कर्नाटक: 1985 के बाद किसी पार्टी को नहीं मिला लगातार जनादेश, समझिए राज्य का सियासी गणित

1985 के बाद से किसी भी राजनीतिक दल ने राज्य में लगातार जनादेश हासिल नहीं किया है और बीजेपी इस इतिहास को फिर से लिखने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है।

karnataka elections 2023

कर्नाटक में चुनावी बिगुल बज गया है

Karnataka elections: चुनाव आयोग की ओर से मतदान की तारीख और मतगणना की घोषणा के साथ ही कर्नाटक में चुनावी बिगुल बज गया है। इसी के साथ राज्य में सियासी गतिविधियों ने पूरी तरह जोर पकड़ लिया है। 10 मई को मतदान होगा और 13 मई को मतगणना होगी। यानि चुनाव में डेढ़ महीने से भी कम का वक्त बचा है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस की क्या स्थिति है।
चुनाव आयोग द्वारा कर्नाटक में विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही चुनावी हलचल, विश्लेषण और कयासों का दौर शुरू हो गया है। क्या सत्तारूढ़ बीजेपी चार दशक पुराने इतिहास को दोहरा पाएगी या कांग्रेस अपने भगवा प्रतिद्वंद्वी को चुनौती देते हुए वापसी कर 2024 संसदीय चुनाव के लिए जरूरी दमखम हासिल कर सकेगी? क्या इस बार भी जेडीएस कांग्रेस के लिए अहम साबित होगी?

1985 के बाद किसी ने हासिल नहीं किया लगातार जनादेश

1985 के बाद से किसी भी राजनीतिक दल ने राज्य में लगातार जनादेश हासिल नहीं किया है और बीजेपी (BJP) इस इतिहास को फिर से लिखने और अपने दक्षिणी गढ़ को बनाए रखने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। 2024 के लोकसभा चुनावों में खुद को मुख्य विपक्षी दल के रूप में स्थापित करने के मद्देनजर कांग्रेस के लिए जीत हर हाल में जरूरी है। नजर इस पर भी होगी कि क्या त्रिशंकु जनादेश की स्थिति में पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा की अगुआई वाली जनता दल-सेक्युलर (JDS) सरकार बनाने की कुंजी थामकर किंगमेकर के रूप में उभरेगी? अतीत में ऐसा हो चुका है। कांग्रेस और जेडीएस उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर चुके हैं। कांग्रेस ने 124 और जेडीएस 93 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। पिछले दो दशकों की तरह कर्नाटक में 10 मई को होने वाले चुनावों में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। अधिकांश सीटों पर कांग्रेस, बीजेपी और जेडी (एस) के बीच सीधी लड़ाई होगी।
चुनाव में छोटी पार्टियां भी किस्मत आजमा रही हैं। जहां आम आदमी पार्टी (AAP) लोगों में कुछ पैठ बनाने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी छोटी पार्टी जैसे खनन कारोबारी जनार्दन रेड्डी की कल्याण राज्य प्रगति पक्ष (केआरपीपी), लेफ्ट पार्टियां, बसपा, एसडीपीआई (प्रतिबंधित पीएफआई की राजनीतिक शाखा) और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेतृत्व वाली पार्टियां कुछ चुनिंदा सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कर्नाटक चुनावों में सत्ता विरोधी लहर एक महत्वपूर्ण कारक है, क्योंकि मतदाताओं ने किसी भी पार्टी को लगातार जनादेश नहीं दिया है। ऐसा आखिरी बार 1985 में हुआ था, जब रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सत्ता में वापस आई थी।

कर्नाटक का जातिगत समीकरण

कांग्रेस का वोट आधार पूरे राज्य में समान रूप से फैला हुआ है, भाजपा का उत्तर और मध्य क्षेत्रों में वीरशैव-लिंगायत समुदाय के बीच पैठ है जो इसका प्रमुख वोट बैंक है। पुराने मैसूरु (दक्षिणी कर्नाटक) क्षेत्र के वोक्कालिगा गढ़ में जद (एस) का दबदबा है। बीजेपी के लिए ये चुनौती बना हुआ है। कर्नाटक की आबादी में लिंगायत करीब 17 फीसदी, वोक्कालिगा 15 फीसदी, ओबीसी 35 फीसदी, एससी/एसटी 18 फीसदी, मुस्लिम करीब 12.92 फीसदी और ब्राह्मण करीब तीन फीसदी हैं।

बीजेपी का लक्ष्य- 150 सीटें

बीजेपी ने इस बार कम से कम 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। वह 2018 जैसी स्थिति से बचना चाहती है, जब सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई थी, और बाद में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस और जद (एस) के विधायकों के दलबदल पर निर्भर रहना पड़ा था। बीजेपी ओल्ड मैसूर क्षेत्र में पैठ बनाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है, जहां पार्टी परंपरागत रूप से कमजोर रही है। इस क्षेत्र में 89 सीटें हैं (बेंगलुरू में 28 सहित) और नेताओं के अनुसार, इस क्षेत्र से सीटें नहीं जीत पाने के कारण पार्टी बहुमत से दूर रह गई थी। पार्टी को 2008 चुनाव में 110 और 2018 में 104 सीटें मिली थीं।
एंटी इनकम्बेंसी की संभावना के बीच बीजेपी हिंदुत्व कार्ड और पीएम मोदी के विकास आधारित एजेंडे, डबल इंजन सरकार के कार्यों और केंद्र की लोकलुभावन योजनाओं को पेश करके अपनी जीत की रणनीति बना रही है। इसके अलावा बीजेपी ने अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति, वोक्कालिगा और लिंगायत के लिए आरक्षण बढ़ाने का दांव भी चला है। चुनाव में लिंगायतों की बड़ी भूमिका रहेगी इसलिए बीजेपी पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा को ही आगे करके चुनाव मैदान में उतर रही है जो राजनीति छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं। येदियुरप्पा अभी भी लिंगायत समुदाय के बीच सबसे बड़ा नाम हैं। कांग्रेस लगातार बीजेपी को इस मुद्दे पर घेर रही है कि उसने 80 वर्षीय इस नेता को दरकिनार कर दिया है और इसी को मुद्दा बनाकर लिंगायतों की बीच पैठ बनाने की कोशिश में है।
राज्य में लिंगायत राजनीतिक रूप से प्रभावी समुदाय है और कहा जाता है कि लगभग 100 सीटों पर इनका दबदबा है। अभी विधानसभा में सत्तारूढ़ बीजेपी के 37 सहित सभी दलों के 54 लिंगायत विधायक हैं। 1952 के बाद से राज्य के 23 मुख्यमंत्रियों में से 10 लिंगायत रहे हैं।

गुटबाजी के बीच कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल

कांग्रेस स्थानीय नेताओं के दम पर कर्नाटक में चुनाव लड़ रही है। पार्टी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर बीजेपी को घेर रही है। ये चुनाव सबसे पुरानी पार्टी के लिए एक प्रतिष्ठा की लड़ाई भी बन गया है, क्योंकि पार्टी अध्यक्ष एम मल्लिकार्जुन खड़गे इसी राज्य के कलाबुरगी जिले से हैं। कांग्रेस यहां गुटबाजी का शिकार है जो उसे नुकसान पहुंचा सकता है। इसके दो सीएम उम्मीदवारों सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के खेमे के बीच टकराव बना रहता है।

क्या जेडीएस साबित होगी किंगमेकर

क्या 2023 का कर्नाटक विधानसभा चुनाव पूर्व पीएम एच डी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाले जनता दल (सेक्युलर) के लिए राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई होगा या पार्टी एक बार फिर किंगमेकर के रूप में उभरेगी, जैसा कि 2018 में हुआ था। जद (एस) को लेकर राजनीतिक गलियारों में यही बहस चल रही है। आंतरिक दरार और पारिवारिक पार्टी का टैग के आरोपों के बीच यह देखना बाकी है कि देवेगौड़ा के बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी पार्टी को कितनी सफलता दिला पाते हैं। 1999 में अपने गठन के बाद से जद (एस) ने कभी भी अपने दम पर सरकार नहीं बनाई, लेकिन दोनों राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन में दो बार सत्ता में रही। 2006 में बीजेपी के साथ 20 महीने और मई 2018 विधानसभा के बाद 14 महीने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाकर कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने।
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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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