जिस राजा ने बनाया स्वतंत्र हिन्दू राज्य, मुगलों से अकेले लोहा लेता रहा ये बाहुबली
Jat King In History: इतिहास के पन्नों में एकमात्र ऐसे जाट राजा हैं, जो राजपूत राजाओं के बीच पैदा हुए। महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ. यह इतिहास की वही तारीख है, जिस दिन हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हुई थी। आपको उस वीर राजा की शौर्यगाथा से रूबरू होना चाहिए।
सूरजमल ने की थी भरतपुर रियासत की स्थापना। (तस्वीर- Facebook)
Maharaja Surajmal Story: राजस्थान की रेतीली जमीन से कई वीरों ने जन्म लिया है। अपने पराक्रम और शौर्य के बल पर इन वीर योद्धाओं ने राजस्थान और पूरे भारतवर्ष का नाम रोशन किया है। आपको इतिहास के शक्तिशाली महाराजा सूरजमल की शौर्यगाथा से रूबरू करवाते हैं, जो राजपूत राजाओं के बीच पैदा हुए थे और खुद एक जाट थे। जिस दौर में मुगलों से अपनी बहन-बेटियों के रिश्ते जोड़कर कई राजा अपनी जागीरें बचा रहे थे, उसी दौर में ये बाहुबली अकेला मुगलों से लोहा ले रहा था।
स्वतंत्र हिन्दू राज्य बनाने के लिए जाने जाते हैं सूरजमल
महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ। यह इतिहास की वही तारीख है, जिस दिन हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हुई थी। सूरजमल को स्वतंत्र हिन्दू राज्य बनाने के लिए भी जाना जाता है। उत्तर भारत में मुगलों के आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देने में जिन राजाओं ने अपने साहस का परिचय दिया, उनमें राजा सूरजमल का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है।
सूरजमल ने की थी भरतपुर रियासत की स्थापना
राजा सूरजमल के जन्म पर एक लोकगीत काफी प्रचलित है। इसके बोल हैं- 'आखा गढ गोमुखी बाजी, मां भई देख मुख राजी। धन्य धन्य गंगिया माजी, जिन जायो सूरज मल गाजी। भइयन को राख्यो राजी, चाकी चहुं दिस नौबत बाजी।' महाराजा सूरजमल राजा बदनसिंह के पुत्र थे। बचपन से ही सूरजमल अपनी बहादुरी की वजह से काफी लोकप्रिय थे और ब्रज प्रदेश में सबके चहेते बन गये थे। सन 1733 में सूरजमल ने भरतपुर रियासत की स्थापना की थी। वो एक कुशल प्रशासक, दूरदर्शी सोच वाले कूटनीति के धनी सम्राट थे।
महाराजा जयसिंह और राजा सूरजमल के रिश्ते
जयपुर रियासत के महाराजा जयसिंह से राजा सूरजमल के बेहतर रिश्ते थे। जयसिंह की मृत्यु हुई तो उसके बेटों माधोसिंह और ईश्वरी सिंह के बीच वारिश बनने को लेकर विवाद शुरू हो गया। सूरजमल का झुकाव बड़े पुत्र ईश्वरी सिंह की ओर था। उदयपुर रियासत के महाराणा जगतसिंह चाहते थे कि माधोसिंह को राजा बनाया जाए। विवाद इतना बढ़ गया कि लड़ाई शुरू हो गई। मार्च 1747 में हुए संघर्ष में ईश्वरी सिंह ने विजय हासिल की। युद्ध ने बड़ा रूप ले लिया और माधोसिंह ने मराठों, राठोड़ों और उदयपुर के सिसोदिया राजाओं के साथ लेकर जंग छेड़ दी। राजा सूरजमल अपने 10,000 सैनिकों को लेकर रणभूमि में ईश्वरी सिंह का साथ दिया इस युद्ध में ईश्वरी सिंह को विजय प्राप्त हुई और उन्हें जयपुर का राजपाठ मिल गया।
दिल्ली तक बजने लगा था महाराजा सूरजमल का डांका
पूरे भारत देश में महाराजा सूरजमल के नाम का डंका बजने लगा। सूरजमल ने दिल्ली और फिरोजशाह कोटला तक अपनी धाक जमा ली। जिससे दिल्ली के नवाब गाजीउद्दीन खफा हो गए और उन्होंने मराठा सरदारों को सूरजमल के खिलाफ भड़का दिया। मराठों ने भरतपुर पर हमला किया और कई महीनों तक कुम्हेर के किले को घेर कर रखा। इस हमले में मराठा सरदार मल्हारराव के बेटे खांडेराव होल्कर की मौत हो गई। हालांकि मराठों ने आखिर में सूरजमल से समझौता कर लिया। सूरजमल ने जिस लोहागढ़ किले का निर्माण करवाया था, उस पर 13 बार हमला करके भी अंग्रेज भेद नहीं पाए। किले की दीवारें इतनी मोटी बनाई थी कि तोप के गोले भी इन्हें कभी गिरा पाए, यह देश का एकमात्र किला है, जो हमेशा अभेद रहा।
हिंडन नदी के तट पर वीरगति को प्राप्त हुए सूरजमल
सूरजमल के रुतबे के चलते जाट शक्ति का खूब बोलबाला था। मुगलों और मराठों ने कई बार सूरजमल से सहायता ली। आक्रांता अहमदशाह अब्दाली जब भारत में लाखों लोगों का कत्लेआम कर रहा था तब भी सूरजमल ने उसे खुली चुनौती दे दी। अहमदशाह अब्दाली ने 27 मार्च 1757 को लोहागढ़ (भरतपुर) को धमकी दी, लेकिन राजा सूरजमल पर इसका जरा भी फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने अब्दाली को करारा जवाब दिया। सूरजमल उस वक्त हिन्दुस्तान में सबसे बुद्धिमान, सबसे धनी राजा थे। हिंडन नदी के तट पर 25 दिसम्बर 1763 को नवाब नजीबुद्दौला के साथ हुए युद्ध में सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए। उनके बहादुरी के किस्से आज भी काफी मशहूर हैं।
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