विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से ऊपर है भारत का संविधान: जस्टिस बीवी नागरत्ना

अपने संबोधन मे न्यायाधीश ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक न्याय का आदर्श हमारे संविधान के संस्थापकों की सोच के केंद्र में था। इसके बाद दूसरा आदर्श जो कि आज के समय में बहुत्व महत्व रखता है, वह आजादी है। उन्होंने कहा कि संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के दायरे को बढ़ाने पर चर्चा के लिए अभी भी संभावना है।

विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि थीं जस्टिस नागरत्ना।

Justice BV Nagarathna : सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सोमवार को बड़ी बात कही। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि 'न तो न्यायपालिका, न ही कार्यपालिका और न ही विधायिका सबसे बड़ी हैं। वास्तव में जो चीज सबसे बड़ी है, वह है भारत का संविधान। किसी मामले में खास तरह के फैसले पर सरकार कोर्ट पर सवाल खड़े नहीं कर सकती। ठीक इसी तरह कोर्ट भी विधायिका की बुद्धिमता पर प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा कर सकता।'

किताब के विमोचन के मौके पर रखे अपने विचार

जस्टिस ने कहा, 'न्यायपालिका की आजादी संविधान के सबसे उत्कृष्ट विचारों में से एक है। हम न्यायाधीश इसका सबसे ज्यादा सम्मान करते हैं।' जस्टिस नागरत्ना 'कॉन्स्टिट्यूशनल आइडियल्स : डेवलपमेंट एंड रीयलाइजेशन थ्रू कोर्ट लेड जस्टिस' पुस्तक के विमोचन के मौके पर अपने विचार व्यक्त किए। वह समारोह की मुख्य अतिथि के रूप में वहां आई थीं। इस किताब के लेखक दक्ष हैं।

'फ्रेटरनिटी को सबसे कम समझा गया है'

अपने संबोधन मे न्यायाधीश ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक न्याय का आदर्श हमारे संविधान के संस्थापकों की सोच के केंद्र में था। इसके बाद दूसरा आदर्श जो कि आज के समय में बहुत्व महत्व रखता है, वह आजादी है। उन्होंने कहा कि संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के दायरे को बढ़ाने पर चर्चा के लिए अभी भी संभावना है। हालांकि, मौलिक अधिकारों के दायरे का विस्तार बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि बार किस हद तक न्यायालयों की मदद करते हैं। जस्टिस ने आगे कहा कि 'आजादी हमारे साथ बनी रहे, इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भारत के लोगों की है।' जस्टिस ने कहा कि सभी चार आदर्शों में भातृत्वभावना (फ्रेटरनिटी) को सबसे कम समझा गया है।

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आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने...और देखें

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