1998 का मुल्ताई कांड और पुलिसिया जुल्म, जानें क्या था मामला
12 जनवरी 1998 को मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुल्ताई कस्बे में पुलिसिया कार्रवाई अपने पराकाष्ठा का पार कर गई थी। सूबे में उस समय कांग्रेस का शासन था और दिग्विजय सिंह सरकार की अगुवाई कर रहे थे। 1998 में हुए कांड पर उन्होंने खेद जताया है ऐसे में यह जानना जरूरी है कि 12 जनवरी 1998 को क्या हुआ था।
1998 में मध्य प्रदेश पुलिस ने किसानों को मारी थी गोली
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियांवाला बाग कांड को अंग्रेजों ने अंजाम दिया था। अंग्रेजी सरकार किसी भी तरह से स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलना चाहती थी। ब्रिटिश सरकार ने दमन का पराकाष्ठा पार की थी। लेकिन इस घटना के करीब साढ़े आठ दशक बाद यानी 1998 में एक और कांड हुआ फर्क सिर्फ इतना भर कि जगह बदल गई थी सरकार का चेहरा बदला हुआ था। देश में अंग्रेजी हुकुमत नहीं बल्कि उसके खिलाफ लड़ाई लड़ देश को आजाद कराने का दावा करने वाली पार्टी कांग्रेस का मध्य प्रदेश में शासन था। दिग्विजय सिंह की सरकार की अगुवाई कर रहे थे और बैतुल के मुल्ताई कस्बे में पुलिस ने अन्नदाताओं पर गोलियां बरसाई थीं। मामला सिर्फ इतना था कि किसान अपनी फसल की बर्बादी को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। कांग्रेस के नेता वैसे तो खुद को अन्नदाताओं की शुभचिंतक बताया करते थे। लेकिन 12 जनवरी 1998 को जो कुछ हुआ उसमें कांग्रेस का अंग्रेजी चेहरा सामने आया था। 25 साल पहले उस बर्बर कांड पर मध्य प्रदेश के तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह से संवेदनहीनता का उच्चतम प्रदर्शन किया था। हालांकि अब मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने माफी मांगी है। बैतूल के मुल्ताई कांड को मध्य प्रदेश का जलियांवाला बाग कांड कहा जाता है।
फसल की बर्बादी से परेशान थे किसान
सोयाबीन और गेहूं की खेती करने वाले किसान करीब चार साल से फसल की बर्बादी को लेकर परेशान थे। साहूकारों का कर्ज, सरकार की अनदेखी के बाद जब उन्हें कोई रास्ता नहीं मिला तो विरोध का दौर शुरू हुआ। 25 दिसंबर 1997 को लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए किसान संघर्ष समिति गठित की और लड़ाई को निर्णायत मोड़ तक ले जाने की कोशिश। उसी क्रम में रैली और बंद के कार्यक्रम शुरू हुए। मुल्ताई कस्बे में हजारों की संख्या में किसान जुटे। किसानों के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई जिस अंदाज में शुरू हुई थी उससे ऐसा लगा कि पुलिस किसी तरह से आंदोलन को कुचलना चाहती थी। अंधाधूंध गोलीबारी में कुल 24 किसान मारे गए। यहां तक कि अस्पतालों में किसानों को निशाना बनाया गया।
किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले सुनीलम को बुरी तरह से मारापीटा गया था और वो सुनसान झाड़ी में मिले थे। बताया जाता है कि पुलिस उनका एनकाउंटर करना चाहती थी। लेकिन आपसी झगड़े के बाद पुलिस वाले एनकाउंटर नहीं कर पाए। जब यह मामला अदालत के सामने पहुंचा तो बड़ी संख्या में किसानों को हथकड़ियों में लाया गया। लेकिन जज के निर्देश के बाद पहले हथकड़ी खोली गई और मुकदमा शुरू हुआ।
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