मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर गरमाई सियासत, महुआ मोइत्रा ने किया अदालत का रुख
Mahua Moitra Moves SC: टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सीईसी और ईसी की नियुक्तियों पर 2023 के कानूनी प्रावधान के खिलाफ न्यायालय का रुख किया। महुआ ने कहा कि यह विवादित अधिनियम की धारा-7 है, जिसमें चयन समिति की संरचना का वर्णन किया गया है, जो विशेष रूप से 'परेशान करने वाली' है और उनके संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का 'आधार' है।

महुआ मोइत्रा ने अदालत का रुख किया।
Court News: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा ने मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति को लेकर 2023 के कानूनी प्रावधान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने उक्त प्रावधान के खिलाफ इसी तरह की याचिकाओं पर सुनवाई बुधवार को होली की छुट्टियों के बाद तक टाल दी।
महुआ मोइत्रा ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर अदालत का रुख किया
शीर्ष अदालत की वेबसाइट के मुताबिक, मामले में अगली सुनवाई 19 मार्च को हो सकती है। पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से लोकसभा सदस्य महुआ ने अधिवक्ता ताल्हा अब्दुल रहमान के माध्यम से दाखिल याचिका में भारत में चुनावी प्रक्रिया की अखंडता एवं निष्पक्षता, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया और भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) की भूमिका में प्रत्यक्ष रुचि होने की दलील दी है।
लोकसभा सदस्य द्वारा दायर याचिका में क्या कहा गया है?
याचिका में कहा गया है, 'वैसे भी, भारत के एक ईमानदार नागरिक के रूप में, जिसका हित देश में चुनावी लोकतंत्र के भविष्य से जुड़ा हुआ है, आवेदक वर्तमान कार्यवाही में हस्तक्षेप करना चाहता है, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें एवं कार्यकाल) अधिनियम, 2023 की धारा-7 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।'
अधिनियम की धारा-7 के अनुसार क्या है नियुक्ति के नियम?
अधिनियम की धारा-7 के अनुसार, चयन समिति-जिसका कार्य मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सिफारिशें करना है-उसमें प्रधानमंत्री बतौर अध्यक्ष और विपक्ष के नेता (या लोकसभा में सबसे बड़े विरोधी दल के नेता) तथा प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री सदस्य के रूप में शामिल होंगे।
महुआ ने कहा कि यह विवादित अधिनियम की धारा-7 है, जिसमें चयन समिति की संरचना का वर्णन किया गया है, जो विशेष रूप से 'परेशान करने वाली' है और उनके संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का 'आधार' है।
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