Lansdowne का नाम कर दें Jaswantgarh- केंद्र के पास गया प्रस्ताव, जानें- क्या है इस नाम के पीछे की कहानी

Lansdowne Name Row: उधर, सूबे के सीएम पुष्कर सिंह धामी पहले ही साफ कर चुके हैं कि सूबे में गुलामी की याद दिलाने वाले अंग्रेजों के वक्त के नामों को बदला जाएगा। उन्होंने कहा था, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में गुलामी की तस्दीक करने वाले ब्रिटिशकालीन नामों को बदलने की प्रक्रिया जारी है और प्रदेश में भी यह किया जाएगा।’’

Lansdowne

तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (फाइल)

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो

Lansdowne Name Row: उत्तराखंड में लैंसडाउन सैन्य छावनी बोर्ड ने लैंसडाउन नगर (पौड़ी जिले में) का नाम बदलने का सुझाव दिया है। बोर्ड ने कहा है कि साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के नायक शहीद जसवंत सिंह के नाम पर ‘जसवंतगढ़’ कर दिया जाना चाहिए। शनिवार (एक जुलाई, 2023) को समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को इस बाबत आधिकारिक सूत्रों ने जानकारी दी कि बोर्ड अध्यक्ष ब्रिगेडियर विजय मोहन चौधरी की अध्यक्षता में इसी हफ्ते मीटिंग हुई थी, जिसमें लैंसडाउन का नाम बदलकर सिंह के नाम पर जसवंतगढ़ रखने का प्रस्ताव पारित हुआ था। प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेज दिया गया है।

वैसे, इससे पहले मंत्रालय ने प्रदेश के सैन्य क्षेत्रों के अंग्रेजों के जमाने में रखे गए नामों को बदलने के लिए छावनी बोर्ड से सुझाव देने को कहा था। हालांकि, इस प्रस्ताव में छावनी बोर्ड ने यह भी जिक्र किया है कि आम जनता लैंसडाउन का नाम बदलने के विरोध में है, पर अगर नाम बदलना है तो इसे जसवंतगढ़ करना ही तर्कसंगत होगा। वहीं, शहर का नाम बदलने का विरोध कर रहे लोगों का मानना है कि इससे शहर की पहचान खो जाएगी और पर्यटन को नुकसान होगा।

बीजेपी के स्थानीय विधायक दिलीप सिंह रावत ने एजेंसी को बताया, ‘‘लैंसडाउन वीरों की धरती और लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। अगर नाम बदला गया तो इसकी पहचान खो जाएगी। पर्यटन यहां की आय का मुख्य साधन है और इसपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जन हित में इसके पुराने नाम को बनाए रखा जाना चाहिए। मैं जल्दी ही इस संबंध में एक प्रस्ताव सरकार को भेजूंगा।’’

बोर्ड के पूर्व सदस्य राजेश ध्यानी ने कहा कि बोर्ड को रक्षा मंत्रालय को ऐसा प्रस्ताव भेजने से पहले स्थानीय लोगों को विश्वास में लेना चाहिए था। वैसे, इससे पहले भी लैंसडाउन का नाम बदलने का प्रयास किया गया है लेकिन स्थानीय लोगों क विरोध के कारण ऐसा नहीं हुआ। पूर्व में लैंसडाउन का नाम वापस ‘कालौं डांडा’ रखने और लॉर्ड सुबेदार बलभद्र सिंह रखने के संबंध में भी दो प्रस्ताव थे लेकिन सरकार को स्थानीय लोगों के विरोध के बाद अपने कदम वापस लेने पड़े।

उधर, सूबे के सीएम पुष्कर सिंह धामी पहले ही साफ कर चुके हैं कि सूबे में गुलामी की याद दिलाने वाले अंग्रेजों के वक्त के नामों को बदला जाएगा। उन्होंने कहा था, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में गुलामी की तस्दीक करने वाले ब्रिटिशकालीन नामों को बदलने की प्रक्रिया जारी है और प्रदेश में भी यह किया जाएगा।’’

दरअसल, अंग्रेजों के समय में 132 साल पहले तत्कालीन वायसराय के नाम पर इस नगर का नाम लैंसडाउन रखा गया था और उससे पहले इस नगर का नाम ‘कालौं का डांडा’ (काले बादलों से घिरा पहाड़) था, जबकि पौड़ी जिले के बीरोंखाल क्षेत्र के बड़िया गांव के रहने वाले जसवंत सिंह ने गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में तैनाती के दौरान 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में हिस्सा लिया था। उन्होंने अरूणाचल प्रदेश के तवांग में 17 नवंबर को चीनी सेना को 72 घंटे तक आगे बढ़ने से रोके रखा था। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

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