क्या तीसरी बार कर्नाटक में कमल खिला पाएगी बीजेपी? ये दो वोक्कालिंगा नेता बिगाड़ सकते हैं खेल
कर्नाटक में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी को राज्य में अपनी सरकार बनाने के लिए दक्षिणी कर्नाटक में अपने प्रदर्शन को दोहराना होगा क्योंकि इस क्षेत्र में 51 विधानसभा सीटें हैं।
बीजेपी के लिए दक्षिण कर्नाटक है चुनौती
तटीय कर्नाटक से हुआ था उदय
कर्नाटक में बीजेपी का उदय तटीय कर्नाटक से शुरू हुआ और पार्टी ने धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों में अपना विस्तार किया। पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी ने दक्षिणी कर्नाटक (मैसूर क्षेत्र) को छोड़कर पूरे राज्य में अच्छा प्रदर्शन किया है। इस क्षेत्र में भाजपा का दबदबा कमजोर है और वह अभी भी कांग्रेस और जद (एस) से पीछे है।
हालांकि, बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में काफी सुधार किया। कर्नाटक में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी को राज्य में अपनी सरकार बनाने के लिए दक्षिणी कर्नाटक में अपने प्रदर्शन को दोहराना होगा क्योंकि इस क्षेत्र में 51 विधानसभा सीटें हैं। कर्नाटक में छह अलग-अलग क्षेत्रों में फैले 224 विधानसभा क्षेत्र हैं- बेंगलुरु, मध्य, तटीय, हैदराबाद-कर्नाटक, मुंबई-कर्नाटक और दक्षिणी कर्नाटक। मुंबई-कर्नाटक और दक्षिणी कर्नाटक राज्य के सबसे बड़े क्षेत्र हैं और इनमें क्रमशः 50 और 51 विधानसभा सीटें हैं। भाजपा के लिए दक्षिण कर्नाटक ही बड़ी चुनौती है।
तटीय कर्नाटक राज्य का सबसे छोटा क्षेत्र है जिसमें केवल 21 विधानसभा सीटें हैं। हालांकि, इस क्षेत्र में बीजेपी चुनावों में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है। 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को तटीय कर्नाटक में 51 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि उनका राज्यवार (कुल) वोट शेयर 36 प्रतिशत था। पार्टी इस क्षेत्र की 21 में से 18 विधानसभा सीटें लगभग 90 प्रतिशत स्ट्राइक रेट के साथ जीतने में सफल रही थी।
मध्य कर्नाटक में रहा अच्छा प्रदर्शन
बीजेपी ने सेंट्रल कर्नाटक में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। यहां पार्टी ने 43 फीसदी वोट शेयर के साथ 35 विधानसभा सीटों में से 24 पर जीत हासिल की थी। यहां बीजेपी का स्ट्राइक रेट करीब 70 फीसदी था। मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र में बीजेपी को 44 प्रतिशत वोट मिले और उनकी स्ट्राइक रेट 60 प्रतिशत थी और पार्टी ने 50 में से 30 विधानसभा सीटें जीती थीं। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि बीजेपी का प्रदर्शन तटीय कर्नाटक में लगातार अच्छा रहा है।
दक्षिण कर्नाटक में बीजेपी कमजोर
कर्नाटक में पार्टी राज्य के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक में कमजोर स्थिति में रही है, जिसे दक्षिणी कर्नाटक के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र में 51 विधानसभा सीटें हैं। बीजेपी 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में 18 फीसदी वोटों के साथ सिर्फ नौ विधानसभा सीटें जीतने में सफल रही थी और यह राज्य के किसी भी विधानसभा चुनाव में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दक्षिणी कर्नाटक में सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल की थी। पार्टी को इस क्षेत्र में उस चुनाव में महज 8 फीसदी वोट मिले थे। वोट शेयर के मामले में बीजेपी को 2008 के विधानसभा चुनाव में दक्षिणी कर्नाटक में 22 फीसदी वोट मिले थे।
लिंगायत बनाम वोक्कालिंगा
लिंगायत और वोक्कालिंग कर्नाटक में आर्थिक और राजनीतिक रूप से दो प्रमुख समुदाय हैं। राज्य में लिंगायतों की आबादी अधिक है, इसके बाद वोक्कालिंगा हैं। पुराना मैसूर या दक्षिणी कर्नाटक वोक्कालिगा का आधार है। वे ज्यादातर दक्षिणी क्षेत्र के किसान वर्ग से हैं। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री (कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री भी) और जनता दल (सेक्युलर) के नेता एच.डी. देवेगौड़ा इसी समुदाय और इसी क्षेत्र से आते हैं। बाद में उनके पुत्र एचडी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।
वोक्कालिंगा लगातार और मजबूती से जद (एस) का समर्थन करते रहे हैं। इस समुदाय के पास राज्य में लंबे समय से उनका एक लोकप्रिय नेता है और चुनावी नतीजे स्पष्ट रूप से इस क्षेत्र में जेडीएस के मजबूत आधार का संकेत देते हैं। यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां जेडीएस को पिछले कई चुनावों में 30 प्रतिशत अधिक वोट मिले हैं और उसने महत्वपूर्ण संख्या में सीटें जीतीं। 2018 के विधानसभा चुनावों में जेडीएस को दक्षिणी कर्नाटक में 38 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि राज्य में उनका कुल वोट शेयर 18 प्रतिशत था।
कांग्रेस के डीके शिवकुमार बड़ी चुनौती
बीजेपी के लिए चुनौतियां और भी हैं। कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डी. के. शिवकुमार इसी क्षेत्र से हैं और वोक्कालिंगा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। दक्षिणी कर्नाटक में शानदार प्रदर्शन के लिए बीजेपी को वोक्कालिंगा समुदाय का पक्ष लेना होगा। कांग्रेस और जेडीएस के विपरीत बीजेपी के पास इस क्षेत्र में कोई बड़ा नेता नहीं है। शायद यही बड़ा कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बेंगलुरु-मैसूरु राजमार्ग का उद्घाटन किया, ताकि पार्टी राज्य में बुनियादी ढांचे के विकास के माध्यम से वोटरों को आकर्षित कर सके। बीजेपी का यह दांव कितना काम आता है ये देखने के लिए कुछ महीनों का इंतजार करना होगा।
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करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें
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