ओबीसी वोटर्स की गोलबंदी: जानें देश की सियासत में इनकी अहमियत, किसको-कितना होगा फायदा
OBC Voters in India: देश की कुल आबादी में ओबीसी वोटर्स का शेयर 42 से 52 फीसदी के करीब है। ऐसे में यह समुदाय जिस ओर झुकेगा, उस पार्टी की जीत तो निश्चित ही है। ऐसे में आइए जाते हैं ओबीसी वोटर्स के लिए होड़ क्यों मची हुई है? देश की सियासत में ये कितने अहम हैं और आगामी चुनावों में वोटरों का यह समुदाय कितना निर्णायक होने वाला है...
ओबीसी वोटर्स की गोलबंदी
OBC Voters in India: संसद में महिला आरक्षण बिल के पास होने के बाद ओबीसी वोटर्स का मुद्दा भी जोर-शोर से उठा था। इसके बाद पूरा विपक्ष इस वोटर्स के इस समुदाय की गोलबंदी करने में जुट गया है। विपक्ष अपनी रैलियों में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर इस मौके को लुभाने की कोशिश कर रहा है, तो भाजपा भी पूरी तरह से अटैकिंग मोड में आ गई है।
इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को एक बार फिर से ओबीसी वोटर्स का मुद्दा उठाकर भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश की है। मध्य प्रदेश के शाजपापुर जिले में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वह देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों की सही संख्या जानने के लिए जाति आधारित जनगणना कराएगी। उनके इस बयान से एक बात तो यह है कि इस बार को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ओबीसी वोटर्स अहम भूमिका निभाने वाले हैं। ऐसे में आइए जाते हैं ओबीसी वोटर्स के लिए होड़ क्यों मची हुई है? देश की सियासत में ये कितने अहम हैं और आगामी चुनावों में वोटरों का यह समुदाय कितना निर्णायक होने वाला है...
सबसे पहले राहुल गांधी का बयान पढ लीजिए
मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के कालापीपल विधानसभा क्षेत्र में एक जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि सत्ता में आने के तुरंत बाद, हम सबसे पहला काम देश में ओबीसी की सही संख्या जानने के लिए जाति-आधारित जनगणना कराएंगे, क्योंकि कोई भी उनकी सही संख्या नहीं जानता है। उन्होंने कहा, अब वह समय आ गया है कि हमें हिंदुस्तान का एक्स-रे करना है। यह पता लगाना है कि अगर 90 अफसर देश को चला रहे हैं और उसमें OBC की भागीदारी 5% है तो क्या OBC की आबादी 5% है? देश में एक ही मुद्दा है जातिगत जनगणना। OBC कितने हैं और उनकी भागीदारी कितनी होनी चाहिए, यही सबसे बड़ा सवाल है।
अब जानिए ओबीसी का इतिहास
देश की आजादी के साथ ही ओबीसी वोटर्स हमेशा कांग्रेस व अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ रहा, लेकिन 1989 और इसके बाद वीपी सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया। इसके बाद ओबीसी वोटर जनता दल, समाजवादी पार्टी, आरएलडी और जनता दल (सेक्यूलर) जैसी पार्टियों में बंट गया। इसके बाद देश की सियासत एकदम बदल गई और 1989 से 2009 तक इन दलों का वर्चस्व हर गठबंधन वाली सरकार में होने लगा। हालांकि, 2009 के बाद भाजपा ने इन वोटरों को रिझाना शुरू किया और करीब 22 फीसदी ओबीसी वोट को अपने खाते में कर दिया। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बाद 2014 में यह वोट शेयर बढ़कर 44 फीसदी के आसपास हो गया।
ओबीसी की अहमियत भी जान लीजिए
देश की कुल आबादी में ओबीसी वोटर्स का शेयर 42 से 52 फीसदी के करीब है। ऐसे में यह समुदाय जिस ओर झुकेगा, उस पार्टी की जीत तो निश्चित ही है। बीते दो लोकसभा चुनावों की बात करें तो भाजपा इन्हीं वोटर्स के दम पर सत्ता हासिल करने में कामयाब रही थी। एक सर्वे के मुताबिक, 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से वोटर्स का यह बड़ा समुदाय भाजपा के साथ ही रहा। आंकड़ों को देखें तो 2009 में 22 फीसदी, 2014 में 30 फीसदी के आसपास और 2019 में 40 फीसदी ओबीसी वोटरों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था।
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