ISRO Journey: साइकिल से लेकर चांद तक...कुछ इस तरह रहा है 'भारत का गर्व' इसरो का सफर
ISRO Journey: अंतरिक्ष अनुसंधान यानि स्पेस रिसर्च में इंडियन स्पेस एंड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानि ISRO की शानदार उपलब्धि रही है। ये यात्रा शून्य से अनंत तक के सफर जैसी है। कभी साइकिल से अपनी यात्रा की शुरआत करने वाला इसरो आज चांद पर पहुंच चुका है।
इसरो का सफर
ISRO Journey: आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि कि इसरो की चर्चा हर ओर हो रही है। भारत का चंद्रयान-3 मिशन चांद की धरती चूम चुका है। इसरो का विक्रम लैंडर चांद पर लैंड कर चुका है। आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत जिस मुकाम पर पहुंचा है, उसमें इसरो की बहुत बड़ी भूमिका है। इसरो के वैज्ञानिकों की तपस्या और 140 करोड़ भारतीयों की उम्मीदें अब पूरी हो चुकी हैं।
यहां देखें लाइव- आज चंद्रमा की धरती पर कदम रखेगा चंद्रयान-3, इसरो की सारी तैयारियां पूरी; पढ़िए पल-पल के अपडेट्स
1962 से यात्रा की शुरुआत
अंतरिक्ष अनुसंधान यानि स्पेस रिसर्च में इंडियन स्पेस एंड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानि ISRO की शानदार उपलब्धि रही है। ये यात्रा शून्य से अनंत तक के सफर जैसी है। कभी साइकिल से अपनी यात्रा की शुरआत करने वाला इसरो आज चांद पर पहुंच चुका है। 1962 में भारत ने अंतरिक्ष का सफर करने का फैसला किया और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने INCOSPAR की स्थापना की थी।आपको बता दें कि बाद में डॉ. विक्रम साराभाई ने उन्नत टेक्नोलॉजी के विकास के लिये 5 अगस्त, 1969 को इसका नाम बदलकर ISRO कर दिया गया।
विक्रम साराभाई को मिली जिम्मेदारी
1963 में पहले रॉकेट प्रक्षेपण से लेकर चंद्रयान-3 तक की ISRO की यात्रा शानदार रही है। 1962 में पहली बार भारत ने अंतरिक्ष का सफर करने का फैसला लिया था और तब अंतरिक्ष रिसर्च के लिए भारतीय अनुसंधान कमेटी का गठन किया गया था। अंतरिक्ष अनुसंधान की जिम्मेदारी दी गई थी डॉ. विक्रम साराभाई को। जिन्होंने अपनी टीम बनाई और भारत के स्पेस रिसर्च की शुरुआत की। विक्रम साराभाई को नेशनल कमेटी ऑफ़ स्पेस रिसर्च का प्रमुख बनाया गया था। इस कमेटी के गठन के बाद विक्रम साराभाई के सामने असली चुनौती स्पेस रिसर्च स्टेशन के लिए जगह तलाशने की थी। जो बहुत जल्द अपने पहले मिशन को अंजाम देने वाला था। स्पेस रिसर्च के लिए जगह का चुनाव हुआ और ये इलाका था केरल का थुंबा।
केरल का थुंबा का चुनाव
लेकिन थुंबा ही क्यों? इस सवाल का जवाब भारत के मिसाइल मैन (विक्रम साराभाई के साथ कलाम की फोटो) और विक्रम साराभाई की टीम का अहम हिस्सा रहे एपीजे अब्दुल कलाम अपनी किताब इग्नाइटेड माइंड्स में देते हैं। एपीजे कलाम ने लिखते हैं- "थुम्बा विषुवत रेखा (Equator) के नज़दीक होने के चलते सबसे मुफीद जगह थी।" यानी यहां पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलने के लिए बहुत ज़्यादा ऊर्जा की ज़रूरत नहीं होती है। स्पेस रिसर्च स्टेशन के लिए के लिए केरल के थुंबा को चुने जाने के पीछे एक वजह और थी वो ये कि रॉकेट प्रक्षेपण के लिए ये जरूरी था कि वो जगह अलग-थलग हो। क्योंकि इसमें मलबे के गिरने की आशंका थी और आबादी से दूर और समुद्र तट इसके लिए ज्यादा सुरक्षित था।
इसरो की तैयारी देख दुनिया रह गई थी हैरान
स्पेस सेंटर स्टेशन बनने के साथ ही करीब एक साल बाद यानि 1963 में भारत अपने पहले रॉकेट लॉन्च के लिए तैयार था ये रॉकेट था- साउंडिंग रॉकेट नाइक अपाचे।थुंबा में पहले रॉकेट लॉन्च की तैयारी डॉ. विक्रम साराभाई के नेतृत्व में भारत ने की थी, लेकिन उससे पहले जो तस्वीरें दुनिया की मीडिया ने देखी उससे पूरी दुनिया को ऐसा लगा था जैसे कोई मजाक चल रहा हो तस्वीरें थी ही कुछ ऐसी। रॉकेट के कलपुर्जों और अंतरिक्ष उपकरणों को प्रक्षेपण स्थल तक बैलगाड़ी और साइकिल से ले जाया गया था। ये तस्वीरें यकीनन हैरान करने वाली थीं। अंतरिक्ष के इतने अहम मिशन के लिए संसाधनों और सुविधाओं का अभाव कितना था। इसे समझना मुश्किल नहीं था।लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों को अपनी क्षमताओं और लीडर विक्रम साराभाई पर भरोसा था। इस प्रोजेक्ट में अहम भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक और साराभाई के शिष्य आर अरवामुदन ने इन शुरुआती दिनों के बारे में अपनी बायोग्राफी में 'इसरो- द पर्सनल हिस्ट्री' में लिखते हैं-'उस वक्त हमलोग कहीं आने-जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते थे। कलाम साइकिल नहीं चलाते थे, तो वो किसी दूसरे के साथ साइकिल पर बैठते थे। हमलोग साइकिल से रॉकेट लॉन्चर वैगरह भी ले आते थे क्योंकि हम लोगों के पास एक ही जीप थी जो बेहद व्यस्त थी।"
जब चौंका दुनिया
सीमित संसाधनों और सुविधाओं के बावजूद भारत ने 21 नवंबर 1963 में रॉकेट का सफल परीक्षण करके दुनिया को चौंका दिया। भारत की स्पेस रिसर्च में ये एक धमाकेदार एंट्री थी। इसका बाद आया साल 1969। जब इन्कोस्पार यानि इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च का नाम बदल कर 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' यानि ISRO कर दिया गया। पहले रॉकेट लॉन्च से लेकर अब तक के चंद्रयान -3 मिशन तक इसरो दुनिया की टॉप 6 स्पेस एजेंसी में अपना नाम दर्ज करा चुका है।
बढ़ी अंतरिक्ष में धमक
19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपना पहला उपग्रह 'आर्यभट्ट' रूस के प्रक्षेपण केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर किया और इसके साथ ही अंतरिक्ष की दुनिया में भारत ने अपना नाम दर्ज करा लिया। आर्यभट्ट एक छोटा उपग्रह था जिसका वजन महज 360 किलो था। इसे बनाने में 3 साल का समय लगा था और तीन करोड़ खर्च हुए थे।
- पहला रॉकेट लॉन्च- 21 नवंबर 1963
- पहला उपग्रह 'आर्यभट्ट'- 19 अप्रैल 1975
- SLV-2 सफल परीक्षण- 18 जुलाई 1980
- इनसेट 1-B प्रक्षेपण- 1983
- PSLV का प्रक्षेपण- 1994
- चंद्रयान-1 प्रक्षेपण- 22 अक्टूबर 2008
- 104 सैटेलाइट प्रक्षेपण- फरवरी 2017
- मंगल मिशन- साल 2014
- चंद्रयान-2- 22 जुलाई 2019
- चंद्रयान-3- 14 जुलाई 2023
भारत का गर्व
साइकिल और बैलगाड़ी के साथ शुरु हुआ भारत के अंतरिक्ष रिसर्च का सफर आज इसरो को दुनिया की टॉप स्पेस एजेंसीज में शामिल कर चुका है। चंद्रमा पर विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही भारत चांद के रहस्यों को बेपर्दा करेगा। इसरो की उड़ान के साथ ही ये उड़ान भी उतनी ही अहम है। ISRO जिद और जुनून का दूसरा नाम है। जो अपने बनाए रिकॉर्ड तोड़ता है और नए कीर्तिमान गढ़ता है।
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