अब सेंगोल पर संग्राम: जयराम रमेश बोले, Sengol को लेकर कोई साक्ष्य नहीं, सभी दावे पूरी तरह बोगस

जयराम रमेश ने ट्वीट किया- स्वतंत्र भारत की पहली निर्वाचित सरकार को अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में तमिल कलाकृतियों की पुष्टि करने वाला कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है...

Jairam Ramesh

Sengol: नए संसद भवन के बाद अब कांग्रेस ने सेंगोल को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने कहा है कि इतिहास में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि सेंगोल को स्वतंत्रता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था। कांग्रेस के इस दावे के बाद अब नई सियासी जंग छिड़ती दिख रही है। कांग्रेस और बीजेपी में पहले से ही नई संसद के उद्घाटन को लेकर संग्राम छिड़ा हुआ है।

जयराम रमेश बोले, कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने शुक्रवार को 'सेंगोल' पर अपने दावों को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला। जयराम रमेश ने ट्वीट किया- स्वतंत्र भारत की पहली निर्वाचित सरकार को अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में तमिल कलाकृतियों की पुष्टि करने वाला कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है, जैसा कि केंद्र द्वारा दावा किया गया है। माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू द्वारा इस राजदंड को भारत में ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में बताने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है। इस संबंध में सभी दावे पूरी तरह से बोगस हैं। कुछ लोगों ने इस योजना को तैयार किया और और व्हाट्सएप के जरिए फैला दिया।

व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से निकल रही गलत बातें

उन्होंने कहा, क्या यह कोई हैरत की बात है कि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से नई संसद को झूठे आख्यानों के साथ पवित्र किया जा रहा है? बड़े दावों, कम साक्ष्यों के साथ भाजपा/आरएसएस के ढोंगियों का एक बार फिर से पर्दाफाश हो गया है। तत्कालीन मद्रास प्रांत में एक धार्मिक प्रतिष्ठान द्वारा कल्पित और मद्रास शहर में तैयार किया गया राजसी राजदंड वास्तव में अगस्त 1947 में नेहरू को तोहफे में दिया गया था। राजदंड को बाद में इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए रखा गया। 14 दिसंबर, 1947 को नेहरू ने वहां जो कुछ कहा, वह सार्वजनिक रिकॉर्ड का मामला है, भले ही लेबल कुछ भी कहें।

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