'कुछ नहीं बचता है' साहब, हम आपकी सरकार में खुश थे; राहुल गांधी से मिलकर भावुक हुआ बार्बर

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और रायबरेली से सांसद राहुल गांधी ने एक आम सैलून वाले के यहां दाढ़ी कटवाई और उससे महंगाई और वर्तमान हालात पर बात की। राहुल ने बार्बर से संवाद का एक वीडियो सोशल मीडिया एक्स पर शेयर किया है।

बार्बर से मिले राहुल गांधी

दिल्ली: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और रायबरेली से सांसद राहुल गांधी आम आदमी के बीच जा रहे हैं। शु क्रवार को भी वह रास्ते से गुजरते हुए लोगों से मिलते हुए निकले। सोशल मीडिया 'एक्स' पर एक पोस्ट किया है, जिसमें वो एक सैलून में पहुंचे हैं और बार्बर से महंगाई और वर्तमान हालातों पर बात कर रहे हैं। राहुल गांधी ने इस दौरान बार्बर से दाढ़ी से सेट करवाई और उनसे काफी देर तक बातचीत की। अजीत नाम के बार्बर से उन्होंने उसकी कमाई, खर्च और बचत के बारे में पूछा, जिसका जवाब देते हुए बार्बर भावुक हो गया। उसने बताया कि जितनी कमाई होती है, लेकिन महंगाई इतनी है कि कुछ नहीं बचता। आपकी सरकार के दौरान हम सभी खुश थे और हमारा काम-धंधा और कमाई बेहतर तरीके से चल रहा था, लेकिन वर्तमान सरकार में कमाई न के बराबर है।

राहुल ने 'एक्स' पर लिखी ये बात

कांग्रेस नेता राहुल गांधी शुक्रवार सुबह पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर स्थित प्रजापति कॉलोनी पहुंचे। यहां उन्होंने सैलून मालिक अजीत ठाकुर से लेकर कुम्हार परिवार की रामरति तथा अन्य लोगों से मुलाकात की। उन्होंने अजीत ठाकुर के सैलून पर दाढ़ी बनवाई और रामरति के घर जाकर उनसे बर्तन बनाना सीखा। कांग्रेस सांसद ने अपने हाथों से दीये भी बनाए। बार्बर से मिलने के बाद राहुल गांधी ने 'एक्स' पर लिखा है 'अजीत भाई के ये चार शब्द और उनके आसूं आज भारत के हर मेहनतकश गरीब और मध्यमवर्गीय की कहानी बयां कर रहे हैं। नाई से लेकर मोची, कुम्हार से लेकर बढ़ई - घटती आमदनी और बढ़ती महंगाई ने हाथ से काम करने वालों से अपनी दुकान, अपना मकान और स्वाभिमान तक के अरमान छीन लिए हैं। आज की ज़रूरत है ऐसे आधुनिक उपाय और नई योजनाएं, जो आमदनी में बढ़त और घरों में बचत वापस लाएं। और, एक ऐसा समाज जहां हुनर को हक़ मिले और मेहनत का हर कदम आपको तरक्की की सीढ़ियां चढ़ाए।

बार्बर अजीत ने बताया कि 15 हजार रुपये कमाई कर लेते हैं, लेकिन उसमें से ढाई हजार रुपये घर के किराये पर निकल जाता है। हालांकि, उसे ढाई हजार रुपये पेंशन भी मिलती है वो भी दुकान के किराये में चली जाती है। वो शहर एक उम्मीद लेकर आया था, लेकिन यहां सिर्फ जीवन यापन कर रहे हैं। अपने और परिवार के लिए कुछ खास नहीं कर पाए।

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