पंजाब का वो शख्स जिसने यूपी की सियासत को बदल दिया, मायावती बनीं बड़ी पहचान

Kanshiram Story: पंजाब के रोपड़ में जन्में कांशीराम ने यूपी को कर्मभूमि के तौर पर चुना था। उन्हें इस बात की समझ हो गई थी कि राष्ट्रीय स्तर पर खुद की पहचान बनाने के लिए उन्हें यूपी से बेहतर सियासी जमीन नहीं मिल सकती। अपने मकसद को हासिल करने के लिए उन्होंने कई नारों का ईजाद भी किया जिसे लेकर विवाद भी हुए थे।

15 मार्च को पंजाब के रोपड़ में कांशीराम का हुआ था जन्म

Kanshiram Story: सियासत, खुला तंत्र है, इस तंत्र में कोई भी अपनी कामयाबी की स्क्रिप्ट लिख सकता है, जरूरत सिर्फ इस बात को समझने में होती है कि जो कुछ उसने सोचा क्या उसकी टाइमिंग ठीक थी, जो कुछ उसने बोला क्या वो लोगों के दिलों में उतर गई। अगर कोई सियासी चेहरा सही समय पर जनता के मूड को भांपने में सक्षम हुआ तो सत्ता उसके हाथ में आई। यहां पर हम बात कर रहे हैं कि कांशीराम और उनकी शागिर्द रहीं मायावती(mayawati in up politics)। कांशीराम का रिश्ता सीधे तौर पर यूपी से तो नहीं था। लेकिन 15 मार्च को पंजाब के रोपड़ में जन्में कांशीराम की कर्मभूमि बनी। 1980 के मध्य में कांशीराम उन दबे कुचले लोगों की आवाज बनने का दावा कर रहे थे जिन्हें कभी कोई आवाज नहीं मिली। यूपी के गांवों में, छोटे कस्बों में छोटी छोटी सभाओं के जरिए वो बताने की कोशिश कर रहे थे कि आजादी के बाद दलित समाज के साथ सिर्फ नाइंसाफी हुई। लेकिन अब समय बदल रहा है,आप लोग सामाजिक शोषण की जंजीरों से खुद को आजाद करिए। उनकी मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए एक चेहरे की जरूरत थी और वो चेहरा मायावती बनीं।

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सियासत और कांशीराम

सियासी कामयाबी हासिल करने के लिए कांशीराम ने कई नारे गढ़े जिसे लेकर विवाद भी हुआ। लेकिन उन नारों ने यूपी में बीएसपी की जमीन तैयार की और उसका फायदा भी मिला। 1990 में वी पी सिंह ने मंडल कमीशन(Mandal commission report) की रिपोर्ट को लागू कर दिया और उसका पहला बड़ा प्रयोग यूपी में हुआ। मुलायम सिंह की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने मिलकर चुनाव लड़ा और उसकी आंधी में बीजेपी की कमंडल की राजनीति पस्त हो गई। कांशीराम के निर्देशन में मायावती को देश के सबसे बड़े सूबों में से एक यूपी का ताज मिला।

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कौन थे कांशीराम

  • 1956 में ग्रेजुएट होने के कांशीराम को सरकारी नौकरी मिली।
  • गोला-बारूद की फैक्ट्री की लैब में असिस्टेंट के पद पर तैनात थे।
  • जातीय स्तर पर भेदभाव से वो परेशाना रहा करते थे।
  • 6 साल की सेवा के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
  • 1973 में बामसेफ यानी बैकवर्ड माइनॉरिटीज कम्यूनिटी एंप्लाइट फेडरेशन बनाया
  • 1981 में डीएस-4 का गठन किया।
कांशीराम के वो खास नारे

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