Sawal Public Ka: क्या महाकाल कॉरिडोर पीएम मोदी का एक और सांस्कृतिक जागरण अभियान है?
Sawal Public Ka: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज्जैन के महाकाल लोक का उद्घाटन किया है। 856 करोड़ में बना उज्जैन महाकाल कॉरिडोर, मोदी युग में भारत की सांस्कृतिक पुनर्स्थापना का अगला पड़ाव है। इसलिए आज सवाल पब्लिक का है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी ने उज्जैन से भारत की आध्यात्मिक चेतना को लौटाने का एक नया अध्याय लिख दिया है?
Sawal Public Ka : वो कालों के काल महाकाल जिनकी महिमा अनादि है। सदियों से जिस दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग ने भारत में सांस्कृतिक चेतना भरी है। उज्जयिनी के जिस स्वयंभू पर त्रिलोक के टिके होने की मान्यता है। उसका एक कण मात्र बनने का सौभाग्य ही बड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज उस महाकाल के महागौरव के साक्षी बने हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने उज्जैन के महाकाल लोक का उद्घाटन किया है। 856 करोड़ में बना उज्जैन महाकाल कॉरिडोर, मोदी युग में भारत की सांस्कृतिक पुनर्स्थापना का अगला पड़ाव है।
महाकाल कॉरिडोर प्रोजेक्ट काशी कॉरिडोर से तकरीबन चार गुना बड़ा है। महाकाल पथ पर 108 स्तंभ हैं जिन पर शिव की नृत्य मुद्राएं बनी हुई हैं। महाकाल पथ पर दीवारों पर बनी पेंटिंग्स शिव पुराण पर आधारित हैं। महाकाल पथ के साथ ही एक विशाल कमल कुंड है। इस कमल कुंड के साथ कुल मिलाकर महाकाल परिसर अब 47 हेक्टेयर में फैल गया है। इसलिए आज सवाल पब्लिक का है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी ने उज्जैन से भारत की आध्यात्मिक चेतना को लौटाने का एक नया अध्याय लिख दिया है? महाकाल की जय, मोदी की हर राह तय ?
उज्जैन का महाकाल लोक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस विजन का नमूना है जहां भारत की संस्कृति से दुनिया वाकिफ हो रही है। उसमें छद्म सेकुलरवाद या यूं कहें कि वोट बैंक के तुष्टीकरण का डर नहीं। अब देश का प्रधानमंत्री...अनादि, अनंत, अविनाशी भारत के उन चेतना बिंदुओं को अपने सिर माथे लगता है जिसे बीते कुछ दशकों में ये कह कर ठुकराने की कोशिश की गई थी कि ये तो हिंदू प्रतीक हैं और सेकुलर देश में इनकी जगह सिर्फ घरों के भीतर है। कम से कम प्रधानमंत्री के स्तर पर इनको सार्वजनिक तौर पर अपनी Sleeves पर बांधा नहीं जा सकता।
मैंने आप को उज्जैन के महाकाल का विस्तार बताया। आप इसकी भव्यता के दर्शन कर के ही समझ जाएंगे कि भारत सिर्फ वह नहीं, जिसे अब से पहले टेक्स्ट बुक्स में पन्ने रंग कर के बताया गया, जबकि उज्जैन, काशी, केदारनाथ जैसी भारत की सांस्कृतिक राजधानियों को तैयार हो रही पीढ़ियों के मन-मस्तिष्क में सिर्फ फुट नोट्स की तरह चस्पा कर के निपटा दिया गया था। इसीलिए आज जब उज्जैन का महाकाल कॉरिडोर बनकर तैयार हुआ है तो एक नई बहस को जन्म दे गया है, कि अब से पहले ये क्यों नहीं हुआ?
वैसे जिस दिन महाकाल कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ, मध्य प्रदेश कांग्रेस ने ट्वीट कर के कहा कि कॉरिडोर के लिए 300 करोड़ रुपए तो कमलनाथ सरकार ने स्वीकृत कर के इसका काम शुरू करा दिया था। उधर, बीजेपी के नेताओं का दावा है कि मोदी 2004 में उज्जैन के कुंभ में आए थे तभी से उनके मन में उज्जैन महाकाल परिसर के विस्तारीकरण की इच्छा जगी थी।
आप कल्पना भर कीजिए कि बीते 8 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किस तरह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को जीवंत करने की कोशिश की है। इस चेतना को सिर्फ हिंदू आस्था कह के एक समुदाय तक सीमित करना भारत की परंपरा को कमतर करना है।
अयोध्या से लेकर सोमनाथ तक,
काशी से लेकर केदारनाथ तक,
पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक...
भारत के रोम-रोम में बसी हमारे पुरखों की विरासत को सिर्फ इसलिए धर्म के खांचों में बांटा नहीं जा सकता, क्योंकि बीते कुछ सौ वर्षों के कालखंड में अलग-अलग पूजा पद्धतियों वाले वर्ग और समुदाय बन गए।
सवाल पब्लिक का
1. क्या महाकाल कॉरिडोर मोदी का एक और सांस्कृतिक जागरण अभियान है?
2. क्या आज के भारत में हिंदू होना शर्म नहीं, वोट बैंक से दबा धर्म नहीं ?
3. क्या मोदी का इंडिया भारतीय संस्कृति का गोल्डन पीरियड बन गया है ?
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