कर्नाटक सरकारी ठेकों में मुस्लिम आरक्षण वाला बिल अटका, राज्यपाल से जताई असहमति, राष्ट्रपति मुर्मू के पास भेजा!
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कर्नाटक के राज्यपाल ने सरकारी ठेकों में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाला विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (फाइल फोटो)
कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार का विवादित सरकारी ठेकों में मुस्लिम आरक्षण वाला बिल अटक गया है। विधानसभा से पास होने के बाद जब यह बिल राज्यपाल थावर चंद गहलोत के पास पहुंचा, तो उन्होंने इस पर असहमति जताई और बिल को अनुमोदित करने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेज दिया।
राज्यपाल ने राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए किया सुरक्षित
सूत्रों ने बताया कि गहलोत ने विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए सुरक्षित कर दिया और इसे कर्नाटक के विधि एवं संसदीय कार्य विभाग के पास भेज दिया। उन्होंने बताया कि अब राज्य सरकार इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए उनके पास भेजेगी। गहलोत ने राज्य सरकार को भेजे एक पत्र में कहा- “भारत का संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है, क्योंकि यह समानता (अनुच्छेद 14), भेदभाव विरोधी (अनुच्छेद 15) और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर (अनुच्छेद 16) के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। उच्चतम न्यायालय ने अपने विभिन्न फैसलों में लगातार कहा है कि कि सकारात्मक कार्रवाई हमेशा सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन पर आधारित होनी चाहिए, न कि धार्मिक पहचान पर।”
क्यों भेजा राष्ट्रपति के पास
राज्यपाल ने पत्र में इस बात को रेखांकित किया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है। उन्होंने लिखा, “अनुच्छेद 200 और 201 से स्पष्ट है कि राज्य विधानसभा की ओर से पारित विधेयक तभी कानून बन सकता है, जब राज्यपाल उसे मंजूरी दे दें या फिर अगर राज्यपाल द्वारा उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा गया हो और राष्ट्रपति उस पर अपनी स्वीकृति दे दें।”
क्या बोले राज्यपाल
गहलोत ने कहा कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि जो यह व्यवस्था करता है कि राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत कोई विधेयक, अधिनियम के रूप में तब प्रभावी नहीं होगा, जब राज्यपाल के लिए इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखने की कोई अनिवार्य आवश्यकता नहीं होगी। उन्होंने कहा कि यह राज्यपाल पर निर्भर है कि वे अपने विवेक का प्रयोग करें और निर्णय लें कि उन्हें विधेयक को मंजूरी देनी चाहिए या भविष्य में किसी जटिलता से बचने के लिए इसे राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखना चाहिए। गहलोत ने कहा, “उपरोक्त बातों के मद्देनजर मैं भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, कर्नाटक सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता (संशोधन) विधेयक, 2025 को राष्ट्रपति के विचार और स्वीकृति के लिए सुरक्षित करता हूं।”
भाजपा कर रही है बिल का विरोध
कर्नाटक विधानमंडल के दोनों सदनों ने मार्च में विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरोध के बीच इस विधेयक को पारित कर दिया था।
भाजपा का आरोप है कि यह विधेयक अवैध है, क्योंकि भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं है। पार्टी का यह भी आरोप है कि इस विधेयक से सत्तारूढ़ कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति की बू आती है। भाजपा कर्नाटक में जारी अपनी ‘जन आक्रोश यात्रा’ के दौरान इस विधेयक के मुद्दे को प्रमुखता से उठा रही है।
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