शास्त्रीय नृत्यांगना डॉ. पद्मा ने 'सेंगोल' को गुमनामी से निकाला, 2 साल पहले PMO को लिखी चिट्ठी
Dr Padma Subrahmanyam and Sengol: सेंगोल पर तमिल लेख को अनुवादित करते हुए नृत्यांगना ने अपने पत्र में इसका जिक्र किया। पद्मा को जरा भी इसका आभास नहीं था कि उनकी यह चिट्ठी एक दिन सेंगोल को चर्चा के केंद्र में ला देगी। दो साल बाद स्वर्ण से बने इस सेंगोल को इलाहाबाद संग्रहालय के नेहरू गैलरी से निकालकर दिल्ली लाया गया है। अब इस सेंगोल को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा।
28 मई को नए संसद में स्थापित किया जाएगा 'सेंगोल'।
Dr Padma Subrahmanyam and Sengol: गत बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ''सेंगोल'' का जिक्र किया। गृह मंत्री ने बताया कि 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करने के बाद लोकसभा के स्पीकर के आसन के समीप ''सेंगोल'' को स्थापित करेंगे। अमित शाह की इस घोषणा के बाद ''सेंगोल'' (राजदंड) चर्चा का केंद्र में आ गया। फिर ''सेंगोल'' है क्या, यह किससे संबंधित है। इसका महत्व क्या है और यह कब बना...ऐसे तमाम सवाल होने शुरू हो गए।
पीएमओ तक ऐसे पहुंची ''सेंगोल'' के बारे में जानकारी
प्रधानमंत्री कार्यालय एवं पीएम तक 'सेंगोल' के बारे में पता कैसे लगा, इसकी भी जानकारी सामने आई है। रिपोर्टों के मुताबिक प्रख्यात शास्त्रीय नृ्त्यांगना पद्मा सुब्रमण्यम ने साल 2021 में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को एक पत्र लिखा था। 'सेंगोल' पर तमिल लेख को अनुवादित करते हुए नृत्यांगना ने अपने पत्र में इसका जिक्र किया। पद्मा को जरा भी इसका आभास नहीं था कि उनकी यह चिट्ठी एक दिन 'सेंगोल' को चर्चा के केंद्र में ला देगी। दो साल बाद स्वर्ण से बने इस 'सेंगोल' को इलाहाबाद संग्रहालय के नेहरू गैलरी से निकालकर दिल्ली लाया गया है। अब इस 'सेंगोल' को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा।
डॉ. पद्मा ने 'सेंगोल' के बारे में तमिल पत्रिका में पढ़ा
इंडिया टुडे के साथ खास बातचीत में डॉ. पद्मा ने विस्तार से बताया कि उन्होंने 'सेंगोल' के बारे में आखिर क्यों पीएमओ को पत्र लिखा। साथ ही उन्होंने तमिल संस्कृति में 'सेंगोल' के महत्व के बारे में भी बताया। डॉक्टर पद्मा ने कहा, 'तुगलक पत्रिका में 'सेंगोल' के बारे में तमिल में एक लेख छपा था। लेख में 'सेंगोल' के बारे में जो बातें कही गईं, उससे मैं बहुत प्रभावित हुई। लेख में यह बताया गया कि कैसे चंद्रशेखरेंद्रा सरस्वती ने साल 1978 में अपने शिष्य डॉ. सुब्रमण्यम को इसके बारे में बताया। इसके बाद डॉ. सुब्रमण्यम ने अपनी पुस्तक में 'सेंगोल' के बारे में विस्तार से लिखा।'
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फिर 'सेंगोल' के बारे में पता लगाना शुरू किया
डॉ. पद्मा ने आगे बताया कि 'तमिल संस्कृति में 'सेंगोल' का बहुत महत्व है। 'सेंगोल' शक्ति और न्याय का प्रतीक है। यह कोई एक वस्तु नहीं जो 1000 साल पहले अस्तित्व में आई। यह प्राचीन है। इसका जिक्र चेर और चोल राजाओं के समय में तमिल महाकाव्यों में भी मिलता है।' डॉ. पद्मा का कहना है कि 'सेंगोल' के बारे में जानकर उनकी दिलचस्पी इसके बारे में बढ़ती गई। लॉर्ड माउंटबेटेन द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपी गई सत्ता हस्तांतरण की प्रतीक 'सेंगोल' अभी कहां है, इसका पता लगाना उन्होंने शुरू कर दिया।
'सेंगोल' के आनंद भवन में होने का पता चला
डॉ. पद्मा ने कहा, 'अभी यह 'सेंगोल' कहां है, इसे जानने की मेरी दिलचस्पी काफी बढ़ गई। तमिल पत्रिका में छपे लेख में बताया गया कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपी गई 'सेंगोल' को आनंद भवन में रखा गया है। यह 'सेंगोल' आनंद भवन कैसे पहुंचा और 'सेंगोल' से नेहरू का संबंध क्या है, यह जानना मेरे लिए काफी रुचिकर था।' ब्रिटेन से सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया जब चल रही थी तो इस 'सेंगोल' को कैसे तैयार किया गया, डॉ. पद्मा ने इसकी भी जानकारी संक्षेप में दी।
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तिरुवदुथुराई अधीनम के पुजारी ने 'सेंगोल' बनाने का दिया निर्देश
उन्होंने बताया कि साल 1947 में जब ब्रिटेन से सत्ता भारत को स्थानांतरित की जा रही थी तो उस समय को यादगार बनाने एवं इस सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में 'सेंगोल' को भारत के पहले प्रधानमंत्री को सौंपा गया। उन्होंने बताया कि सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया के लिए सी राजगोपालाचारी के अनुरोध पर तमिलनाडु (उस समय की मद्रास प्रेसीडेंसी) में तिरुवदुथुराई अधीनम के पुजारी ने 'सेंगोल' को तैयार करने का जिम्मा वुम्मिदी बंगारू चेट्टी के परिवार को सौंपा। 'सेंगोल' के तैयार हो जाने के बाद अधीनम के पुजारी श्री ला श्री कुमारस्वामी थम्बीरन दिल्ली आए और उन्होंने इस लॉर्ड माउंटबेटेन को सौंपा। दिल्ली आने पर 'सेंगोल' पर पवित्र जल छिड़ककर उसका शुद्धीकरण हुआ। इसके बाद नेहरू को सौंपने के लिए इसे उनके आवास पर ले जाया गया।
''सेंगोल' की प्रथा केवल तमिलनाडु में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में थी'
डॉ. पद्मा ने कहा, 'विडंबना है कि इसके बाद 'सेंगोल' को फिर नहीं देखा गया। ऐसे समय में जब हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो मैंने सोचा कि इसके बारे में चर्चा की जाए।' तमिल संस्कृति में 'सेंगोल' के महत्व के बारे में उन्होंने बताया कि 'तमिल लोग 'सेंगोल' के बारे में भली-भांति परिचित हैं। चूंकि, अब राजशाही नहीं है तो ऐसे में समाज में अब इसकी चर्चा कम है। मेरा मानना है कि प्राचीन समय में 'सेंगोल' की प्रथा केवल तमिलनाडु में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में थी लेकिन दक्षिण भारत अपनी विरासत एवं परंपरा को लेकर ज्यादा सजग रहा है।' डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम का कहना है कि उन्हें खुशी है कि 'सेंगोल' को 'भारत के गौरव' के रूप में नए संसद में रखा जाएगा।
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