'सुपर कम्युनिस्ट' थे शास्त्री, कभी नंगे पांव ही कई मील पैदल जाते थे स्कूल, दहेज में सिर्फ लिया था ये सामान; जानें- लाल बहादुर से जुड़ी रोचक बातें
Lal Bahadur Shastri Death Anniversary: महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने बापू के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे।
1927 में मिर्जापुर की ललिता देवी से उनकी शादी हुई। दहेज के नाम पर उन्हें एक चरखा और हाथ से बुने हुए कुछ मीटर कपड़े मिले थे। वे इससे अधिक कुछ और नहीं चाहते थे। (फाइलः www.pmindia.gov.in)
Lal Bahadur Shastri Death Anniversary: हिंदुस्तान के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री बेहद सरल, सहज और स्वाभिमानी किस्म के इंसान थे। उनकी सादगी का अंदाजा आज भी इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वह जब ताशकंद सम्मेलन में हिस्सा लेने रूस गए थे, तब अपना खादी का ऊनी कोट पहनकर पहुंचे थे। रूसी पीएम ने तब एलेक्सी कोसिगिन को तब यह बात थोड़ी अजीब लगी थी। वह भली-भांति भांप गए थे कि उस कोट के बलबूते वह वहां की सर्दी से नहीं सुरक्षित रह पाएंगे। ऐसे में अगले दिन उन्होंने एक ओवरकोट भेंट किया। वह मान कर चल रहे थे कि शास्त्री उसे पहनेंगे पर वैसा नहीं हुआ।
शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री के मुताबिक, "लाल बहादुर अगले दिन भी अपना वही पुराना कोट पहने हुए थे। जब इस बारे में झिझकते हुए रूसी पीएम ने पूछा तो उनका जवाब आया कि वह वाकई में बेहद गर्म है और मैंने उसे अपने दल के एक सदस्य को दे दिया है। चूंकि, वह अपने साथ कोट नहीं लाया, लिहाजा मैंने उसे दे दिया।" रोचक बात है कि रूसी पीएम ने यह पूरा वाकया भारतीय पीएम और पाक राष्ट्रपति के सम्मान में आयोजित किए गए कल्चरल प्रोग्राम में कहा था, "हम लोग तो कम्युनिस्ट हैं, पर प्रधानमंत्री शास्त्री सुपर कम्युनिस्ट हैं।"
शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को यूपी के मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता स्कूल शिक्षक थे। वह जब डेढ़ साल के थे, तभी पिता चल बसे थे। उनकी मां अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर जाकर बस गई थीं। उस छोटे-से शहर में शास्त्री की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही, पर गरीबी की मार के बाद उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता। वाराणसी में चाचा के साथ उन्हें रहने के लिए भेज दिया गया था, ताकि वह उच्च विद्यालय की शिक्षा हासिल कर सकें।
घर पर सब उन्हें 'नन्हे' के नाम से पुकारते थे। वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थे। यहां तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था। बड़े होने के साथ-ही लाल बहादुर शास्त्री विदेशी दासता से आजादी के लिए देश के संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे। वे भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए। लाल बहादुर शास्त्री जब केवल 11 साल के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था।
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