आरक्षण विरोधी सोच रखती है सपा और कांग्रेस, मायावती ने लगा दिए ये गंभीर इल्जाम
UP Politics: एक ओर अखिलेश यादव ने मायावती के लिए नरम रुख अपना रखा है, तो वहीं दूसरी तरफ बसपा प्रमुख लगातार कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर जुबानी प्रहार कर रही हैं। इस बीच मायावती ने दावा किया है कि सपा और कांग्रेस की सोच आरक्षण विरोधी है। उन्होंने इस दौरान क गंभीर इल्जाम लगाए।
कांग्रेस और सपा को मायावती ने बताया आरक्षण विरोधी।
Mayawati Slams Congress-Samajwadi Party: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जातियों-जनजातियों (एससी-एसटी) के आरक्षण में उप-वर्गीकरण के मामले में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस पर चुप्पी साधने का आरोप लगाते हुए शनिवार को कहा कि इन दलों की सोच आरक्षण विरोधी है।
अखिलेश यादव पर भड़की मायावती
मायावती का यह बयान सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा उन पर (मायावती) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक विधायक की 'आपत्तिजनक टिप्प्णी' के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त किए जाने के कुछ घंटों बाद ही सामने आया है। यादव ने मायावती के खिलाफ भाजपा विधायक की 'आपत्तिजनक टिप्प्णी' पर नाराजगी व्यक्त करते हुए शुक्रवार की देर रात सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर कहा कि सार्वजनिक रूप से दिये गये इस वक्तव्य के लिए उन पर (भाजपा विधायक पर) मानहानि का मुकदमा होना चाहिए।
सपा-कांग्रेस को बताया आरक्षण विरोधी
बसपा प्रमुख ने ‘एक्स’ पर अपनी एक पोस्ट में कहा, 'सपा व कांग्रेस आदि ये (दल) एससी/एसटी आरक्षण के समर्थन में तो अपने स्वार्थ एवं मजबूरी के कारण बोलते हैं, किंतु एससी/एसटी आरक्षण के वर्गीकरण व ‘क्रीमी लेयर’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एक अगस्त 2024 के निर्णय में अभी तक चुप्पी साधे हुए हैं जो इनकी आरक्षण विरोधी सोच को दर्शाता है। ऐसे में सजग रहना जरूरी है।'
'एससी/एसटी विरोधी रही है सपा-कांग्रेस'
मायावती ने कहा, 'सपा व कांग्रेस आदि की चाल, चरित्र व चेहरा हमेशा एससी/एसटी विरोधी रहा है। इस क्रम में ‘भारत बंद’ को सक्रिय समर्थन नहीं देना भी यह साबित करता है। वैसे भी आरक्षण संबंधी इनके बयानों से यह स्पष्ट नहीं है कि ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में हैं या विरोध में। ऐसी भ्रम की स्थिति क्यों?' उन्होंने कहा कि सपा, कांग्रेस व अन्य दल आरक्षण के विरुद्ध समान सोच वाले प्रतीत होते हैं और ऐसे में केवल एससी/एसटी ही नहीं, बल्कि अन्य ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को भी 'आरक्षण व संविधान की रक्षा तथा जातीय जनगणना की लड़ाई अपने ही बल पर बड़ी समझदारी से लड़नी है।'
ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को आरक्षण प्रदान किया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि राज्यों को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के "मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों" के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा, न कि "मर्जी" और "राजनीतिक लाभ" के आधार पर।
सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया था फैसला
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत के निर्णय के जरिये 'ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार' मामले में शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय पीठ के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों (एससी) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं।
न्यायालय द्वारा अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण के संबंध में दिए गए फैसले के खिलाफ कुछ दलित और आदिवासी समूहों ने 21 अगस्त को एक दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया था।
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