कारगिल में जिन्हें मिला परमवीर चक्र... जानिए मनोज पांडे, योगेंद्र यादव, संजय कुमार और विक्रम बत्रा की कहानी

Kargil Vijay Diwas: कैप्टन मनोज कुमार पांडे, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, राइफलमैन संजय कुमार और कैप्टन विक्रम बत्रा की वो कहानी आपको बताते हैं, जिसके चलते उन्हें कारगिल युद्ध के बाद देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 26 जुलाई को पूरा देश कारगिल में शहीद जवानों की याद में कारगिल विजय दिवस मनाता है।

कारगिल युद्ध के बाद किन वीर योद्धाओं मिला परमवीर चक्र?

Kargil War Param Vir Chakra: कारगिल युद्ध में वीरता से लड़ने वाले चार जवानों को देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र दिया गया। इनमें लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पाण्डेय को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया। ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव को परमवीर चक्र दिया गया। राइफलमैन संजय कुमार को परमवीर चक्र दिया गया। कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया। हर साल 26 जुलाई को कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान के लिए कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। साल 1999 में मई के महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के कारगिल में युद्ध शुरू हुआ था। आपको उन चार जवानों की कहानी के बारे में जानना चाहिए।

परमवीर चक्र विजेता: कैप्टन मनोज कुमार पांडे

कैप्टन मनोज कुमार पांडे 1999 के ऑपरेशन विजय में प्लाटून कमांडर थे, जो बटालिक सेक्टर के खालूबार की ओर बढ़ रही थी। उनके बटालियन के इस पूरी बढ़त पर दुश्मनों ने बुरी तरह रोक रखा था, जो कि ऊपर की पहाड़ियों पर पोजीशन लेकर हमला कर रहे थे। दोनों तरफ से भयंकर गोलीबारी के बीच वे निरंतर आगे बढ़ रहे थे। कंधे और टांग में गोली लगी थी। घायल होने के बावजूद, कैप्टन मनोज कुमार अपनी सैन्य टुकड़ी को लगातार प्रेरित कर रहे थे। ज्यादा खून बहने की वजह से भारत माता का ये सपूत देश पर कुर्बान हो गया। मगर उनकी शहादत बेकार नहीं गई और भारत ने इस युद्ध में दुश्मनों को बुरी तरह तबाह कर दिया। कैप्टन मनोज कुमार पांडे के अंतिम शब्द थे “ना छोड़ना” जो भारतीय सेना के लिए प्रेरणा बने। कैप्टन मनोज कुमार पांडे को शहादत के बाद उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

परमवीर चक्र विजेता: ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव

ग्रेनेडियर योगेंद्र को 1999 के कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता के लिए परमवीर चक्र दिया गया था। वे घातक प्लाटून का हिस्सा थे, जिन्हें टाइगर हिल पर फिर से कब्जे की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी। किसी भी प्रकार के खतरे से बेपरवाह ग्रेनेडियर योगेंद्र ने इस खड़ी चढ़ाई पर जीत के लिए रस्सी के सहारे जाने का फैसला लिया। उनके इस बढ़ते कदम को देख कर दुश्मनों ने ग्रेनेड, रॉकेट और गोले-बारूद से हमला कर दिया। इसमें कमांडर और उनके दो साथियों की मौत हो गई। परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए ग्रेनेडियर योगेंदर रेंगते हुए आगे बढ़े और उनके इस साहस ने पूरी सैन्य टुकड़ी में ऊर्जा का संचार कर दिया था और भारतीय सेना टाइगर हिल टॉप पर कब्जा करने में सफल रही।
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