पांच प्वाइंट्स में समझें क्यों जल उठा मणिपुर, क्या है मेती समाज का मुद्दा
Manipur Violence: मणिपुर आखिर क्यों जल उठा क्या सिर्फ मेती समाज का ही मुद्दा है और वजह कुछ और है। मेती समुदाय के मुद्दे पर मणिपुर हाईकोर्ट ने 19 अप्रैल को फैसला दिया था। उस फैसले के खिलाफ एकजुटता मार्च का आयोजन हुआ जिसका असर हिंसा के रूप में देखा जा रहा है।
हिंसा में झुलसा मणिपुर
Manipur Violence: मणिपुर की पहचान मैरीकॉम, लोकटक झील और उसकी खूबसूरती से है लेकिन उस खूबसूरती पर हिंसा(why violence in manipur) ने ग्रहण लगा दिया। सवाल यह है कि आखिर वो कौन सी वजह रही जिसके बाद हिंसा में मणिपुर झुलस गया। इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश को अमल में लाने की जब कोशिश हुई तो एक समाज दूसरे समुदाय के खिलाफ आ गया। मसला मेती समाज(Meitei people) से जुड़े लोगों को एसटी दर्जे से संबंधित है, मेती समाज की दशकों से शिकायत और मांग दोनों रही कि जब 1949 में उन्हें एसटी सूची में डाला गया तो 1950 में बाहर क्यों किया गया।
क्यों जल उठा मणिपुर
- हिंसा की शुरुआत( Manipur violence in Hindi) पहले चूड़ाचांदपुर जिले से हुई। मामला कुछ यूं था, 19 अप्रैल को मणिपुर हाईकोर्ट ने मेती समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का फैसला सुनाया। इसके खिलाफ एकजुटता मार्च का आयोजन किया गया था।
- मणिपुर की वास्तिवक समस्या मानवाधिकारों के उल्लंघन से रही है, 1960 से ही इस विषय पर आंदोलन होते रहे हैं। इसमें हिंसा का पुट तब आया जब उग्रवादी संगठनों ने छोटे छोटे बच्चों को हथियारों की ट्रेनिंग देकर भारत सरकार के खिलाफ भड़काया। मणिपुर में उग्रवाद की समस्या के पीछे बड़ी वजह यह भी रही कि वहां के लोगों को लगता था कि जबरदस्ती उन्हें भारतीय संघ में शामिल किया गया और राज्य का दर्जा दिए जाने में देरी की गई।
- मणिपुर में गरीबी, बेरोजगारी, जनसंख्या विस्फोट, जातीय तनाव, बाहर रहने की इच्छा, युवाओं में असंतोष, हिंसा, भ्रष्टाचार और जेंडर इश्यू प्रमुख हैं।
- आदिवासी समाज दो वजहों से मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश का विरोध कर रहे हैं। पहला , जनसंख्या और राजनीतिक प्रतिनिधित्व दोनों में मेती समाज का दबदबा है, दूसरा, मेती लोगों की मणिपुरी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है।
- मेती समुदाय को वो वर्ग जो मुख्य रूप से हिंदू हैं, पहले से ही अनुसूचित जाति (SC) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत आते हैं और उसका फायदा भी उन्हें मिला है।
मेती समाज
मणिपुर ब्राह्मण को मेती ब्राह्मण या मेती बामों कहा जाता है, इस समाज से जुड़े लोग मेती भाषा बोलते हैं, इन लोगों की रिहाइश मणिपुर के घाटी वाले हिस्सों में है। मेती ब्राह्मण के बाद दूसरे समूह भी हैं जिनका संबंध बंगाली ब्राह्मणों से है। मणिपुर में मेती समाज का संबंध एससी या ओबीसी समाज से रहा है। लेकिन इनकी मांग रही है कि 1949 में भारत में शामिल होने से पहले ही उन्हें ट्राइब्स के रूप में सूचीबद्ध किया था। लेकिन 1950 में जब संविधान की ड्राफ्टिंग हुई उसके बाद उन्हें एसटी वाली सूची से बाहर कर दिया। राज्य की आबादी में मेती समाज की भागीदारी करीब 65 फीसद है। इस समाज के लोगों को मणिपुर हाईकोर्ट के सामने तर्क था कि जब 1949 में उन्हें एसटी कैटिगरी का दर्जा दिया गया तो उसे क्यों हटाया गया।मेती समाज का तर्क था कि उन्हें संवैधानिक अधिकार नहीं मिलने की वजह से वो मणिपुर में हासिए पर जा रहे हैं। उनकी जमीनों, मकानों पर कब्जा आम बात है, अगर बात 1951 की करें तो उनकी आबादी 51 फीसद थी और 2011 के सेंशस डेटा के हिसाब से वो 44 फीसद पर हैं।
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