बढ़ा विवाद तो कन्नड आरक्षण पर कर्नाटक सरकार ने ले लिया यूटर्न, बिल को सिद्दारमैया ने किया होल्ड
कर्नाटक का यह कदम हरियाणा सरकार द्वारा पेश किए गए विधेयक जैसा ही है, जिसमें राज्य के निवासियों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य किया गया था। हालांकि, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 17 नवंबर 2023 को हरियाणा सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था।
स्थानीय नौकरियों में कन्नड आरक्षण वाले बिल को कर्नाटक सरकार ने रोका
- कर्नाटक से पहले हरियाणा ने लाया था ऐसा कानून
- हाईकोर्ट में रद्द हो गया था हरियाणा सरकार का फैसला
- अब कर्नाटक सरकार भी कन्नड़ आरक्षण पर बैकफुट पर
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार एक ऐसा कानून लाने की तैयारी में है, जिससे स्थानीय प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में कन्नड वासियों को 100 प्रतिशत आरक्षण मिलने लगेगा। राज्य मंत्रिमंडल ने सोमवार को कर्नाटक राज्य उद्योग, कारखाने और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार देने संबंधी विधेयक, 2024 को मंजूरी दी थी। इसमें निजी कंपनियों के लिए अपने प्रतिष्ठानों में कन्नड़ भाषी लोगों को आरक्षण देना अनिवार्य करने का प्रावधान है। इस विधेयक की खबर आते ही विरोध के स्वर उठने लगे थे, आलोचना होने लगी थी, जिसके बाद अब सिद्दारमैया सरकार ने इसे होल्ड कर दिया है।
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फिलहाल कन्नड आरक्षण बिल पर स्टे
प्राइवेट सेक्टर में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने से जुड़े बिल को इस सेशन में टेबल नहीं किया जाएगा। सोमवार को कैबिनेट ने इस बिल पर मुहर लगाई थी। जिसमें मैनेजमेंट लेवल पर 50 फीसदी और नॉन मैनेजमेंट लेवल पर 70 फीसदी स्थानीय लोगों को रिजर्वेशन देने की बात की गई थी
सरकार ने सदन ने इसी सत्र में इस बिल को टेबल करने की भी बात की थी। लेकिन आज नैसकॉम जैसी संस्था और कई बड़े उद्योगपतियों ने इसका विरोध करते हुए सरकार से इस पर पुनर्विचार करने की मांग की थी।
विधेयक में क्या-क्या था प्रावधान
- किसी भी उद्योग, कारखाना या अन्य प्रतिष्ठानों में प्रबंधन स्तर पर 50 प्रतिशत और गैर प्रबंधन श्रेणी में 70 प्रतिशत आरक्षण स्थानीय लोगों को देना अनिवार्य होगा।
- इसमें कहा गया है कि यदि उम्मीदवार के पास कन्नड़ भाषा के साथ माध्यमिक विद्यालय का प्रमाणपत्र नहीं है, तो उन्हें ‘नोडल एजेंसी’ द्वारा आयोजित कन्नड़ प्रवीणता परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी।
- प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक नोडल एजेंसी को रिपोर्ट के सत्यापन के उद्देश्य से किसी नियोक्ता, अधिभोगी या प्रतिष्ठान के प्रबंधक के पास मौजूद किसी भी रिकॉर्ड, सूचना या दस्तावेज को मांगने का अधिकार होगा।
- इसमें कहा गया है कि सरकार अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन कराने के लिए सहायक श्रम आयुक्त से उससे ऊपर के स्तर के अधिकारी को प्राधिकृत अधिकारी के रूप में नियुक्त कर सकती है।
कहां से उठा विरोध का स्वर
चर्चित उद्यमी एवं इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी टी.वी.मोहनदास पाई ने विधेयक को ‘फासीवादी’ करार दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर जारी पोस्ट में कहा- ‘‘ इस विधेयक को रद्द कर देना चाहिए। यह पक्षपातपूर्ण, प्रतिगामी और संविधान के विरुद्ध है। अविश्वसनीय है कि कांग्रेस इस तरह का विधेयक लेकर आ आई है- एक सरकारी अधिकारी निजी क्षेत्र की भर्ती समितियों में बैठेगा? लोगों को भाषा की परीक्षा देनी होगी...?’’
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