श्रीलंका जैसे छोटे देश को इंदिरा गांधी ने क्यों दे दिया कच्चातिवु द्वीप, अब PM ने उठाया सवाल, जानिए कहानी
Katchatheevu island : कच्चातिवू द्वीप पाल्क स्ट्रेट में स्थित एक निर्जन द्वीप है। बताया जाता है कि 14वीां सदी में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के बाद यह द्वीप अस्तितत्व में आया। इसके बाद 285 एकड़ क्षेत्र वाले इस द्वीप का प्रशासन भारत और श्रीलंका संयुक्त रूप से करते थे। 17वीं सदी में यह द्वीप मदुरई के राजा रामनद के जमींदारी के अधीन था।
कच्चातिवू द्वीप का पीएम मोदी ने किया उल्लेख।
Katchatheevu island : अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को लोकसभा में कच्चातिवु द्वीप का जिक्र किया। पीएम ने कहा कि इंदिरा गांधी की सरकार ने 1974 में कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका के सुपुर्द किया। हालांकि, तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार उन्हें पत्र लिखकर कच्चातिवु द्वीप वापस लेने का आग्रह करती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच स्थित कच्चातिवु द्वीप को इंदिरा गांधी के कार्यकाल में दिया गया। उन्होंने सवाल किया कि क्या मां भारती का वह अंश वहां नहीं था?
निर्जन द्वीप का अपना एक इतिहास है
कच्चातिवु द्वीप का मसला आजादी से पहले का है और यह आज भी भारत और श्रीलंका के बीच विवाद का मुद्दा बना हुआ है। इस निर्जन द्वीप का अपना एक अलग इतिहास है। इस पर हुए अंतरराष्ट्रीय आपसी करारों पर तमिलनाडु सरकार ने सवाल उठाए हैं। साल 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका के अपने समकक्ष श्रीमावो भंडारनायके का साथ समझौता किया और इस द्वीप को उन्हें दे दिया। जबकि 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में कच्चातिवु द्वीप को अपना बताते हुए इसे श्रीलंका से वापस लेने का प्रस्ताव पारित किया गया।
इस द्वीप के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गईं जयललिता
इस द्वीप पर जनभावनाओं को देखते हुए तत्कालीन सीएम जयललिता ने साल 2008 में केंद्र सराकर के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। तमिलनाडु की सीएम ने शीर्ष अदालत से द्वीप पर हुए करार को खत्म करने की मांग की। जयललिता ने कहा कि वह संधि जिसके जरिए कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दिया गया, असंवैधानिक है।
285 एकड़ में फैला है यह द्वीप
कच्चातिवु द्वीप पाल्क स्ट्रेट में स्थित एक निर्जन द्वीप है। बताया जाता है कि 14वीां सदी में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के बाद यह द्वीप अस्तितत्व में आया। इसके बाद 285 एकड़ क्षेत्र वाले इस द्वीप का प्रशासन भारत और श्रीलंका संयुक्त रूप से करते थे। 17वीं सदी में यह द्वीप मदुरई के राजा रामनद के जमींदारी के अधीन था। अंग्रेजों के राज में यह द्वीप मद्रास प्रेसेडेंसी के अधीन आ गया। भारत के आजाद होने पर सरकारी दस्तावेजों में इसे भारत का हिस्सा बताया गया। हालांकि, उस वक्त भी श्रीलंका इस पर अपना अधिकार बताता रहा।
द्वीप श्रीलंका को देने का फैसला हुआ
भालत और श्रीलंका के मछुआरे लंबे समय से एक-दूसरे के समुद्र क्षेत्र में जाकर मछली पकड़ते आ रहे थे। इस पर तब तक विवाद नहीं हुआ जब तक दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा को लेकर समझौता नहीं हो गया। भारत और श्रीलंका ने 1974-76 में समुद्री सीमा पर समझौता किया दिल्ली में हुई एक बैठक में कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को देने का फैसला हुआ।
अब द्वीप पर मछली नहीं पकड़ सकते हैं भारतीय मछुआरे
इस समझौते के तहत भारतीय मछुआरों को को द्वीप पर आराम करने, मछलनी पकड़ने वाली जाल सुखाने एवं वार्षिक सैंट एंथनी उत्सव में शामिल होने की इजाजत मिली। भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर मछली पकड़ने की इजाजत नहीं मिली। फिर भी मछली पकड़ने के लिए भारतीय मछुआरे श्रीलंका की समुद्री सीमा में दाखिल होते रहे हैं।
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