MP: हार से सबक या BJP से सीख? पटवारी का कद बढ़ा कांग्रेस ने दिए बड़े संकेत, 2024 के पहले कर सकती है और फेरबदल
Madhya Pradesh Politics: नए रोल पर पटवारी ने बताया, ‘‘मुझ जैसे छोटे-से कार्यकर्ता को बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने पर मैं कांग्रेस आलाकमान को धन्यवाद देता हूं। हालिया चुनावों में हमारी हार हुई और आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की चुनौती का मुझे अहसास है। हम सामूहिक नेतृत्व के आधार पर इस चुनौती का सामना करेंगे और कांग्रेस की विचारधारा को घर-घर ले जाकर सकारात्मक नतीजे देंगे।’’
म.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ मध्य प्रदेश कांग्रेस समिति के नवनियुक्त अध्यक्ष जीतू पटवारी।
Madhya Pradesh Politics: मध्य प्रदेश में साल 2023 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने बड़े बदलाव किए हैं। पार्टी ने इसी के तहत सूबे में पूर्व विधायक जीतू पटवारी का कद बढ़ाया है। शनिवार (16 दिसंबर, 2023) को उन्हें मध्य प्रदेश इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। कांग्रेस ने अपने इस निर्णय से साफ संकेत दिए कि वह टॉप पदों पर युवा नेताओं को मौका दे रही है।
दरअसल, हाल के विस चुनाव में पार्टी के पास युवा चेहरों की कमी थी। म.प्र के विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व बड़े पैमाने पर अनुभवी नेताओं ने किया था। प्रचार से लेकर चुनाव और परिणाम तक...मुख्यतः सिर्फ दो बड़े चेहरे ही नजर आए थे, जो कि कमलनाथ (77) और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह (76) थे।
ऐसे में समझा जा सकता है कि पार्टी अपने संगठन के पुनर्गठन का इंतजार कर रही थी क्योंकि बीजेपी ने भी बड़े फेरबदल किए हैं। कांग्रेस की ओर से ये फेरबदल तब किए गए, जब कुछ रोज पहले बीजेपी ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय से आने वाले मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया।
ऐसे में सियासी गलियारों में चर्चा का बाजार गर्म है कि कुछ महीनों में लोकसभा चुनाव नजदीक आने पर कांग्रेस अपने संगठन में और भी महत्वपूर्ण बदलाव कर सकती है। कमलनाथ की जगह लेने वाले 50 बरस के पटवारी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से ताल्लुक रखते हैं। वह कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं।
संयोगवश पटवारी प्रदेश के इंदौर के राऊ से हालिया चुनाव हार गए थे। फिर भी पार्टी की ओर से उन्हें यह बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। वह दिसंबर 2018 से मार्च 2020 के बीच कमलनाथ सरकार में मंत्री थे।
दरअसल, कांग्रेस ने म.प्र के विस चुनाव में अपनी हार से सबक तो लिया ही है, मगर सियासी जानकारों का मानना है कि उसने बीजेपी के उस कदम के आधार पर भी अपना फैसला लिया है, जिसमें बीजेपी की तरफ से यादव को सीएम बनाया गया है। पंजे के निशान वाली पार्टी इसके जरिए न सिर्फ ओबीसी वोटबैंक साधना चाहती है बल्कि मैसेज देना चाहती है कि उसके दल में सबको समान अवसर मिलता है।
ध्यान देने वाली बात है कि मप्र की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 48 फीसदी है और 2003 के बाद से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इस समुदाय से चार मुख्यमंत्री हुए हैं। उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान और मौजूदा समय में मोहन यादव, जिन्होंने 13 दिसंबर को शपथ ली है।
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