नेता, मंत्री उतना ही बोलें, जो भगवान को भी ठीक लगे, SC की टिप्पणी से याद आई 2016 की बुलंदशहर की वो घटना
सार्वजनिक पदों पर बैठे हुए लोगों के बोलने पर क्या बाध्यता है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 19(2 ) के तहत जो आजादी है उतना ही बोल सकते हैं। अदालत ने कहा कि पब्लिक लाइफ में रहने वालों को इस तरह से बोलना चाहिए जो भगवान को भी ठीक लगे।
बोलने के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सार्वजनिक पदों पर आसीन शख्सियतों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुना दिया है। जस्टिस एस एस नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 19(2 ) के तहत जो निर्धारित प्रतिबंध हैं उन्हें छोड़ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते हैं। पीठ ने कहा कि मंत्री के बयान को सीधे तौर पर सरकार के बयान से नहीं जोड़ा जा सकता है। मंत्री जो कुछ कहता है वो उसके लिए खुद उत्तरदायी है।संविधान पीठ का यह फैसला उन लोगों के लिए जो सार्वजनिक पदों पर बैठे हुए हैं और उनके भाषण या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जाने की बात होती है। हालांकि पीठ में एक जस्टिस नागरत्ना की राय अलग थी।
जस्टिस नागरत्ना की राय थी अलग
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अगर कोई मंत्री अपमानजनक बयान देता है तो पूरा मंत्रिमंडल जिम्मेदार है हालांकि छिटपुट टिप्पणियों से सरकार को नहीं जोड़ा जा सकता है। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सार्वजनिक पद पर बैठे हुए शख्स को यह देखना चाहिए कि वो क्या बोल रहा है। टिप्पणियों के दौरान उन्होंने कहा कि ऐसा बोलिए जो भगवान को ठीक लगे।
2016 बुलंदशहर गैंगरेप केस और आजम खान का बयान
देश के सबसे बड़े सूबों में से एक यूपी में 2017 में विधानसभा का चुनाव होना था। लेकिन उससे ठीक करीब 9 महीने पहले जुलाई 2016 के महीने में बुलंदशहर में हाईवे पर रेप केस का मामला सामने आया था जिसकी गूंज विधानसभा से लेकर संसद तक सुनाई पड़ी थी। अखिलेश यादव सरकार में आजम खान बड़े नेता हुआ करते थे। अपने स्वभाव के मुताबिक उन्होंने बयान दिया था और कहा था कि सत्ता के भूखे लोग कोई न कोई मुद्दा खोज लेते हैं। उनके इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट में पीड़ित परिवार पहुंचा। आजम खान को बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी। लेकिन अदालत ने इस विषय को संविधान पीठ की सुपुर्द कर दिया था।
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