महंगाई के चलते बच्चों के टिफिन हो रहे खाली! पोषण मुहैया कराने में विफल हो रही मिड-डे मील योजना
Food Inflation in India: सब्जियों, फलो सहित खाद्य सामग्रियों के दामों में लगातार हो रहे इजाफे की वजह से बच्चों को दोपहर के भोजन में जरूरी पोषण नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, स्कूलों को जरूरी सामग्रियों को लेकर अपना हाथ खींचने के लिए मजबूत होने पड़ रहा है, क्योंकि बढ़ती खाद्य महंगाई के बावजूद पिछले दो सालों से योजना के तहत भोजन का बजट नहीं बढ़ा है।
मिड-डे मील
Food Inflation in India: त्योहारी सीजन में बढ़ती खाद्य महंगाई से आम आदमी राहत की सांस नहीं ले पा रहा है। साथ ही दो सालों से गरीब बच्चों को मिलने वाला दोपहर का भोजन भी कम हो रहा है। दरअसल, सब्जियों, फलों और दालों की बढ़ती कीमतों की वजह से सरकारी वित्तपोषित स्कूली भोजन में कटौती हो रही है।
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रायटर ने चार राज्यों के 21 स्कूली शिक्षकों, दर्जनभर परिवारों और शोधकर्ताओं के साथ बातचीत के आधार पर कहा कि स्कूलों को जरूरी सामग्रियों को लेकर अपना हाथ खींचने के लिए मजबूत होने पड़ रहा है, क्योंकि बढ़ती खाद्य महंगाई के बावजूद पिछले दो सालों से योजना के तहत भोजन का बजट नहीं बढ़ा है।
मिड डे मील योजना
योजना की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, इस कार्यक्रम में कक्षा आठवीं तक के 10 लाख सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के लगभग 12 करोड़ बच्चे शामिल हैं। ऐसे में शिक्षक और स्कूल प्रशासक 'मिड डे मील' का प्रबंधन करते हैं।
'राइट फॉर फूड' अभियान के साथ काम करने वालीं स्वतंत्र विकास अर्थशास्त्री और शोधकर्ता दीपा सिन्हा ने कहा कि मिड-डे मील योजना के लिए बजट नियमित रूप से महंगाई के हिसाब से नहीं होता है, जिसकी वजह से भोजना की क्वालिटी से समझौता होता है। हालांकि, सरकार इन भोजनों के लिए मुफ्त राशन मुहैया करती है, लेकिन इससे सब्जियों, दालों, दूध जैसी जरूरी पोषण सामग्री में अपर्याप्त बजट की वजह से होने वाली कटौती की भरपाई नहीं हो पाती है।
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महंगाई से जूझ रहे परिवार की कहानी
मिड-डे मील की क्वालिटी को लेकर 'रायटर' ने ओडिशा के एक आठ वर्षीय की कहानी बताई। भुवनेश्वर से 150 किमी दीर घुगुडीपाड़ा गांव में आठ वर्षीय रंजीत नायक रहता है। उसके परिवार में कुछ पांच सदस्य हैं, जो 250 रुपये की दैनिक मजदूरी में जीवित रहते हैं। रंजीत का परिजन उसे और उसके चार वर्षीय भाई को उबला हुआ चावल या उससे थोड़ा ज्यादा ही कुछ खिला पाते हैं। अक्सर स्कूल में ही उसे दिन का पहला मील मिलता है, लेकिन हाल के दिनों में खाद्य महंगाई की वजह से खाने का स्वाद फीका हुआ है।
रंजीत की 26 वर्षीय मां आरती नायक सूखे पत्तों से डिस्पोजेबल प्लेट बनाने का काम करती हैं और रोजाना 25 रुपये कमाती हैं। उन्होंने बताया कि मेरा बेटा कभी-कभी स्कूल के खाने से संतुष्ट हो जाता है, लेकिन बाकी के दिनों में उसे बिना दाल वाला पीला पानी ही मिलता है।
घुगुड़ीपाड़ा स्कूल में प्रबंध समिति के प्रमुख छवि नायक ने बताया कि सब्जियों, तेल और आलू की बढ़ती कीमतों ने छात्रों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना मुश्किल बना दिया है। आलम ऐसा है कि स्कूल बजट का प्रबंधन करने के लिए सस्ती किस्मों की दाल का विकल्प चुनता है।
बकौल रिपोर्ट, नाम न उजागर करने की शर्त पर शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि चुनावों की वजह से मौजूदा वित्त वर्ष 2024-25 के लिए आवंटन बढ़ाने के निर्णय में देरी हुई है। हालांकि, मिड-डे मील योजना के संबंध में शिक्षा मंत्रालय को भेजे गए ई-मेल का जवाब नहीं मिला है।
खाद्य सामग्रियों की कीमतों में उछाल
अगस्त में प्रकाशित एक केंद्रीय बैंक के अध्ययन से पता चला है कि जून 2020 और जून 2024 के बीच भारत की खाद्य महंगाई औसतन 6.3 फीसद रही है, जबकि पिछले चार सालों में यह 2.9 फीसद थी। बकौल रिपोर्ट, रायटर ने
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