हस्तक्षेप के समान होगा
  • यह पर्सनल लॉ के दायरे में भी हस्तक्षेप करेगा और अदालत एसएमए और पर्सनल लॉ के बीच परस्पर क्रिया से बच नहीं सकती है।

सीजेआई ने किया सवाल

CJI चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि तथ्य यह है कि विवाह का पंजीकरण न कराने से विवाह शून्य नहीं हो जाता है। केवल जब आप वीजा आदि के लिए प्रयास करते हैं तब इसकी जरूरत होती है। एक और बात है कि सेक्शन 19 केवल आपके परिवार की स्थिति के संबंध में विच्छेद का प्रावधान करता है। सेक्शन 19 अभी भी व्यक्तिगत कानूनों के अन्य सभी पहलुओं की प्रयोज्यता को बरकरार रखता है। इस सवाल पर एसजी मेहता ने जवाब दिया कि हां, मैं बाध्य हूं इसलिए यह अन्य व्यक्तिगत कानूनों को न छूने का विकल्प नहीं हो सकता है। यह आपस में जुड़ा हुआ है।

एसजी तुषार मेहता कहते हैं कि मान लीजिए कि मैं एक मुस्लिम से शादी करता हूं। केवल उदाहरण के लिए धारा 19 लागू होगी। इसीलिए वो कहते हैं कि पर्सनल लॉ विशेष विवाह अधिनियम के साथ भी जुड़ा हुआ है। ऐसा नहीं कहा जा सकता है वह पर्सनल लॉ लागू नहीं होगा। आप सेक्शन 21 देखें जहां उत्तराधिकार अधिनियम सभी धर्मों पर लागू होता है लेकिन मुसलमानों, पारसियों आदि के अन्य व्यक्तिगत कानूनों पर नहीं लागू है।

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ललित राय author

खबरों को सटीक, तार्किक और विश्लेषण के अंदाज में पेश करना पेशा है। पिछले 10 वर्षों से डिजिटल मीडिया में कार्य करने का अनुभव है।और देखें

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