पीएम मोदी का वो सीक्रेट फॉर्मूला जानिए, जिससे BJP चुनाव पर चुनाव जीत जाती है, कैसे टक्कर दे पाएगा विपक्ष?

Narendra Modi secret elections Winning Formula : पीएम मोदी का वो सीक्रेट फॉर्मूला जानना चाहिए जिससे वो चुनाव पर चुनाव जीत रहे हैं। चुनाव में पीएम मोदी की मेहनत, लगन, विजन, प्लानिंग तो रहती है लेकिन वो बात जिसकी ज्यादा चर्चा नहीं होती, उसके बारे में हम आपको बताते हैं। आप ये जानकर हैरान जाएंगे कि गुजरात में बीजेपी ने विजय रुपाणी और नितिन पटेल जैसे सीनियर नेताओं को टिकट नहीं दिया। ऐसे कई फॉर्मूले हैं जिससे बीजेपी चुनाव दर चुनाव जीतती जाती है।

Narendra Modi secret elections Winning Formula : जब भी विपक्ष चुनाव हारता तो कभी कहता है कि ईवीएम से खेल हो गया। कभी कहते हैं कि दल बल का इस्तेमाल हुआ। कभी कहते हैं कि धांधली और धोखा किया गया। कभी कुछ बहाने बनाते हैं कभी कुछ और बहाने बनाते हैं। लेकिन आज पीएम मोदी (Narendra Mod) का वो सीक्रेट फॉर्मूला जानना चाहिए जिससे वो चुनाव पर चुनाव जीत रहे हैं। चुनाव में पीएम मोदी की मेहनत, लगन, विजन, प्लानिंग तो रहती है लेकिन वो बात जिसकी ज्यादा चर्चा नहीं होती, उसके बारे में बताते हैं। आज राजनीति से दो बड़ी खबरें आईं। गुजरात चुनाव के लिए बीजेपी के कैंडिडेट्स की लिस्ट जारी हुई। तो यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने डिंपल यादव को कैंडिडेट घोषित किया। वैसे तो एक खबर गुजरात की है और दूसरी यूपी की। इसमें कोई कनेक्शन नहीं है। लेकिन सोच का फर्क साफ दिख जाता है। क्योंकि आप ये जानकर हैरान जाएंगे कि गुजरात में बीजेपी ने विजय रुपाणी और नितिन पटेल जैसे सीनियर नेताओं को टिकट नहीं दिया। वो भी तब जब।
विजय रुपाणी- सीएम रह चुके हैं।
नितिन पटेल- डिप्टी सीएम रह चुके हैं।
ये दोनों नेता पिछले 40-45 साल से बीजेपी की राजनीति में है।
लेकिन इन्हें टिकट क्यों नहीं दिया गया इसके बारे में आपको आगे डिटेल में बताएंगे। लेकिन सोच के जिस फर्क की बात कर रहा था, उसके बारे में बताते हैं। क्योंकि मैनपुरी की लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी को कोई और कैंडिडेट नहीं दिखा। अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को टिकट दे दिया गया। मैनपुरी की सीट मुलायम सिंह यादव के निधन की वजह से खाली हुई। यहां पर मुलायम सिंह यादव या फिर उनके परिवार के लोग ही 2004 से लेकर अब तक सांसद रहे हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इसे पुश्तैनी सीट बना लिया जाए और परिवार के अलावा किसी और की तरफ देखा ही ना जाए। इसी तरह से आपको याद होगा कि अभी आजमगढ़ लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था।
आजमगढ़ भी एक तरह से मुलायम परिवार ने पुश्तैनी सीट बना ली थी, पहले यहां से मुलायम सिंह सांसद बने थे फिर अखिलेश सांसद बने और जब अखिलेश यादव के सीट छोड़ने के बाद जब इसी साल उपचुनाव हुआ तो आजमगढ़ में धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया था, जो मुलायम सिंह यादव के भतीजे और अखिलेश यादव के चचेरे भाई हैं। लेकिन धर्मेंद्र यादव ये सीट करीब 8 हजार वोट से हार गए थे। यानी हार मिल जाए लेकिन परिवार ना जाए। यही अब मैनपुरी लोकसभा के उपचुनाव में हो रहा है। अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव का राजनैतिक प्रदर्शन भी देखना चाहिए। उन्होंने भी कुछ खास नहीं किया है।
इसके बारे में आगे बताएंगे लेकिन ये सोचने वाली बात है कि एक राजनीति वो हैं जहां सालों साल काम करने वाले नेताओं का भी टिकट कट जाता है। एक राजनीति वो है जहां परिवार से आगे कोई सोच नहीं पाता है। चुनावी राजनीति में सबसे जरूरी होती है जीत। जीत के लिए रणनीति बनानी पड़ती है, कड़े फैसले लेने पड़ते हैं, त्याग करना पड़ता है, यहां तक की बड़े बड़े नामों को भी साइड करना पड़ता है। तभी जीत पक्की होती है। गुजरात में जीत के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने यही किया है। आज गुजरात के लिए बीजेपी ने पहली लिस्ट जारी की।
उसमें गुजरात के पूर्व सीएम विजय रुपाणी।
गुजरात के पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल का नाम काट दिया।
इन दोनों नेताओं का टिकट क्यों कटा ये आपको आगे बताएंगे।
अब विपक्ष की राजनीति का उदाहरण देता हूं। मुलायम सिंह के निधन के बाद यूपी की मैनपुरी सीट खाली है, उस पर उपुचनाव होना है। समाजवादी पार्टी जिसने हाल ही में यूपी की एक सीट पर हुए उपचुनाव में जबरदस्त शिकस्त पाई है, जिसने आजमगढ़ और रामपुर जैसी सीटें गंवा दी उस पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने मैनपुरी सीट पर किसे चुना। पत्नी डिंपल यादव।
डिंपल यादव ने अब तक 4 चुनाव लड़े। दो चुनाव वो हार गईं। एक चुनाव में वो निर्विरोध जीती। एक चुनाव उन्होंने जीता।
  • साल 2009 में डिंपल यादव ने फिरोजाबाद लोकसभा का उपचुनाव लड़ा था। तब उन्हें कांग्रेस के नेता राज बब्बर ने हरा दिया था। करीब 85 हजार वोट से डिंपल चुनाव हारी थी। (85 हज़ार वोटों से हरा दिया से हराया था)
  • इसके बाद 2012 में कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव ने इस्तीफा दिया और मुख्यमंत्री बने। इसके बाद कन्नौज में उपचुनाव हुआ तो डिंपल यादव को मौका दिया गया और वो यहां से जीत गई क्योंकि किसी ने उम्मीदवार ही नहीं उतारा था। (क्योंकि तब कांग्रेस और बीएसपी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था और बीजेपी का उम्मीदवार नामांकन से चूक गया था)
  • 2014 के लोकसभा चुनाव में डिंपल ने कन्नौज की सीट पर जीत हासिल की। (लेकिन डिंपल यादव का जीत का अंतर काफी कम रहा करीब 19 हजार वोट)।
  • लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव हुआ तो कन्नौज की सीट डिंपल बचा नहीं पाई और कन्नौज में बीजेपी के सुब्रत पाठक ने उन्हें हरा दिया। 21 साल बाद ऐसा हुआ था कि कन्नौज की सीट समाजवादी पार्टी हार गई थी। (21 साल बाद समाजवादी पार्टी का गढ़ उनके हाथ से निकला)
इस परफॉर्मेंस के बाद भी डिंपल यादव को टिकट मिला क्योंकि वो मुलायम परिवार की बहू हैं। क्योंकि पार्टी में परिवारवाद के आगे कोई सोच नहीं दिखती है। परिवारवाद की राजनीति क्या होती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुलायम सिंह यादव का परिवार है। जिसमें सीएम, सांसद, विधायक से लेकर जिला पंचायत, ब्लॉक प्रमुख, ग्राम प्रधान, सब बन चुके हैं। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक कोई पद नहीं छोड़ा।
  • मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव पूर्व सीएम हैं। अखिलेश की पत्नी डिंपल पूर्व सांसद हैं। मुलायम की दूसरी पत्नी से बेटे प्रतीक यादव राजनीति में नहीं हैं, वो फिटनेस सेंटर की चेन चलाते हैं। लेकिन प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव पहले एसपी में थी, आजकल बीजेपी में हैं।
  • मुलायम सिंह के पांच भाइयों में सबसे छोटे भाई शिवपाल यादव विधायक हैं। उनकी पत्नी सरला यादव इटावा में जिला सहकारी बैंक प्रबंध समिति में रह चुकी हैं। शिवपाल के बेटे आदित्य यादव, अपने पिता की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वो उत्तर प्रदेश प्रादेशिक कोऑपरेटिव फेडरेशन के अध्यक्ष भी हैं।
  • मुलायम सिंह के चौथे नंबर के भाई का नाम राजपाल यादव हैं। राजपाल यादव के बेटे अभिषेक उर्फ अंशुल यादव इटावा के लगातार दूसरी बार जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। राजपाल यादव की पत्नी प्रेमलता यादव भी इटावा की दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष बनी थीं।
  • मुलायम सिंह के एक भाई अभयराम यादव सैफई में रहते हैं, वो राजनीति में नहीं हैं। अभयराम के बेटे धर्मेंद्र यादव पूर्व सांसद हैं। धर्मेंद्र यादव के भाई अनुराग यादव भी एसपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव मैनपुरी में जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। एक और बहन शीला यादव भी राजनीति में हैं।
  • मुलायम सिंह के एक और भाई है रतन सिंह यादव जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। रतन सिंह की बहू मृदुला यादव सैफई की ब्लॉक प्रमुख हैं। मृदुला यादव के बेटे तेज प्रताप यादव मैनपुरी से सांसद रह चुके हैं और लालू प्रसाद यादव के दामाद भी हैं।
  • मुलायम सिंह के चचेरे भाई हैं रामगोपाल यादव। वो राज्यसभा सांसद हैं। उनके बेटे अक्षय यादव भी सांसद रह चुके हैं। रामगोपाल के बड़े बेटे असित यादव के बेटे यानी रामगोपाल यादव के पोते कार्तिकेय यादव भी राजनीति में हैं। रामगोपाल की बहन गीता देवी के बेटे अरविंद यादव भी राजनीति में हैं।

पिछले कई साल से समाजवादी पार्टी को चलाने वाले अखिलेश यादव भी परिवार का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं:-

  • लगातार दो विधासनभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को हार मिली है
  • 2019 में मायावती से गठबंधन के बाद भी पार्टी की लोकसभा में सीटें नहीं बढ़ पाई
  • 2019 में मुलायम परिवार के तीन सदस्य चुनाव हार गए थे
  • कन्नौज से डिंपल, फिरोजाबाद से अक्षय यादव, बदायूं सीट से धर्मेंद्र यादव चुनाव हार गए
  • 2019 के चुनाव में मैनपुरी में मुलायम सिंह की जीत का अंतर एक-चौथाई रह गया था।
  • इसी साल रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। ये दोनों ही सीटें पहले समाजवादी पार्टी के पास थी।
इस साल जब यूपी के विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो पीएम मोदी ने भी कहा था कि विपक्ष परिवारवाद से आगे सोच नहीं पाता और इसी वजह से जनता परिवारवादी पार्टियों को नकार रही है। परिवारवादी पार्टियों पर पीएम ने तब कहा था कि परिवारवाद ही लोकतंत्र का दुश्मन है।
अब सोचिए लगातार हार के बाद भी अखिलेश यादव ने परिवार पर ही दांव लगाया। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी है जो गुजरात चुनाव की कमान खुद संभाल रहे हैं। गुजरात में 27 साल से बीजेपी सत्ता में है। गुजरात में बीजेपी की जीत आसान लग रही है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
इसका उदाहरण आप देखिए कि गुजरात चुनाव के टिकट बांटने में बड़े नेताओं के नामों पर कैंची चलाने में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई हिचक नहीं दिखाई। सिटिंग विधायकों, मंत्रियों तक को टिकट नहीं दिया। गुजरात बीजेपी ने आज 160 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की।इसमें
38 विधायकों के टिकट काट दिए गए।
5 मौजूदा मंत्रियों को टिकट नहीं मिला।
7 पूर्व मंत्रियों को टिकट नहीं मिला, जो रुपाणी सरकार में मंत्री थे।
यानी एक राजनीति ये है जिसमें सालों साल काम करने वाले नेताओं का भी टिकट कट जाता है। एक राजनीति वो है जहां परिवार से आगे कोई सोच नहीं पाता है।
गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में 160 सीटों पर कैंडिडेट्स के नाम का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र अहमदाबाद की घाटलोढ़िया सीट से चुनाव लड़ेंगे। बीजेपी ने क्रिकेटर रविंद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा को जामनगर नॉर्थ से टिकट दिया गया है। मोरबी से वर्तमान विधायक और सरकार में मंत्री बृजेश मेरबा की जगह कांतिलाल को टिकट दिया है। इस से पहले गुजरात बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ने और युवाओं को मौका देने की बात कही थी। पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल, पूर्ल मंत्री भूपेंद्र सिंह चुडासमा समेत कई नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है।
बीजेपी में गुजरात सरकार के जिन 5 मौजूदा मंत्रियों के टिकट काटे हैं।
  • राज्य के श्रम और रोजगार मंत्री राज्य मंत्री बृजेश मेरजा का नाम है जो मोरबी से विधायक हैं।
  • संसदीय मामलों के मंत्री राजेंद्र त्रिवेदी का टिकट कटा है
  • वो रावपुरा से 2012 से विधायक हैं
  • सामाजिक न्याय मंत्री प्रदीप परमार का टिकट कटा जो असरवा सीट से विधायक हैं
  • परिवहन राज्य मंत्री अरविंद रयानी का टिकट कटा जो राजकोट पूर्व से विधायक हैं
  • सामाजिक न्याय राज्य मंत्री आर सी मकवाना को टिकट कटा जो महुवा सीट से विधायक हैं
  • इसके अलावा गुजरात विधानसभा की अध्यक्ष नीमाबेन आचार्य का भी टिकट कटा जो 2012 से भुज सीट से विधायक हैं
सिर्फ रणनीति ही नहीं अनुशासन के मामले में भी विपक्ष के सामने नरेंद्र मोदी के एक मिसाल हैं। अक्सर किसी भी पार्टी में चुनाव के वक्त बगावत होना आम बात है। जिस भी नेता का टिकट कटता है वो पार्टी के खिलाफ प्रदर्शन करता है, बगावत करता है, दूसरी पार्टी में चला जाता है। लेकिन बीजेपी में सीएम, डिप्टी सीएम जैसे पदों पर रहे बड़े बड़े नेताओं के टिकट काट दिए गए। कोई हंगामा, प्रदर्शन नहीं हुआ। बल्कि विजय रूपाणी, नितिन पटेल जैसे नेताओं ने खुद ये कहा कि इस बार वो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं । इससे बाकी नेताओं को भी ये संदेश गया कि पार्टी का फैसला सर्वोपरि है। गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सी आर पाटिल ने बताया कि इन नेताओं ने खुद ही चुनाव ना लड़ने का फैसला लिया और अब वो संगठन के लिए काम करना चाहते हैं।
ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव के लिए बोल्ड फैसला तब किया था जब चुनाव से 14 महीने पहले गुजरात में सीएम और पूरी कैबिनेट ही बदल दी थी। उस वक्त विजय रुपाणी की जगह पर भूपेंद्र पटेल को सीएम बना दिया जो पहली बार विधायक बने थे। आपको एक और उदाहरण बताते हैं। जिससे आपको सोच का फर्क दिख जाएगा। आपको याद होगा कि गुजरात के मोरबी में कुछ दिन पहले बड़ा हादसा हुआ था। वहां पर पुल गिर गया था। और बहुत सारे लोग मारे गए थे। पीएम भी मोरबी गए थे। मोरबी तब से बहुत चर्चा में है। इस सीट पर बीजेपी ने क्या किया। वो आपको बताता हूं।
बीजेपी ने यहां से अपने सिटिंग विधायक और सरकार में मंत्री बृजेश मेरजा को टिकट नहीं दिया। 2017 में बृजेश मेरजा कांग्रेस की टिकट पर मोरबी से जीते थे। साल 2020 में कांग्रेस छोड़ वो बीजेपी में शामिल हो गए थे और मोरबी उपचुनाव जीते थे। पार्टी ने बृजेश मेरजा की जगह पूर्व विधायक कांतिलाल अमृतिया को टिकट दिया गया है। मोरबी हादसे के वक्त लोगों की जान बचाने के लिए कांतिलाल अमृतिया नदी में कूद गए थे । लोगों की प्रति सेवा और समर्पण का भाव दिखाने के लिए कांतिलाल को इनाम मिला। कांतिलाल पहले भी मोरबी सीट से बीजेपी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
अभी कुछ दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ था। जिसमें कहा जा रहा था कि हिमाचल के किसी नेता से पीएम ने फोन पर बात की थी और ऐसा कहा गया कि उन्होंने उस नेता से चुनाव ना लड़ने को कहा क्योंकि वो नेता बागी होकर चुनाव लड़ रहा था। इस वीडियो का सच क्या है ये तो नहीं पता और ये भी साफ नहीं है कि पीएम ने फोन किया था या नहीं। लेकिन कुछ लोग इसे हिमाचल में बीजेपी की बेचैनी से जोड़ रहे थे और ये कह रहे थे कि पीएम को खुद कैंडिडेट्स को फोन करना पड़ रहा है।
लेकिन इसे दूसरे नजरिए से अगर देखें और ये मान भी लें कि पीएम ने उस बागी कैंडिडेट को फोन किया था तो इससे ये पता चलता है कि पीएम मोदी के लिए एक एक सीट कितनी कीमती है और पीएम मोदी का ध्यान एक एक सीट पर रहता है। अगर पार्टी के लिए जरूरी होता तो खुद पीएम फोन घुमाने से हिचकते नहीं। ऐसा कितने नेता करते होंगे। इससे तो विपक्ष को सीखना चाहिए ना कि मजाक उड़ाना चाहिए।

कांग्रेस की हालत देखिए

पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थी
पांच साल में कांग्रेस के 20 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी।
पिछले 2 दिन में कांग्रेस के 3 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं।
जिन 20 विधायकों ने पार्टी छोड़ी उसमें से ज्यादातर ने फिर बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए।
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